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न्यूज क्लिपिंग्स् | विकास रोक देगा यह कालाधन-- अरुण कुमार

विकास रोक देगा यह कालाधन-- अरुण कुमार

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published Published on Jun 10, 2011   modified Modified on Jun 10, 2011

आज भारत में लगभग सभी आर्थिक गतिविधियों में अवैध तरीके अपनाये जाते हैं. यह स्थायी और संस्थागत रूप ले चुका है. वर्तमान दशक को घोटालों का दशक कहा जा सकता है. जिन लोगों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, उन्होंने बेशर्मी से मामले को अंतिम समय तक दबाने की कोशिश की. चाहे मामला 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन का हो या फ़िर कॉमनवेल्थ घोटाले का. यही वजह है कि सत्ताधारी पार्टियां साख के संकट से गुजर रही हैं.

घोटालों का कालाधन से सीधा संबंध होता है. जिस तरह घोटालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, उसी तरह काली अर्थव्यवस्था का आकार भी बढ़ता जा रहा है. काले धन का आकार देश के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 50 फ़ीसदी हो गया है, जो 60 के दशक में महज 3 फ़ीसदी था. यानी अब सालाना करीब 33 लाख करोड़ रुपये की काली कमाई हो रही है. 1980 के दशक में देश में 8 बड़े घोटाले हुए थे, जबकि 1991 से 96 के बीच 26 और 1996 से अब तक करीब 160 बड़े घोटाले सामने आ चुके हैं. घोटालों की रकम में भी काफ़ी वृद्धि हुई है.1980 में बोफ़ोर्स सौदा सबसे बड़ा घोटाला माना गया था, जिसमें 64 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. 1992 में हुए हर्षद मेहता कांड में जानकीरमण रिपोर्ट के मुताबिक 3000 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ. हालांकि कई अन्य अनुमानों के मुताबिक घोटाले की रकम इससे कहीं अधिक थी. 1991 से 96 के दौरान शेयर बाजार में 2500 नयी कंपनियां पंजीकृत हुई और आम लोगों का पैसा लेकर गायब हो गयी. इससे आम लोगों का हजारों करोड़ रुपया डूब गया, लेकिन मौजूदा सरकार ने इन कंपनियों के प्रमोटर्स के खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की है. इससे कॉरपोरेट का हौसला बुलंद हुआ और वे फ़ायदे के लिए नये-नये अवैध तरीके अपनाने लगे.

ऐसी स्थिति 1991 के बाद अधिक सशक्त हुई. उदारीकरण के बाद घोटालों का दौर सा शुरू हो गया. 90 के अंतिम दशक में यूटीआइ घोटाले के कारण देश के पूरे वित्तीय ढांचे पर असर पड़ा था. 2008 में हुए सत्यम घोटाले में 7500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. और फ़िर 2008 में ही भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन के रूप में सामने आया. कैग के आकलन के मुताबिक इससे राजस्व को 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. कर्नाटक के बेल्लारी और अन्य जगहों पर अवैध खनन के कारण हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. विभिन्न राज्यों में भूमि आवंटन में गड़बड़ी और जनवितरण प्रणाली के अनाज में धांधली की खबरें अकसर आती रहती हैं. इनसे भी सरकारी राजस्व को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. इस तरह घोटालों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ इनसे होने वाला नुकसान भी काफ़ी बढ़ गया है. हालत यह है कि अब छोटे घोटाले आम लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं करते, जबकि इनसे लोगों का दैनिक जीवन प्रभावित होता है. जैसे प्रश्न पत्र लीक होना, भारी मात्रा में अनाज का सड़ना और नियुक्तियों में धांधली.

आज नीतियों की असफ़लता की दर बढ़ी है और गवर्नेस के स्तर में गिरावट आयी है. इसकी बड़ी वजह काला धन का आकार बढ़ना है. हालत यह है कि आम लोग बड़े राजनेता, मुख्यमंत्री, मंत्री, उद्योगपति, अधिकारी, सैन्य अधिकारी, न्यायाधीश ओद सभी को शक की निगाह से देखने लगे हैं. काला धन का असर इतना व्यापक हो गया है कि जिनपर व्यवस्था चलाने का दारोमदार है, वे भ्रष्ट लोगों के साथ खड़े हो गये हैं. व्यवस्था ऐसी बना दी गयी है कि काम कराने के लिए पैसा देना जरूरी हो गया है. इस व्यवस्था में सहयोग के लिए नेता, अधिकारी और उद्योगपतियों की तिकड़ी बन गयी है. व्यवस्था कितनी खराब हो गयी है, इसका अंदाजा नीरा राडिया टेप प्रकरण से उजागर हो चुका है.

हाल ही में ग्लोबल फ़ाइनेंशियल इंटीग्रिटी की रिपोर्ट आयी, जिसके मुताबिक विदेशी बैंकों में सबसे अधिक कालाधन भारतीयों का है. इसके बावजूद सरकार कालाधन के प्रति गंभीर नहीं दिखती है. कारण साफ़ है, विदेशी बैंकों में जमा कालाधन सामान्य नागरिकों का नहीं, बल्कि प्रभावशाली लोगों का है और सरकार नहीं चाहती कि उनके खिलाफ़ कार्रवाई हो. अगर ऐसा नहीं होता तो जर्मन सरकार द्वारा सौंपी गयी सूची के आधार पर कठोर कार्रवाई की गयी होती. दरअसल, यदि ठोस कार्रवाई होगी तो कई बड़े चेहरे बेनकाब हो जायेंगे, जिससे सत्ता प्रतिष्ठान को भारी फ़जीहत का सामना करना पड़ सकता है. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट की फ़टकार के बावजूद सरकार दोहरे कराधान संधि का हवाला दे नामों को सार्वजनिक करने में असमर्थता जता रही है.अमेरिका और कई अन्य देशों ने स्विट्जरलैंड की सरकार पर दबाव बनाकर अपने नागरिकों द्वारा जमा कराये गये कालेधन को वापस हासिल कर लिया है, तो फ़िर भारत सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती?

सरकार की गंभीरता का अंदाजा हसन अली मामले में की गयी कार्रवाई से लग जाता है. 71 हजार करोड़ रुपये का टैक्स बकाया होने के बावजूद हसन अली पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी. ओखरकार सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद हसन अली मामले की जांच में तेजी आयी. सरकार की सक्रियता के बिना कालाधन वापस लाना संभव नहीं है, क्योंकि यह दूसरे देशों से जुड़ा मसला है. यदि सरकार जल्द नहीं चेती तो कालाधन की समानांतर अर्थव्यस्था और मजबूत हो जायेगी. इससे सरकार की मौद्रिक नीति प्रभावित होगी और विकास की गति शिथिल पड़ जायेगी.


http://www.prabhatkhabar.com/node/11898?page=show


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