Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | विदेश से ज्यादा देश में ही है काला धन- मोहन गुरुस्वामी

विदेश से ज्यादा देश में ही है काला धन- मोहन गुरुस्वामी

Share this article Share this article
published Published on Nov 12, 2014   modified Modified on Nov 12, 2014
काला धन, दरअसल, हर वह आय है, जिस पर राज्य को किसी तरह का कर (टैक्स) नहीं दिया जाये. यह आय वैध तरीकों से हो सकती है या फिर अवैध तरीकों से, जैसे स्मगलिंग, भ्रष्टाचार और ड्रग्स के जरिये. सालाना कितना काला धन पैदा होता है, इसका आंकड़ा हर साल अलग-अलग होता है. हालांकि, एक बहुप्रसारित, पर कथित तौर पर गोपनीय अध्ययन (जो नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक फायनांस एंड पॉलिसी (एनआइपीएफपी) ने की है और जो सरकार द्वारा भी मानी जाती है) से पता चला है कि 2013 में काली अर्थव्यवस्था सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 75 फीसदी थी.

इससे पहले, सरकार द्वारा मान्य, 1985 के एनआइपीएफपी के मुताबिक, वह सकल घरेलू उत्पाद का 21 फीसदी था. यानी कुल जीडीपी यदि 1,73,420 करोड़ रुपये थी, तो काला धन 3,64,182 करोड़ रुपये था. 2014 में भारत की जीडीपी 2.047 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जो लगभग 7.277 ट्रिलियन पीपीपी (एक डॉलर बराबर 60 रुपया) के बराबर है. 2014 में भारत सरकार 13.64 लाख करोड़ रुपये कर और ड्यूटी के तौर पर उगाहने की सोच रही है. इसका अर्थ यह हुआ कि वह अतिरिक्त कर और ड्यूटी नहीं वसूल रही है, जो इसका लगभग 75 फीसदी (10.4 लाख करोड़) है. यह बहुत बड़ी रकम है और कोई भी सरकार यह सोच कर ही खुश हो जायेगी कि इतनी बड़ी रकम से वह बहुत कुछ अच्छा कर सकती है. इसके बाद हम अपनी जीडीपी का औसत मिलान चीन के जीडीपी के साथ कर सकते हैं.

भारत में केवल साढ़े तीन करोड़ लोग टैक्स देते हैं, जिसमें से 89 फीसदी अपनी आय 0-5 लाख के दायरे में रखते हैं. यानी केवल 11 फीसदी ही अपनी सालाना आय 5 लाख रुपये से अधिक बताते हैं. यह सचमुच खीझ जगानेवाला है, क्योंकि पिछले साल भारतीयों ने लगभग 21 लाख नयी कारें और एसयूवी खरीदी. यह एक धीमा साल था. जाहिर तौर पर, बहुत लोगों को टैक्स देना चाहिए था, जो नहीं दे रहे हैं. पिछले कुछ वर्षो में, धन्यवाद अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, रामदेव, राम जेठमलानी और सुब्रमण्यम स्वामी जैसे व्यक्तित्वों का, काले धन का केंद्र बाहर रहनेवाले भारतीयों पर चला गया है. इसके कुछ बहुत ही अजीबोगरीब और गगनचुंबी आंकड़े भी दिये गये हैं.

कहा गया कि हर भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रुपये आ जायेंगे, अगर बाहर से सारा काला धन वापस आ जाये. उन्होंने यह भी वादा किया कि वह सत्ता में आने के सौ दिनों के भीतर ही काला धन वापस ले आयेंगे. जाहिर तौर पर, आंकड़े कहीं भी अनुमान के करीब नहीं हैं. स्विस नेशनल बैंक ने कहा है कि भारतीयों के नाम पर चल रहे खातों में 14,400 करोड़ रुपये जमा हैं और पिछले साल की तुलना में लगभग 6,000 करोड़ बढ़ गये हैं. इसका एक बड़ा हिस्सा कानूनी तरीके से भेजा या जमा किया हो सकता है, क्योंकि भारतीयों को छूट है कि वह प्रति वर्ष 1,25,000 डॉलर अपने व्यापारिक उद्देश्यों के लिए रख सकते हैं. यदि मान लें कि दूसरे मनी हैवंस में इससे भी ज्यादा पैसा है, तो वह रकम उसके आसपास भी नहीं फटकेगी, जिसका दावा किया जा रहा है.

हालांकि, बाहर के पैसे का बड़ा हिस्सा एफडीआइ के तौर पर (भारत का 50 फीसदी एफडीआइ) मॉरीशस से आता है. या फिर चुनाव के समय राजनेताओं द्वारा आ जाता है. यह भी एक तथ्य है कि काला धन का अधिकांश भारत में ही रह जाता है, जहां यह अर्थव्यवस्था के चक्कों को गतिमान करता है. प्लास्टिक मनी की खोज के बावजूद, चेक से अधिक भुगतान होने के बावजूद, भारत में अब भी अधिकतर भुगतान नकद में ही होता है. अगर कैश में अधिक भुगतान होगा, तो छुपाना और चोरी करना आसान और संभवत: अनिवार्य हो जाता है.

1985 में राजीव गांधी सरकार ने चेक के बाउंस करने को एक अपराध माना था. इसके पीछे तर्क यह था कि चेक की स्वीकार्यता बढ़े. हालांकि, हमारी अदालतों ने बाउंसर के अभियोजन को पीड़ित की ही यातना बना दिया है. चेक बाउंस करने के मामलों ने अदालती व्यवस्था का दम घोंट रखा है, इसीलिए हम अब नकद की व्यवस्था में लौट रहे हैं. परिणाम, ढाक के तीन पात, जो टैक्स की चोरी को बढ़ावा देता है.

राजनीति पूर्णकालिक धंधा है. जो लोग इसमें समर्पित हैं, वे आमतौर पर जीविकोपार्जन के लिए आठ घंटे की नौकरी नहीं करते हैं. कुछ के पास निजी साधन होंगे, पर अधिकांश को धनाढ्य लोग ही सहारा देते हैं, ताकि वे संपर्क बढ़ा सकें, जो बाद में राजनीतिक आधार में बदल सके. जिस स्तर पर एक राजनेता होता है, वही उसके पास आनेवाले धन का स्तर तय करता है. अगर आप करीब से देखें, तो बहुत कम नेताओं ने कभी काम किया है या कर रहे हैं. हालांकि, इनमें से अधिकतर अच्छी तरह रहते हैं, अपनी संपत्ति खरीदते-बनाते हैं और ऊंची आय वाला जीवनस्तर कायम करते हैं. सबसे गजब बात तो यह है कि इनमें से अधिकतर शीर्ष के नेता अपना जीवन-चरित्र बताते हुए यह कहने से नहीं चूकते कि उनका शुरुआती जीवन बहुत तकलीफदेह था. नदी पार कर पढ़ने जाने की कहानी खासी लोकप्रिय है. जाहिर है कि तथाकथित पार्टी फंड का अधिकांश हिस्सा पार्टी के खजाने तक नहीं पहुंचता है.

ऐसा नहीं है कि राजनीतिक दलों के पास प्रत्यक्ष तौर पर पैसा नहीं पहुंचता और ये इसकी घोषणा नहीं करते. वित्तीय वर्ष 2004-05 और 2011-12 के बीच कॉरपोरेट और व्यापारिक घरानों ने राष्ट्रीय पार्टियों के कोष का 87 फीसदी योगदान दिया. पार्टियों ने इन वर्षो में जो 435.87 करोड़ रुपये जमा किये, उनमें से 378.89 करोड़ कॉरपोरेट और व्यापारिक घरानों ने दिये. भाजपा ने सबसे अधिक 192.47 करोड़ का अनुदान पाया. ये सारी रकम 1,334 दाताओं से आयी, वहीं कांग्रेस को कुल 172.25 करोड़ की प्राप्ति 418 दाताओं से हुई. इनके अलावा, इन दो बड़े दलों ने ‘अज्ञात दाताओं' से अतिरिक्त आमदनी की बात कही है. कांग्रेस के पास ऐसे दानदाता अधिक हैं. कांग्रेस को ऐसे दाताओं से 1,185 करोड़ रुपये मिले. भाजपा ने लगभग 600 करोड़ रुपये कमाये.

1772 में भारत को लूटने के खिलाफ अपना बचाव करते हुए, रॉबर्ट क्लाइव ने बताया था कि जीत ने उसे किस परिस्थिति में पहुंचा दिया है. बड़े-बड़े राजा उसके आनंद के लिए कोशिश करते हैं, धनी बैंकर एक-दूसरे से प्रतियोगिता करते हैं, ताकि उसकी कृपा उन्हें मिले. उसने अचरज दिखाते हुए कहा था, उस लहजे से तो मैं काफी ईमानदार हूं. हमारी ढीलमढीली व्यवस्था और खोखले स्तर को देखते हुए हमारे व्यापारिक, नौकरशाही से जुड़े, राजनीतिज्ञ और आपराधिक नेता भी यही सब कुछ कह सकते हैं. (अनुवाद : व्यालोक)

http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/176877.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close