Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | लोकपाल या समानांतर सुप्रीम कोर्ट

लोकपाल या समानांतर सुप्रीम कोर्ट

Share this article Share this article
published Published on Jun 10, 2011   modified Modified on Jun 10, 2011

राइट टू इनफॉरमेशन एक्ट के अंतर्गत दी हुई सूचना के अनुसार, तीन करोड़ मुकदमे भारत के न्यायालयों में विचाराधीन हैं. इनमें 30 लाख मुकदमे 21 हाइकोर्ट में और 39780 मुकदमे सुप्रीम कोर्ट में हैं. ऐसी परिस्थिति में भ्रष्टाचार स्वाभाविक है. भ्रष्टाचार की जड़ें अनिर्णित न्यायिक व्यवस्था में निहित हैं. किसी भी भ्रष्टाचारी को वर्तमान न्यायालयों की कार्यप्रणाली में सजा दिलाना असंभव सा है.

इसी से भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है. न्यायालयों पर उंगली कौन उठाये. प्रसिद्ध कहावत है,‘न्याय में देरी करना, न्याय के लिए मना करने के बराबर है.’ पीर जब पर्वत बन जाती है, तो पिघलती भी है. समानांतर न्यायालय बनने लगे हैं, ताकि पीर कुछ पिघले.वर्तमान कानून व्यवस्था की दो धाराएं हैं, दीवानी (सिविल) और फौजदारी ( क्रिमिनल). सिविल मुकदमों में कई प्रकार के मुकदमे ट्रिब्यूनल की राह से होकर हाइकोर्ट तक पहुंचते हैं. अब कुछ ऐसे ट्रिब्यूनल इजाद किये गये हैं, जो हाइकोर्ट के समानांतर कार्यरत हैं.

उनके निर्णयों के खिलाफ हाइकोर्ट में अपील नहीं की जा सकती है. इसके उदाहरण हैं, सेवी ट्रिब्यूनल एवं डैट रिकवरी ट्रिब्यूनल. ये ट्रिब्यूनल्स समानांतर हाइकोर्ट कहे जा सकते हैं. हाइकोर्ट तो अपनी-अपनी रियासतों में होती हैं, पर ये ट्रिब्यूनल्स तो राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करते हैं. क्रिमिनल मुकदमे अभी भी पुराने तौर-तरीके से निचली अदालतों में दायर किये जाते हैं. उनकी अपील सीढ़ी दर सीढ़ी ही ऊंची अदालतों में दायर की जा सकती है.अतएव अपील की सुनवाइयों में कई वर्ष लग जाते हैं. हजारों लोग अनिर्णित मुकदमों के अंतर्गत जेल काट रहे हैं, तो लाखों गुनहगार आजाद घूम रहे हैं.कानून से जनता का टकराव दो माध्यम से हो सकता है. एक यह कि जो कानून सरकार ने बनाया है, उसे जनता अनुचित एवं अनैतिक मानती है और उसके लिए हम सिविल नाफरमानी का आह्वान करते हैं.

दूसरा यह कि जनता जो कहे, उसे सरकार कानून बनाये, जैसे कि जन लोकपाल बिल. सिविल नाफरमानी गांधी एवं लोहिया के सिद्धांतों का एक मुख्य स्तंभ था. सिविल नाफरमानी के अंतर्गत उस परिस्थिति की व्याख्या है, जब हुक्म या कानून अनुचित या अनैतिक हो. बहुमत या तानाशाही द्वारा प्राप्त किये गये अधिकार बहुत शक्तिशाली होते हैं. उनके निर्णय या सोच अनुचित भी हो सकते हैं. अगर अपनी अंतरात्मा की आवाज या जमीर किसी कानून या हुक्म को अनुचित या अनैतिक मानती है, तो उसकी अवहेलना या अवमानना करना जनता का कर्तव्य है. इसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है.1849 में अमेरिका के एक विद्वान धोरोयू का एक प्रसिद्ध निबंध‘ रेजिसटंस टू सिविल गवर्नमेंट’ प्रकाशित हुआ था. इसमें अमेरिकी सरकार को मैक्सिको से युद्ध के लिए कर लगाने के विरोध में सिविल नाफरमानी का आह्वान था. इसमें दास प्रथा के विरोध में आवाज उठाना मुख्य विषय था. दास प्रथा को बरकरार रखने में बनाये गये कानूनों की अवहेलना एवं अवमानना के लिए जोरदार अपील की गयी थी.सिविल नाफरमानी के अनुसार गलत सरकार से दूरी बनाना कर्तव्य पालन है. इसे बड़ी सावधानी से चुनना पड़ता है. इसमें कानून सम्मत साधनों का प्रयोग करना पड़ता है. यह सम्मानजनक असहमति है.

अंतरात्मा की आवाज या जमीर की पुकार किसी भी कानून से सर्वोपरि है.कानून का विश्‍लेषण करना और उन पर निर्णय देना न्यायालयों का काम है. परंतु कानून बनाने की प्रक्रिया और बनाने का अधिकार तो केवल संसद के पास है. बिल कैसे पेश किया जा सकता है, उस पर कैसे दोनों सदनों से सहमति प्राप्त की जाती है और किस प्रकार राष्ट्रपति की अनुमति की आवश्यकता है, यह संसदीय प्रणाली के अंतर्गत आता है. इस प्रणाली पर ‘जन लोकपाल बिल’ एक नयी व्यवस्था है. जनता बिल बना रही है और शर्त यह है कि संसद को इसे स्वीकृति देनी ही होगी. संसद सदस्य को अपनी सहमति या असहमति व्यक्‍त करने के अधिकारी नहीं होंगे.


http://www.prabhatkhabar.com/node/14789


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close