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न्यूज क्लिपिंग्स् | विशेष संपादकीयः सरकार ही भेदभाव करे तो कैसे रुकेगी कन्या भ्रूणहत्या?

विशेष संपादकीयः सरकार ही भेदभाव करे तो कैसे रुकेगी कन्या भ्रूणहत्या?

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published Published on Nov 22, 2011   modified Modified on Nov 22, 2011
पंजाब में पुरुष-स्त्री का अनुपात 1000/893 है। यानि हर 1000 लड़कों के मुकाबले सिर्फ 893 लड़कियां। विकास और समृद्धि के मामले में अगुआ रहने वाला पंजाब लिंगानुपात में शर्मनाक तरीके से पिछड़ा है। बेटियां जन्म से पहले मार दी जाती हैं। कन्या भ्रूणहत्या पर रोक के लिए सरकार घोषणाएं और योजनाएं लाती हैं पर लड़के-लड़की में भेद की जड़ इतनी गहरी है कि व्यवहार में दिख जाता है।

दोनों ने जीत हासिल की। दोनों ने देश का सिर ऊंचा किया। लेकिन, बेटों को दो करोड़ और बेटियों को पच्चीस लाख। दो दिन पहले ही ये बेटियां जिंदा जलने से बची थीं। तब इनका सामान जला था। अब 25 लाख की खैरात ने इनका सम्मान भी राख कर दिया। अपनी जीत को ऑटोरिक्शा पर ढो रहीं बेटियां शिकायत करें भी तो किससे? आखिरकार, किसी और ने नहीं खुद सरकार ने बता दिया कि वो बेटियों को बेटों से आठ गुना कमतर आंकती है। जब वे अस्पताल में इलाज करा रही थीं, तो सरकार का कोई नुमाइंदा हालचाल पूछने नहीं पहुंचा।

वे तीन दिन तक एक ही ट्रैकसूट पहने रहीं क्योंकि उनके कपड़े उस बस के साथ जल गए थे, जिससे कूदकर उन्होंने जान बचाई थी। और, यही सरकार बेटियों को स्कूल जाने के लिए मुफ्त साइकिल बांट रही है। वर्ल्ड कप से पंजाब सरकार कबड्डी को बचाने का बड़ा काम कर रही है। बेटे-बेटी का फर्क नहीं किया होता तो एक पंथ दो काज होता। कबड्डी के साथ बेटियां भी बढ़तीं। क्या फर्क पड़ता है कि जीत बेटों ने हासिल की या बेटियों ने। सरमायेदार ऐसा सोचते हैं तो क्या संदेश जाता है। बेटों की जीत जीत है और बेटियों की जीत सिर्फ एक सूचना? आंखें दो बार छलकीं। पहले बेटियों की जीत पर, फिर इनाम के फर्क पर। खुशी के आंसू, दुख के भी। दुख यह कि ये उस राज्य में हुआ, जो अजन्मी बेटियों को मारने का कलंक ढो रहा है। लोग बेटियां इसलिए नहीं चाहते कि समाज में उन्हें कभी बराबरी का मौका नहीं मिलता।

इस मनोवृत्ति को सरकारी योजना बदल सकती हैं? नहीं। इंदिरा गांधी या कल्पना चावला के किस्से सुनाने भर से बराबरी का समाज नहीं बनेगा। यह तभी होगा जब हम बेटियों को सांत्वना के मुलम्मे में खैरात की बजाय हक देना शुरू करेंगे। बठिंडा की सांसद हरसिमरत कौर ने कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम इस राज्य में नन्ही छांव के माध्यम से उम्मीद की किरण जगाई है लेकिन जब हक की बात हो तो बराबरी का हक हो। तभी नन्ही छांव बरगद जैसा विशाल आकार ले सकेगी।

http://www.bhaskar.com/article/PUN-LUD-stop-female-feticide-2582180.html


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