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न्यूज क्लिपिंग्स् | विषमता का विकास

विषमता का विकास

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published Published on Jan 22, 2020   modified Modified on Jan 22, 2020

पिछले कई सालों से एक जो नारा सबसे ज्यादा प्रचारित रहा है वह है ‘सबका साथ सबका विकास’! चूंकि खुद भाजपा सरकार की ओर से यह नारा सबसे ज्यादा प्रचारित किया गया है, इसलिए कायदे से अपेक्षा यह थी कि देश के सभी तबकों के लोगों को विकास के तमाम अवसरों में बराबर की सहभागिता मिलती और इस तरह विकास ज्यादा समावेशी होता। लेकिन यह बेहद निराशाजनक तस्वीर है कि बीते कुछ सालों से विकास की कसौटी पर जिस तरह की अर्थनीतियां लागू रहीं, उसका हासिल ‘सबका विकास’ के बिल्कुल उलट रहा। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले संगठन- ऑक्सफेम के संपत्ति पर नियंत्रण के मामले पर आए अध्ययन के मुताबिक विकास और अर्थव्यवस्था की जो प्रकृति रही है, उसमें देश के एक खास तबके के पास संपत्ति का बेहद असंतुलित केंद्रीकरण हुआ।

‘टाइम टू केयर’ नाम से जारी इस अध्ययन के मुताबिक देश के एक फीसद सबसे अमीर लोगों के पास देश की कम आय वाली सत्तर फीसद आबादी की तुलना में चार गुना से ज्यादा संपत्ति है। क्या यह तथ्य अपने आप में बताने के लिए काफी नहीं है कि विकास का दायरा बढ़ाने के दावे के बीच देश के संसाधन और संपत्ति महज कुछ लोगों के हाथ में सिमटती गई है? करीब दो साल पहले इसी संगठन की ओर से जारी आंकड़े के मुताबिक भारत की अट्ठावन फीसद संपत्ति देश के एक फीसद लोगों के पास थी। इस साल के आंकड़े की तल्ख हकीकत यह है कि देश में निचले तबके के सत्तर फीसद लोगों के पास जितनी कुल जायदाद है, उससे चार गुना ज्यादा संपत्ति इन महज एक फीसद लोगों के पास सिमटी हुई है। इस दौरान देश के इन शीर्ष एक फीसद अमीरों की संपत्ति में उनचालीस फीसद की बढ़ोतरी हुई। 

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


जनसत्ता, https://www.jansatta.com/editorial/jansatta-editorial-sampadakiye-column-on-abnormality-development/1293342/


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