Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | विज्ञान से ही सुलझेगी कृषि समस्या --शंथु शांताराम

विज्ञान से ही सुलझेगी कृषि समस्या --शंथु शांताराम

Share this article Share this article
published Published on May 8, 2015   modified Modified on May 8, 2015
जिस तरह भुखमरी के कगार पर पहुंच गए देश को 1960 के दशक की हरित क्रांति ने अन्न से संपन्न देश में बदल दिया था, उसी तरह आधुनिक जेनेटिक्स और जेनेटिक इंजीनियरिंग देश की कृषि समस्याओं के खात्मे में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। अल नीनो समेत भारत पर पर्यावरण के बदलाव का असर पहले ही दिखने लग गया है, ऐसे में विज्ञान की मदद लेने के अलावा देश के पास कोई और विकल्प होगा भी नहीं। भारत के ज्यादातर प्राकृतिक संसाधन लगातार कम होते जा रहे हैं। साथ ही, एक और समस्या है तापमान का बढ़ते जाना। सूखे का खतरा और बढ़ती आबादी का दबाव तो है ही। ऐसे में, कृषि उत्पादकता बढ़ाने की चुनौती को विज्ञान की मदद से ही स्वीकार किया जा सकता है। सबसे बड़ी चुनौती है बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए देश में उत्पादन को बढ़ाना। ऐसे में, अगर भारत कृषि के किसी दूसरे रोमांसवादी विकल्प के चक्कर में फंस जाता है, तो देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

बीस साल से ज्यादा वक्त हो गया, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की पामेला रोनाल्ड ने धान के 11वें क्रोमोजोम में एक ऐसा जीन डाला था, जिसमें रोगों से लड़ने की क्षमता थी। इसका चमत्कारी नतीजा निकला और विज्ञान ने रोग-प्रतिरोधी फसलों के एक नए युग की शुरुआत की। साल 2006 में रोनाल्ड ने इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट के डेविड मेकिन और केनांग शू के साथ मिलकर धान की एक प्राचीन किस्म से एक और जीन अलग किया, जिसे सब1 कहा गया। इस जीन की मदद से धान की फसल बाढ़ के पानी में दो हफ्ते तक खड़ी रह सकती है, वरना धान की आम किस्में बाढ़ के पानी में तीन-चार दिन में ही खराब होने लग जाती हैं।

जेनेटिक इंजीनियरिंग के इस कमाल ने बांग्लादेश के बाढ़ग्रस्त हिस्सों और भारत के कुछ हिस्सों में किसानों की किस्मत ही बदल दी। इस समय एशिया के लाखों किसान धान की सब1 किस्म को नियमित रूप से उपजाते हैं। यह एक बहुत अच्छा उदाहरण है, जो बताता है कि अगर एशिया के गरीब किसानों तक नई वैज्ञानिक उपलब्धियों को ठीक तरीके से पहुंचाया जाए, तो वे उनका पूरा फायदा उठा सकते हैं। रोनाल्ड जैसे वैज्ञानिकों को कुछ लोग नायक मानते हैं, जबकि कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो उनकी आलोचना करते हैं। इन दिनों कृषि में आधुनिक विज्ञान के इस्तेमाल को जितनी तारीफ मिलती है, उससे ज्यादा उसकी निंदा होती है। विज्ञान के विकास में शायद हमेशा ही ऐसा होता रहा है। हर दौर में कुछ न कुछ ऐसे लोग रहे हैं, जो विज्ञान से भय खाते हैं और इसे पसंद नहीं करते। वे वैज्ञानिक विकास को रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। भारत में भी ऐसे बहुत सारे विज्ञान विरोधी और तकनीक विरोधी समूह सक्रिय हैं, जो यह कोशिश करते हैं कि भारतीय किसान अपने सदियों पुराने तौर-तरीकों पर ही चलते रहें। वे पुरानी पड़ चुकी पद्धतियों के इस्तेमाल के लिए अभियान चलाते रहते हैं।

वे पुरातन युग के बीजों और कृषि के उन प्राकृतिक तरीकों के इस्तेमाल की बात करते हैं, जिनके बारे में यह साबित हो चुका है कि उनसे उत्पादकता घटती है। बदकिस्मती से राज्य स्तर की कई पार्टियां भी इस तरह के अभियान से गुमराह हो गई हैं और उन्होंने ऐसी नीतियां अपनानी शुरू कर दी हैं, जो किसानों को हरित क्रांति से भी पुराने दौर में ले जाना चाहती हैं। एक बात तय है कि यह रास्ता तबाही की ओर ही जाएगा। जब जेनेटिक इंजीनियरिंग से तैयार ‘गोल्डेन राइस' की किस्म विकसित की गई, तो इसके विरोधियों ने परीक्षण के लिए उगाई गई फसल को उखाड़कर इसे पूरी तरह बरबाद कर दिया था। इस किस्म की खासियत यह थी कि इससे हासिल चावल में विटामिन ए था, जो करोड़ों लोगों को अंधेपन से बचा सकता था। दस साल से ज्यादा समय हो गया, भारत में भी धान की ऐसी किस्म विकसित की जा चुकी है, लेकिन तकनीक विरोधी लॉबी का डर इस कदर हावी है कि अधिकारी लोग इस किस्म को इजाजत ही नहीं दे पा रहे हैं, जबकि विटामिन ए की कमी वाले लोगों की सबसे बड़ी आबादी भारत में ही है, इनमें से ज्यादातर गर्भवती औरतें और बच्चे हैं।

कुछ लोग इसे नहीं चाहते हैं, सिर्फ इसीलिए जरूरतमंदों तक इसे न पहुंचने दिया जाना आपराधिक है। गोल्डेन राइस भारत में विटामिन ए की कमी से निपटने का सबसे बड़ा हथियार हो सकती थी, लेकिन नहीं हो पा रही है। वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर आम लोगों तक सचमुच विज्ञान आधारित तथ्य पहुंचाए जाएं, तो इससे नहीं डरेंगे। लेकिन जिस तरह का अभियान चलाया जा रहा है, उसमें विवेकशील तर्क के लिए जगह नहीं है। लोगों को यह समझना चाहिए कि हम जो भी चीज खाते हैं, हर उस चीज का जीन बदल चुका है, यह बात अलग है कि उसके बदलने का तरीका दूसरा है। कृषि का अर्थ ही है कि पौधों और पशुओं को अपने इस्तेमाल के लायक बनाना, जिसका अर्थ हुआ, उन सबमें जेनेटिक बदलाव हो जाना। खेतों में लहलहाती फसलों और अपनी थाली में हर रोज परोसे जाने वाले भोजन के लिए हमें विज्ञान का शुक्रगुजार होना चाहिए। वैज्ञानिक समुदाय में आधुनिक जेनेटिक्स के तरीकों को परंपरागत तरीकों की तरह ही बिना जोखिम वाला माना जाता है। कृषि में आधुनिक विज्ञान के इस्तेमाल को लेकर कुछ विघ्नसंतोषी लोगों के मन में जरूर कई तरह की आधारहीन आशंकाएं होती हैं।

जेनेटिक्स, भोजन और अच्छे स्वास्थ्य का बेहतर मेल बिठाने में वैज्ञानिक ही मददगार हो सकते हैं। आधुनिक बायोटेक्नोलॉजिस्ट पामेला रोनाल्ड की शादी जैविक खेती करने वाले किसान राउल एडमचक से हुई। दोनों ने मिलकर आधुनिक विज्ञान और पर्यावरण खेती का मेल बिठाते हुए टिकाऊ खेती का एक तरीका विकसित किया। उन्होंने एक किताब लिखी टुमारोज टेबल: ऑर्गेनिक फार्मिग, जेनेटिक्स ऐंड द फ्यूचर ऑफ फूड। इस किताब में उन्होंने बताया कि भविष्य की खेती के लिए हमें आधुनिक जेनेटिक्स और पर्यावरण के संवेदनशील तत्वों को किस तरह एक साथ जोड़ना होगा। भारत को उन आवाजों को नजरअंदाज करना होगा, जो वैज्ञानिक और आर्थिक रूप से फायदेमंद इस खेती की राह रोकने पर तुली हुई हैं। भारत के पास उन कृषि वैज्ञानिकों की एक बड़ी फौज है, जिन्होंने इस देश को हरित क्रांति दी थी। यही लोग कृषि में आधुनिक विज्ञान को आगे बढ़ाएंगे, बशर्ते उन्हें सरकार का सहयोग मिले।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


http://www.livehindustan.com/news/guestcolumn/article1-Snthu-Shantaram-Professor-University-of-Iowa-Green-Revolution-genetics-genetic-engineering-479424.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close