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न्यूज क्लिपिंग्स् | वही कहो, जो दीदी कहें - चंदन श्रीवास्तव

वही कहो, जो दीदी कहें - चंदन श्रीवास्तव

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published Published on Apr 16, 2012   modified Modified on Apr 16, 2012

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की जीत और कोलकाता में ममता बनर्जी की ताजपोशी के महज एक साल के भीतर कोलकाता में ममता बनर्जी को लेकर सोच का पहिया उलटी दिशा में घूम गया है.

पिछले साल के मई तक जो बुद्धिजीवी आंदोलनधर्मी दीदी के साथ थे, उन्हें साल पूरा होते-होते लग रहा है कि गद्दी पर बैठी ममता बनर्जी की रीति-नीति के साथ खड़ा होना मुश्किल है. फिलहाल कोलकाता में आंदोलनधर्मी हर बुद्धिजीवी एक उलझन से दो-चार है- क्या पश्चिम बंगाल में सिर्फ शासक का चेहरा बदला है, सत्ता का स्वभाव नहीं बदला?

बीते गुरु वार यानी 12 अप्रैल को बुद्धिजीवियों की एक टुकड़ी कोलकाता की सड़क पर प्रतिरोधी मुद्रा में उतरी. यह दृश्य एकबारगी वाममोर्चा वाले पश्चिम बंगाल के सिंगूर-नंदीग्राम के संघर्ष के दिनों की याद दिला गया.

हालांकि, अंतर भी बड़ा साफ था. तब पश्चिम बंगाल की गद्दी पर बुद्धदेव भट्टाचार्य थे और बुद्धिजीवी आंदोलनधर्मी ममता दीदी के साथ खड़े थे, अब गद्दी पर खुद दीदी विराजमान हैं और कोलकाता का बौद्धिक-वर्ग खुद उन्हीं के खिलाफ खड़ा है. समाचारों ने गुरुवार के तृणमूल-विरोधी प्रदशर्न में शामिल बुद्धिजीवी असिम चट्टोपाध्याय को अपनी रिपोर्टिग में यह कहते हुए उद्धृत किया है- पुरानी ममता बनर्जी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच बड़ा अंतर है.

जिस शासक ने विरोध की आवाज को दबाने की कोशिश की, इस राज्य के लोगों ने उसे गद्दी से उतार फेंका है. क्या कोलकाता के बुद्धिजीवियों को लग रहा है कि ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री के रूप में अपने शासन के विरोध में उठने वाली आवाजों को दबाने की कोशिश कर रही हैं ? सौ अफसोस ! मगर इसका उत्तर हां में देना पड़ेगा.

अखबारों ने 12 तारीख के विरोध-प्रदशर्न में शामिल अभिनेता कौशिक सेन का यह बयान दर्ज किया है- माहौल एकदम दमघोंटू है.. जो लोग राज्य सरकार के खिलाफ कुछ बोल रहे हैं, उन्हें विपक्ष का एजेंट बताया जा रहा है. इस मामले में जो हालत वाममोर्चा शासन के समय थी वैसी ही अब भी है.

ममता बनर्जी मां-माटी मानुष के नारे के साथ सत्ता में आयी थीं, अब उनके शासन को मां-माटी-मानुष की रक्षा की कसौटी पर कसा जा रहा है. अगर कोई इस कसौटी पर इसे खोटा बता रहा है, तो उस पर नकेल डालने की कोशिश की जा रही है.

तृणमूल को लगता है कि मां-माटी-मानुष का नारा जीत गया है और इस जीत के साथ सबको बिना परीक्षा के मान लेना चाहिए कि इस नारे से झांकने वाले विजन की सच्चाई भी जीत गयी है. याद करें फरवरी महीने के पार्क-स्ट्रीट बलात्कार कांड को.

पीड़ित महिला ने हिम्मत जुटाकर अपना दुखड़ा सुनाया तो ममता बनर्जी की सरकार ने अपनी फटकार सुनायी-इसके दुखड़े पर मत जाओ, यह तो तृणमूल के शासन को बदनाम करने के लिए गढ़ी गयी कहानी भर है.

जब कोलकाता पुलिस के क्राईम ब्रांच की आइपीएस अधिकारी दमयंती सेन ने दोषियों को पकड़ लिया तो दमयंती सेन को इस काम का इनाम तबादले के रूप में मिला. तर्ज यह रहा कि न रहेंगे सच्चाई से पर्दा उठाने वाले ना उठेगा सच्चाई से पर्दा.

मार्च महीने के 31 तारीख से लेकर अप्रैल महीने के 8 तारीख तक नोनाडांगा (दक्षिणी कोलकाता) इलाके में झुग्गी बस्ती बनाकर रहने वाले लोगों को बर्तन-बासन समेत बेदखल करने का अभियान चला. वे और उनके साथ खड़े मानवाधिकारों के पक्षधर प्रतिरोध पर उतरे तो उन्होंने पुलिस की लाठियां खायी और गिरफ्तारियां हुईं.

तृणमूल सरकार का एक बार फिर से बयान आया कि हमारी सीआइडी को पक्की खबर मिली है- प्रतिरोध करने वालों की माओवादियों से मिलीभगत है. पश्चिम बंगाल में किसानों की आत्महत्या की खबरों पर तृणमूल कांग्रेस का पलटवार रहा कि जो आत्महत्या कर रहे हैं, उन पर कर्ज का बोझ बेटी के ब्याह के लिए दहेज लेने के कारण चढ़ा है. ऐसी खबरों को एकबार फिर से अपने शासन के खिलाफ साजिश रचने की कोशशि कहा गया.

ममता सरकार की टेक है- जो शासन की कमी उजागर करता हो, उसे साजिश कहकर नकार दो. इससे भी बात न बने तो सच कहने का दम भरने वाले को ही गिरफ्तार कर लो, भले वह बेचारा अपने शिल्प की मर्यादा का निर्वाह कर रहा हो.

हाल ही में जादवपुर विवि के एक अध्यापक को पुलिस ने कार्टून बनाने के जुर्म में गिरफ्तार किया. इससे पहले खबर आ ही चुकी थी कि शासन किन अखबारों को सरकारी खरीद के काबिल मानता है, किनको नहीं. यानी, आप पश्चिम बंगाल में हैं, तो वही देखिए-कहिए जो दीदी देखना चाहती हैं, वह नहीं जो अपनी आंखों से दिख रहा हो.


http://www.prabhatkhabar.com/node/146539


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