Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | लूट से बेपरवाह- अनुपमा

लूट से बेपरवाह- अनुपमा

Share this article Share this article
published Published on Sep 27, 2011   modified Modified on Sep 27, 2011

2,800 करोड़ रु इधर-उधर हो गए और 4,765 करोड़ रू का कोई हिसाब नहीं. झारखंड में कैग की हालिया रिपोर्ट यह भी बता रही है कि यह सब कैसे हुआ. इसके बावजूद सरकार और उससे भी ज्यादा विपक्ष की चुप्पी हैरान करती है. अनुपमा की रिपोर्ट

चारा घोटाले के वक्त बिहार में अक्सर कहा जाता था कि नेता-अधिकारी जानवरों का चारा तक डकार गए. पिछले दिनों झारखंड विधानसभा में पेश कैग रिपोर्ट के बाद कहा जा सकता है कि राज्य में भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों के गठजोड़ ने सड़कें भी निगल लीं. देखा जाए तो झारखंड की शासन व्यवस्था घपले-घोटाले और हेरफेर की अभ्यस्त-सी होती जा रही है. शायद तभी 29 अगस्त को झारखंड विधानसभा में थोड़ी हलचल के बाद धीरे-धीरे सब-कुछ शांत हो गया. जिस सदन में बात-बात पर लड़ने-भिड़ने जैसी स्थिति हो जाती है उसी सदन में 29 अगस्त को कंट्रोलर ,एंड अकाउंटेंट जनरल यानी कैग की रिपोर्ट पेश होने के बाद सवालों की बौछार से सरकार की घेराबंदी नहीं हो सकी. सरकार के प्रतिनिधि राइट टू सर्विस एेक्ट लाकर भ्रष्टाचार का समूल नाश कर देने की बातें करते रहे, मगर विपक्ष से किसी ने यह सवाल नहीं दागा कि भ्रष्टाचार जब दूर होगा तब होगा, पहले 2,800 करोड़ रुपये का कुछ हिसाब-किताब दिया जाए.

इन गड़बड़ियों को लेकर सरकार बहुत परेशान, शर्मसार या चिंतित हो, ऐसा नहीं दिखता

कैग ने वित्तीय वर्ष 2009-10 की जो रिपोर्ट दी है उसमें करीबन 2,800 करोड़ रुपये की गड़बड़ियां साफ-साफ उजागर हुई हैं. रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि कई जगहों पर सड़कें बनी ही नहीं मगर ठेकेदारों को लाखों रु का भुगतान हो गया. कई पुरानी सड़कों की ही मरम्मत कराके नयी सड़कों के निर्माण का भुगतान करा दिया गया. बात सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं. रिपोर्ट के अनुसार शायद ही कोई विभाग हो जिसमें गड़बड़झाला न हुआ हो. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में तो यह चरम तक पहुंचा हुआ बताया गया है. साथ ही ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता, कला संस्कृति एवं खेलकूद, स्वास्थ्य, कृषि, पथ निर्माण, कल्याण, जल संसाधन, बिजली एवं वन विभाग में भी वित्तीय अनियमितताओं व गड़बड़ियों की भरमार है. गौर करने वाली बात यह है कि  वित्तीय वर्ष 2009-10 में राज्य सरकार ने 4,765 करोड़ रु का हिसाब-किताब तक महालेखाकार कार्यालय भेजना मुनासिब नहीं समझा.
29 अगस्त को सदन में कैग रिपोर्ट के जरिए गड़बड़ियों का पुलिंदा राज्य के उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री हेमंत सोरेन ने प्रस्तुत किया, लेकिन उन्हें इतनी गड़बड़ियों के लिए एक-दो सवालों के अलावा कोई फजीहत नहीं झेलनी पड़ी. गौरतलब है कि झारखंड में यह सब नजारा उस दौर में देखने को मिल रहा है जब देश के अन्य राज्यों में कैग रिपोर्ट पर सरकारें कटघरे में खड़ी हो रही हैं.
राज्य की प्रधान महालेखाकार मृदुला सप्रू तहलका से बातचीत में कहती हैं, 'कैग की आपत्तियों पर सरकार अब तो गंभीरता से विचार करे और इन गड़बड़ियों को रोकने की कोशिश करे. सरकार को अपना बजट तंत्र मजबूत कराना चाहिए और योजनाओं के निर्माण और क्रियान्वयन में गंभीरता व सक्रियता लानी चाहिए.'

पीएसयू में हुई लूट-खसोट

कैग रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) में सबसे ज्यादा गड़बड़ियां हुई हैं. 2009-10 में लोकउपक्रमों का टर्नओवर 1,565.25 करोड़ रु का रहा जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.88 फीसदी है. आंकड़ों के अनुसार यह कोई कम नहीं. लेकिन हैरत की बात यह है कि इस उपलब्धि के बावजूद उपक्रमों का घाटा 442.32 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा. यदि इन उपक्रमों में सरकार के निवेश को देखें तो कुल 4,900.87 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है, जिसमें इक्विटी (हिस्सेदारी खरीदने के लिए लगाया गया धन) सिर्फ 2.87 फीसदी है और लांग टर्म लीज (लंबी अवधि के कर्ज) 97.13 फीसदी. लोक उपक्रम में निवेश का अधिकांश भाग ऊर्जा क्षेत्र में ही हुआ है. इस निवेश का एक बड़ा हिस्सा लांग टर्म लीज के रूप में ही लिया गया है और यह राशि 4086.09 करोड़ रु है. लोक उपक्रम जेएसइबी में सिर्फ सब्सिडी के चलते उससे 767.31 करोड़ रु ज्यादा की रकम खर्च हो गई जितने का प्रावधान बजट में रखा गया था.

गड़बड़ियों के घालमेल पर नजर डालें तो एक से एक हैरतअंगेज कारनामे फाइलों के सहारे किए हुए मिलते हैं. वित्त के लेखा और लोक उपक्रमों के लेखा में कहीं भी कोई मेल ही नहीं दिखता. फाइनांस के एकाउंट में जहां इक्विटी 19.30 करोड़ है वहीं पीएसयू के रिकाॅर्ड में यह आंकड़ा 140.55 करोड़ है. फाइनांस के एकाउंट के हिसाब से कर्ज 6,137.33 करोड़ रु है वहीं पीएसयू में यह केवल 4,592.51 करोड़ रु है. यानी इक्विटी में 121.25 व लोन में 1,544.82 करोड़ रु का अंतर है. इतने सब के बाद राज्य का राजस्व 2.05 से घटकर 1.88 पर पहुंच गया है लेकिन फिर भी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में इजाफा हुआ है. यदि आंकड़ों में देखें तो 11 पीएसयू में से चार ने 4.05 करोड़ रु का लाभ पहुंचाया लेकिन दूसरी ओर शेष सात उपक्रमों ने 446.48 करोड़ रु का नुकसान करवाया.

अब यह घाटा क्यों हुआ, यह जानना भी दिलचस्प है. इन दोनों उपक्रमों में कर्मचारियों के बकाये के भुगतान में ही अधिकांश राशि का वितरण कर दिया गया जिससे टीवीएनएल को 70.94 करोड़  रु एवं जेएसइबी को 374.13 करोड़ रु का घाटा हुआ. विधायक उमाकांत रजक कहते हैं कि जब इन उपक्रमों से लगातार घाटा ही हो रहा है तो छंटनी की जाए अन्यथा इन्हें बंद कर दिया जाए. दूसरी ओर इस संदर्भ में कैग का मानना है कि वित्तीय प्रबंधन, योजना एवं क्रियान्वयन और निगरानी जैसी चीजों पर ठीक से ध्यान दिया जाता तो 2007 से लेकर 2010 तक  3,000 करोड़ रु से भी ज्यादा बचाए जा सकते थे.
नफे-नुकसान के इस कृत्रिम खेल को इस एक बानगी से भी समझा जा सकता है. सिर्फ पतरातू थर्मल पावर स्टेशन (पीटीपीएस) में ही सरकार को 141 करोड़ रु का नुकसान हुआ है. 121.30 करोड़ रु का नुकसान मानक से अधिक खर्च होने के कारण हुआ तो बाकी की राजस्व हानि समय पर उत्पादन इकाई नहीं बनाने से हुई. बिजली बोर्ड में तो गड़बड़ियों और राजस्व को घाटा लगाने वाले कारनामों की लंबी फेहरिस्त है. मीटर बॉक्स की खरीद एवं लगाने में लापरवाही से 10.50 करोड़ रुपये तो उपभोक्ताओं को भार आकलन में गड़बड़ी के कारण 94 लाख रु का नुकसान हुआ. कंप्यूटर बिल की गड़बड़ी के कारण 1.36 करोड़ रु का गलत व्यय हुआ.

सड़क व पर्यटन के नाम पर भी खेल

पथ निर्माण विभाग में भी अनियमितताओं व गड़बड़ियों का पुलिंदा है. कैग की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि पाकुड़-बरहरवा पथ में संवेदक (ठेकेदार) को 2.30 करोड़ रु का अनुचित लाभ पहुंचाया गया है. देवघर-मधुपुर रोड में पतरो नदी पर पुल निर्माण में भी बेवजह 1.32 करोड़ रु खर्च किए गए. वहीं राहे-सीताफॉल सड़क निर्माण में 1.83 करोड़ रु का निरर्थक व्यय हुआ. इन सड़कों के निर्माण की झूठी कार्यशैली का गांव के लोगों ने विरोध भी किया था. सड़क की खस्ताहालत को देखते हुए ग्रामीणों ने सड़कों पर विरोध स्वरूप धान की रोपनी की थी. कुटमु गारू महुदार पथ में शर्तों की गलत व्याख्या करके संवेदक को 1.32 करोड़ रु का अनुचित भुगतान किया गया और साथ ही संविदा में गड़बड़ी करके 7.21 करोड़ रु का अधिक भुगतान किया गया.
ऐसे कई किस्से कैग की रिपोर्ट में मिलते हैं. लेकिन इन गड़बड़ियों को लेकर सरकार बहुत परेशान, शर्मसार या चिंतित हो, ऐसा नहीं दिखता. वित्त मंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं, 'कुछ गड़बड़ियां होंगी लेकिन समय पर बिल जमा न होने पर भी गड़बड़ी कह दी जाती है.' अपने बचाव में वित्त मंत्री जो कुछ भी कहें पर कई मामलों को देखने पर साफ लगता है कि बड़े घोटाले की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है.

खेल पर्यटन विभाग में भी कम नहीं हो रहे. कैग की रिपोर्ट बताती है कि झारखंड पर्यटन विभाग ने कैबिनेट की अनदेखी करते हुए वर्ष 2008-09 में थीम फिल्में बनाने का आदेश दे डाला. इससे पहले विभाग ने आठ थीम फिल्मों के लिए निविदाएं मंगवाई थीं. निविदाओं की समीक्षा के बाद फिल्म निर्माण का यह काम उसे दे दिया गया जिसने सबसे कम कीमत की बोली लगाई थी. विभाग ने 6.29 करोड़ रु में आठ थीम फिल्में दो भाषाओं में बनाने का आदेश दिया. यह आदेश विभागीय मंत्री की सहमति पर नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए बिना कैबिनेट की मंजूरी लिए दिया गया जबकि पांच करोड़ से ज्यादा की रकम के लिए यह मंजूरी आवश्यक होती है. हालांकि मार्च, 2009 में इस आदेश में संशोधन करके इस आंकड़े को चार थीम फिल्मों और 3.15 करोड़ रु तक सीमित कर दिया गया. रिपोर्ट के मुताबिक इसके पहले पर्यटन विभाग के तत्कालीन सचिव ने फरवरी, 2009 में मंत्री को भेजी गई अपनी टिप्पणी में इस तथ्य का जिक्र नहीं किया था कि पांच करोड़ रु से ऊपर की राशि के लिए कैबिनेट की मंजूरी जरूरी होती है. वर्ष 2010 के अप्रैल व मई के महीनों में पर्यटन विभाग में जब दुबारा स्क्रूटनी कराई गई तो यह पाया गया कि वर्ष 2004-05 में पारसनाथ और इको टूरिज्म पर 15-20 मिनट की बनी थीम फिल्मों को एक प्राइवेट मीडिया हाउस से बनवाया गया था और दोनों ही फिल्मों के लिए क्रमशः 3.25 लाख व 3.45 लाख रु का अलग-अलग भुगतान किया गया था. लेकिन जनवरी 2009 में  विभाग ने पर्यटन को बढ़ावा और प्रोत्साहन देने के लिए ऐसी ही थीमों पर फिर फिल्म निर्माण का आदेश दे दिया और इसके लिए 75.84 लाख रु प्रति फिल्म देने का प्रावधान किया. यह कीमत पहले की तुलना में कई गुना ऊंची थी. विभाग ने अगस्त, 2009  में 18.91 लाख रु फिल्म निर्माण मीडिया हाउस को दे भी दिए. फिल्मों की रफ कट व फाइनल कट की कॉपी जमा करने के लिए 2009 के जून व अक्टूबर माह के बीच का समय तय किया गया था परंतु मई 2010 तक भी यह फिल्म बनकर तैयार नहीं हो सकी. कैग की रिपोर्ट देखें तो यह भी पता चलता है कि मार्च, 2009 में ट्रेजरी से दोबारा 3.15 करोड़ रु की निकासी की गई और यह राशि झारखंड पर्यटन विकास निगम के खाते में जमा कर दी गई. उपरोक्त खाते में 2.96 करोड़ रु की रकम अब भी पड़ी हुई है.
रिपोर्ट के मुताबिक इन फिल्मों के जरिये पर्यटन को प्रोत्साहन देने का मकसद अधूरा ही रह गया. ऊपर से चयन प्रक्रिया के सही न होने, काम को सौंपने में सावधानी नहीं बरतने व राशियों का समुचित उपयोग न होने के कारण 2.63 करोड़ रु यूं ही खाते में पड़ कर धूल फांक रहे हैं और ब्याज के रूप में 27.70 लाख रु का नुकसान भी हो गया है. लेकिन सवाल यह है कि कोई समय रहते इस नुकसान की सुध लेगा? लगता तो नहीं. 

Icon  

http://www.tehelkahindi.com/rajyavar/%E0%A4%9D%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A1/970.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close