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न्यूज क्लिपिंग्स् | लौकी के पौधे में फलेगा तरबूज

लौकी के पौधे में फलेगा तरबूज

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published Published on Jan 3, 2011   modified Modified on Jan 3, 2011
रायपुर.अब लौकी के पौधों में तरबूज (कलिंदर) के फल लगेंगे। छत्तीसगढ़ में इस तरह का अनोखा प्रयोग न केवल शुरू हो चुका है, बल्कि किसानों ने इसकी खेती भी शुरू कर दी है।

कृषि पंडित डा. नारायण चावड़ा ने इस तरह का पौधा तैयार किया है। तरबूज की जड़ें इतनी सक्षम नहीं होती कि वे जमीन में मौजूद बैक्टिरिया का मुकाबला कर सकें जबकि लौकी की जड़ें घनी और ज्यादा फैली होती हैं। डा. चावड़ा ने लौकी के पौधों में तरबूज के पौधों की ग्राफ्टिंग की है।

छत्तीसगढ़ में तरबूज की खेती काफी बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन फ्यूजेरियन (फफूंद) के कारण एक जमीन पर इसकी दोबारा खेती नहीं होती। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में केवल नदियों की रेत में तरबूज की खेती होती है।

महानदी, शिवनाथ, खारुन नदी की रेत में तरबूज और खरबूज की खेती होती है। राजिम, महासमुंद, दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर के कई इलाकों में किसान नदियों में ही इसकी फसल लेते हैं।

हर बार रेत की परत नई होने के कारण फ्यूजेरियन की शिकायत नहीं आती। जबकि मिट्टी में इसकी खेती करने पर फफूंद तरबूज की जड़ों को खा जाती है और पौधा सूख जाता है। इस समस्या को फोकस करते हुए डा. चावड़ा ने कई प्रयोग किए। उन्होंने नार (रूट) वाली पौधों का अध्ययन किया।

उन्होंने पाया कि तरबूज, खरबूज, टिंडा जैसी फसलें फफूंंद के कारण दूसरी बार एक ही जमीन पर नहीं उगाई जा सकती। जबिक लौकी, कद्दू, रखिया जैसे पौधों की जड़ें ज्यादा मजबूत रहती हैं। यही वजह है कि इनके नार की लंबाई 10 से 20 मीटर तक होती हैं।

डा. चावड़ा ने ग्राफ्टिंग टेकनीक से तरबूज उगाने का प्रयोग १क् साल तक किया। आखिर में उन्हें तरबूज के पौधे की बढ़वार के लिए लौकी का पौधा बेहतर लगा। डा. चावड़ा ने बताया कि लौकी के पौधे की जड़ से तरबूज की ग्राफ्टिंग करने से उसके नार काफी लंबे होते हैं।

जड़ मजबूत होने से तरबूज को अधिक पोषक तत्व और पानी मिलता है। तरबूज की पत्ती और नार की वृद्धि अधिक होती है। इससे छह से 30 टन प्रति एकड़ पैदावार होती है। जबकि सामान्य विधि के पौधों से इससे आधा उत्पादन होता है। डा. चावड़ा ने कई किसानों को प्रयोग के लिए तरबूज के ग्राफ्टेड पौधे बांटे हैं। किसान इसकी खेती कर रहे हैं।

प्रदेश में पहला प्रयोग

विदेशों में इस तकनीक का प्रयोग 60 से 70 प्रतिशत फसलों में किया जाता है। छत्तीसगढ़ में तरबूज के मामले में यह पहला प्रयोग है। चीन, ताईवान, कोरिया, जापान में इस विधि को हर फसलों में अपनाया जाता है।

इसे तैयार करने के लिए पहले लौकी का पौधा उगाया जाता है, इसके बाद इसमें तरबूज की ग्राफ्टिंग की जाती है। इसकी हाडर्निग प्रक्रिया काफी जटिल होती है।

http://www.bhaskar.com/article/CHH-RAI-aflaga-melon-gourd-plant-1716875.html


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