Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | लोकतंत्र में भय ! -- रविभूषण

लोकतंत्र में भय ! -- रविभूषण

Share this article Share this article
published Published on Jan 16, 2017   modified Modified on Jan 16, 2017
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक आेबामा ने पिछले सप्ताह अपने विदाई-भाषण में लोकतंत्र को लेकर जो गहरी चिंताएं व्यक्त की हैं, उन पर हम सब का ध्यान देना अधिक आवश्यक है. संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत को दो प्रमुख लोकतांत्रिक देश माना जाता है. भारत में लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभ- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका आज किस हालत में हैं? एडमंड बर्क (1729-1797) ने 1787 में एक संसदीय बहस में जिस 'प्रेस' को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा था, वह प्रेस और मीडिया क्या आज सचमुच अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहा है?

 

 
विधायिका जो कानून बनाती है, कार्यपालिका उसे जिस रूप में लागू करती है और न्यायपालिका जिस प्रकार उसकी व्याख्या करती है, वह कानून क्या आज सबके लिए समान है या शक्तिशाली गिरोह ने उस कानून पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है? विविधता का आदर-सम्मान लोकतंत्र का प्राण है. इसे नष्ट करना लोकतंत्र को समाप्त करना है. शिकागो के अपने विदाई-भाषण में ओबामा ने अमेरिकियों को 'लोकतंत्र की रक्षा' करने को कहा. लोकतंत्र पर जिन खतरों के मंडराते बादलों की उन्होंने चर्चा की, क्या वे केवल अमेरिका में है?

 
आर्थिक असमानता, नस्ली भेदभाव और तथ्यों के न्यायसंगत आधारों की विचारों में कमी केवल अमेरिकी लोकतंत्र पर ही तीन संकट नहीं हैं. भारत में भी यह संकट बढ़ रहा है, जिसे कम करने या समाप्त करने की चिंता न किसी नेता में है, न किसी राजनीतिक दल में. भारत 'न्यायसंगत, विधिसंगत, समावेशी' राष्ट्र नहीं है. सामान्यजन यहां लोकतंत्र को सबल करने के पक्ष में है और उनके प्रतिनिधि इसे दुर्बल करने में अपना हित देखते हैं. लोकतंत्र के लिए एकरूपता आवश्यक नहीं है. परस्पर निर्भरता, एकप्राणता उसके लिए आवश्यक है. प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र को भंग करने, उसे बिगाड़ने के कई उदाहरण मिलेंगे, पर यह सामान्य जनता है, जो आपसी एकजुटता से इसे समाप्त करती है. आवश्यक यह है कि वह भयग्रस्त न हो. असमानता लोकतंत्र के लिए क्षयकारी है, नाशकारी है. पिछले ढाई वर्ष से भारतीय लोकतंत्र को जिस प्रकार से एकतंत्र अथवा मोदीतंत्री में बदलने की सुनियोजित कोशिशें चल रही हैं, वह पूरे देश के लिए घातक है.

 
ओबामा ने अमेरिकी उपन्यासकार हार्पर ली (1926-2016) के पहले विश्व प्रसिद्ध उपन्यास 'टू किल ए मौकिंग बर्ड' के पात्र एटीकस फिंच का उदाहरण दिया, जिसका यह कथन है कि हम किसी भी व्यक्ति को उसके दृष्टिकोण से ही समझ सकते हैं. 1960 के पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त इस उपन्यास के पात्र एटीकस फिंच को न्यायिक व्यवस्था में विश्वास है. इस चरित्र को न्यायिक क्षेत्र में एक रोल मॉडल के रूप में रखा गया है. उपन्यास के 26वें अध्याय में लोकतंत्र के संबंध में मिस गेट्स द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर स्काउट ने यह दिया है कि लोकतंत्र में सबको समान अधिकार प्राप्त है, विशेष सुविधाएं किसी के लिए नहीं हैं. हमारे देश के नेताओं, अफसरों और वकीलों-जजों को क्या हार्पर ली का यह उपन्यास नहीं पढ़ना चाहिए?

 
लोकतंत्र में अन्य के अनादर, असम्मान के लिए कोई जगह नहीं है. लोकतंत्र में भय का वातावरण निर्मित करनेवाले, विरोधियों को डराने-धमकानेवाले, विपरीत विचारों की अनसुनी करनेवाले, अभिव्यक्ति पर अंकुश लगानेवाले, तर्क और बहस की अनदेखी कर, बुद्धि-विवेक के स्थान पर मन की बात कहनेवाले लोकतंत्र को एकतंत्र में बदलते हैं. सत्तावादी, अधिकारवादी लोकतांत्रिक नहीं होते. भय का माहौल बनाना लोकतंत्र को समाप्त करना है. जहां तक लोकतंत्र में भय का प्रश्न है, संभवत: सर्वप्रथम, यूनान के इतिहासकार, राजनीतिक दार्शनिक, सेनानायक, थ्यूसीदाइदीज (इसापूर्व 460-400) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ दि पेलोपोनेशियाई वार' में इसकी चर्चा की है. उनका यह स्पष्ट कथन है कि 'भय लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह है.' थ्यूसीदाइदीज को 'वैज्ञानिक इतिहास' और 'राजनीतिक यथार्थवाद के स्कूल' का जनक माना जाता है.

 

 

 
'भय' एक शक्तिशाली पुरातन मानवीय मनोभाव है, जो वस्तुत: दो चरणों- जैव रासायनिक और भावोत्तेजक प्रतिक्रिया में व्यक्त होता है. जहां जैव रासायनिक प्रतिक्रिया सार्वभौम है, वहां भावोत्तेजक प्रतिक्रिया अत्यंत अलग-अलग हैं. सर्वसत्तात्मक और एकदलीय शासन के लिए भय पूर्वपेक्षित है. फिलहाल भारत में दो स्तरों पर भय बढ़ाया जा रहा है- मनोवैज्ञानिक और सामाजिक-सांस्थिक भय. स्वायत्त संस्थाओं को कमजोर करने से भय तीव्र गति से संचारित होता है.

 
दृश्य और अदृश्य दोनों ही रूपों में भय बढ़ाया जा रहा है. जिस देश में 'मा भै:' (मत डरो) का संदेश हजारों वर्ष पहले दिया गया था, उस देश में भय के वातावरण का निरंतर बढ़ना कहीं अधिक चिंताजनक है. एक भयभीत व्यक्ति और समाज कभी अपना विकास नहीं कर सकता. ब्रिटिश साम्राज्य और शासन से भयभीत न होनेवाले समाज आज अपने चयनित प्रतिनिधियों और उनके चाकरों के द्वारा भयभीत किया जा रहा है. यह अशुभ है- भारतीय लोकतंत्र और भारतीय समाज दोनों के लिए.

 


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/926491.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close