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न्यूज क्लिपिंग्स् | विवादों का अंतहीन सिलसिला -- ज्ञानेन्द्र रावत

विवादों का अंतहीन सिलसिला -- ज्ञानेन्द्र रावत

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published Published on Sep 16, 2016   modified Modified on Sep 16, 2016
सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर्नाटक को कावेरी नदी का 15 हजार क्यूसेक पानी तमिलनाडु को देने के आदेश के बाद से कर्नाटक सुलग रहा है। वहां किसानों और कन्नड़ समर्थकों के हिंसक आंदोलन के चलते बेंगलुरू के कई इलाकों में कर्फ्यू लगाना पड़ा। हाईवे बंद हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोनों राज्यों की जनता से शांति बनाए रखने की अपील की है।

कर्नाटक सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप तमिलनाडु को पानी तो छोड़ा जा रहा है लेकिन उसने शीर्ष अदालत के निर्णय पर पुनर्विचार की अपील की। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने कर्नाटक सरकार की सुप्रीम कोर्ट के 5 सितम्बर के आदेश पर रोक लगाने की अपील खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि आदेश के अनुपालन नहीं करने के पीछे कानून और व्यवस्था की समस्या को आधार नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने पानी की मात्रा 15 हजार क्यूसेक के स्थान पर 12 हजार क्यूसेक करते हुए इसको 20 सितम्बर तक रोजाना तमिलनाडु को देने का आदेश दिया है।

दरअसल कावेरी जल ग्रहण क्षेत्र 81,155 वर्ग किलामीटर विस्तीर्ण है। इसमें कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी आते हैं। 800 किलोमीटर लम्बी कावेरी नदी कर्नाटक के पश्चिमी घाट के कुर्ग यानी कोडगु स्थित ब्रह्मगिरी पर्वत से निकलती है। उसका ऊपरी बहाव क्षेत्र कर्नाटक में तथा निचला बहाव क्षेत्र तमिलनाडु तथा पुड्डुचेरी में है। स्वयं तो कावेरी केरल को स्पर्श नहीं करती, किंतु उसकी कुछ सहायक नदियां केरल का जल प्राप्त करती हैं। इनमें से कुछ का जलग्रहण क्षेत्र केरल में भी पड़ता है। कावेरी विवाद में 1882 और 1924 में हुए दो समझौतों का हवाला दिया जाता है। ये तत्कालीन मद्रास राज्य और देशी राज्य मैसूर के बीच हुए थे। कुछ जानकार केवल 1924 के समझौते की ही पुष्टि करते हैं। उस समय मद्रास को ब्रिटिश शासित प्रांत या मद्रास प्रेसिडेंसी कहा जाता था। कुर्ग, जिसमें कावेरी का उद‍्गम है, ब्रिटिश चीफ कमिश्नर के अधीन था। केरल का मालाबार का क्षेत्र मद्रास प्रांत का हिस्सा था और पांडिचेरी फ्रांसीसियों का उपनिवेश था। 1924 के समझौते के कुछ प्रावधान 18 फरवरी 1974 को समाप्त हो जाने थे, जिसके बाद नये सिरे से बातचीत होनी थी। 1956 में राज्यों का पुनर्गठन हुआ और कर्नाटक राज्य बना, तब कुर्ग और मैसूर कर्नाटक के अंग बन गए। मालाबार के कुछ क्षेत्र मद्रास राज्य में और शेष केरल में मिला दिये गए। पांडिचेरी केन्द्र शासित क्षेत्र बन गया। दरअसल केरल सहित यही क्षेत्र कावेरी जल विवाद के मूल में है।

दरअसल 1924 के समझौते में इस बात का उल्लेख था कि मद्रास कावेरी के जल से 3 लाख 2 हजार एकड़ अतिरिक्त भूमि की सिंचाई कर सकता है और मैसूर 2 लाख 84 हजार एकड़ अतिरिक्त भूमि सींचने के साथ-साथ कृष्णराज सागर बांध में जल भंडार संचित कर सकता था। 1928 से लेकर 1971 तक की अवधि में वास्तव में तमिलनाडु ने 11 लाख 56 एकड़ अतिरिक्त भूमि में सिंचाई की और कर्नाटक ने 3 लाख 68 हजार एकड़ अतिरिक्त भूमि को सिंचाई सुविधाएं दीं। इस तरह तमिलनाडु ने समझौते में जितने का प्रावधान था, उससे बहुत अधिक भूमि में सिंचाई की और अधिक जल लिया। निर्दिष्ट जलराशि से अधिक जल का उपयोग ही वर्तमान विवाद का मुख्य कारण है। उसके बाद से सम्बद्ध पक्षों में समझौते कराने के अनेक प्रयास किए गए। 25-26 अगस्त 1976 को तमिलनाडु के राज्यपाल और कर्नाटक सरकार के बीच इस बात पर सहमति हुई कि दोनों राज्य अपनी नहर व्यवस्था का आधुनिकीकरण करके क्रमश: 100 और 25 टीएमसी जल बचाएं जिससे नयी परियोजनायें लागू की जा सकें। लेकिन तमिलनाडु में नयी निर्वाचित सरकार ने आते ही उस सहमति को मानने से इनकार कर दिया। उसके बाद केन्द्र सरकार ने तमिलनाडु की याचिका पर 1990 में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य न्यायाधीश चित्तोष मुखर्जी की अध्यक्षता में एक ट्रिब्यूनल का गठन कर दिया। 25 जून 1991 को ट्रिब्यूनल ने एक अंतरिम आदेश दिया कि कर्नाटक तमिलनाडु को 205 टीएमसी पानी दे। लेकिन कर्नाटक ने राज्यपाल से इस आशय का आदेश जारी करवा दिया कि नदी जल का मामला राज्य का विषय है।

1990 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कावेरी नदी जल प्राधिकरण का गठन हुआ, जिसमें चारों राज्यों के मुख्यमंत्री सदस्य थे। 2007 में ट्रिब्यूनल ने दी अपनी रिपोर्ट में पहले के सभी आदेशों को सही माना। अब कर्नाटक का कहना है कि 1924 के समझौते में उसके साथ न्याय नहीं हुआ है। जबकि तमिलनाडु का मानना है कि 1924 के समझौते में कावेरी के पानी में जो उसका हिस्सा तय हुआ था, वह उसे अब भी मिलना चाहिए। फिलहाल इस संकट का कोई हल निकलने की उम्मीद कम ही है क्योंकि हर राज्य अपने लिए ज्यादा से ज्यादा पानी चाहता है ताकि वह अपने राज्य की जनता के कोप का भाजन न बने।


http://dainiktribuneonline.com/2016/09/%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%85%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a


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