Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | लोकपाल के अधीन- सीताराम येचुरी

लोकपाल के अधीन- सीताराम येचुरी

Share this article Share this article
published Published on Dec 22, 2011   modified Modified on Dec 22, 2011
आज जनता व्यग्रता से इंतजार कर रही है कि संसद एक कारगर लोकपाल संस्था कायम करे, ताकि उच्च पदों पर तथा सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। इसी संदर्भ में सरकार ने संसदीय स्थायी समिति द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पर विचार करने के लिए विगत 14 दिसंबर को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। संसदीय स्थायी समिति ने लोकपाल विधेयक के मौजूदा मसौदे और पिछले कुछ अरसे में आए अनेक सुझावों पर विचार करने के बाद यह रिपोर्ट दी है।

इन सुझावों में ऐसी आम राय लगती है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए, वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति आदि किन-किन विषयों में उन्हें इसके दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए, जैसी सांस्थानिक और प्रक्रियागत ‘सावधानियों’ के अनेक सुझाव भी आए हैं। उक्त ‘सावधानियों’ के संबंध में सरकार को ठोस सुझाव पेश करने चाहिए। वैसे भी संदेहास्पद व्यापारिक लेन-देन में प्रधानमंत्री कार्यालय का किसी भी तरह से हाथ होने को लोकपाल के विचार क्षेत्र से बाहर नहीं रखा जाना चाहिए।

लोकपाल की शक्तियों का विस्तार कर सभी ग्रेडों के अधिकारियों को इसके दायरे में लाया जाना चाहिए। इसी प्रकार, राज्य के स्तर पर लोकायुक्तों के दायरे में सभी श्रेणियों के कर्मचारियों को लाया जाना चाहिए। इस पर भी आम सहमति नजर आती है, पर इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों से निपटने के लिए समुचित प्रक्रियाएं स्थापित करनी होंगी। इस सिलसिले में भी सरकार को ‘समुचित तंत्र’ को मूर्त रूप देकर स्पष्ट करना चाहिए, ताकि उसके आधार पर सुधार तथा उसकी कारगरता के संबंध में ठोस सुझाव दिए जा सकें।

लोकपाल का अपना जांच तंत्र होना चाहिए, जिसका कार्यक्षेत्र भ्रष्टाचार निरोधक कानून आदि तक ही हो। इसके लिए या तो सीबीआई को भ्रष्टाचार संबंधी सभी मामलों के लिए लोकपाल के अधीन रखा जाना चाहिए या फिर उसके लिए एक स्वतंत्र जांच एजेंसी का गठन किया जाना चाहिए। बहरहाल, इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है कि लोकपाल को किसी भी कारगर जांच एजेंसी व तंत्र के अभाव में नाकारा बना दिया जाए। अलबत्ता सीबीआई के निदेशक का चयन एक स्वतंत्र जांच कमेटी से कराया जाना चाहिए और ऐसी ही कमेटी लोकपाल के अध्यक्ष तथा सदस्यों के चयन के लिए भी बनाई जानी चाहिए। लोकपालों के गठन में अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून के तहत भ्रष्टाचार की परिभाषा में संशोधन की जरूरत है। आज जो मौजूदा नियमों और कानूनों का उल्लंघन कर जानबूझकर नाजायज लाभ देते हैं या नाजायज लाभ हासिल करते हैं, वही इसके दायरे में आते हैं। इसके तहत उन कृत्यों तथा निर्णयों को भी लाया जाना चाहिए, जिनके परिणामस्वरूप सरकारी खजाने को राजस्व का घाटा होता है। बोलने की स्वतंत्रता तथा संसद में वोट करने के सिलसिले में सांसदों को संविधान के तहत संरक्षण हासिल है, लेकिन उसे भ्रष्टाचार के उन कृत्यों तक नहीं बढ़ाया जा सकता, जिसमें सांसद शामिल होते हैं।

यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए, जिनमें अगर जरूरी हो, तो संविधान की धारा 1०५ में संशोधन करना भी शामिल है। वरना घूस देनेवाले पर आपराधिक मुकदमे और घूस लेनेवाले सांसद को छोड़ देने जैसी अतर्कसंगत स्थिति से नहीं बचा जा सकेगा, जैसा कि पीवी नरसिंहराव सरकार के दौरान अविश्वास प्रस्ताव के समय कुख्यात जेएमएम घूसखोरी मामले में हुआ था। इसका और जघन्य उदाहरण २००८ में भारत-अमेरिका परमाणु करार के समय, विश्वास प्रस्ताव के वक्त वोट के लिए नोट घोटाले में सामने आया था, जिसने संसद को हिलाकर रख दिया था।

भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष को और ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए लोकपाल को उन मामलों की जांच के भी अधिकार दिए जाएं, जिनमें कॉरपोरेट घराने शामिल हों और इसके बाद भ्रष्ट तरीके से हासिल ठेके, लाइसेंस वगैरह निरस्त करने की सिफारिश की जानी चाहिए। ऐसी कंपनियों को काली सूची में डालने की सिफारिश करने और खजाने को हुए घाटे की क्षतिपूर्ति के लिए ठोस कदम सुझाने का अधिकार भी लोकपाल को होना चाहिए। सरकारी संरक्षण तथा वित्तीय सहायता पानेवाले तमाम संगठनों तथा एसोसिएशनों को भी इसके तहत लाया जाना चाहिए।

और अंत में जवाबदेही के सिद्धांतों तथा स्वायत्तता को कानून में समुचित स्थान दिया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, लोकपाल को तत्कालीन सरकार के विवेक से नहीं हटाया जा सकता। यह सुनिश्चित करने के लिए समुचित प्रक्रियाएं तय की जानी चाहिए कि ये दोनों उद्देश्य प्रभावी ढंग से पूरे हो सकें। साथ ही न्यायपालिका में नियुक्तियों तथा भ्रष्टाचार की शिकायतों की सुनवाई के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का गठन, लोकशिकायतों के निवारण के कारगर कानून और चुनाव में धन-बल के बढ़ते दखल पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी चुनाव सुधार भी उतने ही जरूरी हैं। इन तमाम पहलुओं का जब पूरी तरह हल निकाल लिया जाएगा, तभी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई प्रभावी ढंग से आगे बढ़ सकेगी।

http://www.amarujala.com/Vichaar/VichaarColDetail.aspx?nid=379&tp=b&Secid=33


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close