Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | विस्फोटक है श्रम कानून- अमिताभ घोष

विस्फोटक है श्रम कानून- अमिताभ घोष

Share this article Share this article
published Published on May 22, 2012   modified Modified on May 22, 2012
एक एचपी बीपीओ कर्मचारी की 13 दिसंबर 2005 को कंपनी की लीज वाली कार के ड्राइवर द्वारा बलात्कार और हत्या की घटना काफी दुखद थी. कंपनी के शेयरधारकों और निदेशकों को व्यक्तिगत तौर पर इसके लिए जिम्मेवार ठहराना तर्क से परे नहीं था, हां अप्रत्याशित जरूर था. दूसरी घटना में ठेकेदार या कंपनी द्वारा कर्मचारियों के प्रोविडेंट फंड में गड़बड़ी के कारण कंपनी के चेयरमैन का पासपोर्ट जब्त कर लिया गया. ये और ऐसी ही दूसरी कई घटनाएं हमारा ध्यान उन मौजूदा कानूनों की ओर ले जाती हैं, जो वास्तव में लैंडमाइन के समान हैं.

ऐसा हो सकता है कि कोई कंपनी प्रमुख एक वादा करे, लेकिन उस वादे को उसकी जानकारी के बगैर उल्लंघन हो रहा हो. इस उल्लंघन के लिए कंपनी के मुखिया को ही जिम्मेवार मान लेना उसके लिए बेहद खतरनाक होगा. उदाहरण के तौर पर इएसआइ एक्ट को ही लें. इस एक्ट में इसके दायरे में आने वाले सभी कर्मचारियों को इंश्योरेंस नंबर देना अनिवार्य है और इसमें गड़बड़ी की शिकायत मिलने पर संस्था के मुखिया के खिलाफ सजा का प्रावधान भी है. उसी प्रकार इपीएफ(एमपी) एक्ट 1952, ग्रैच्युटी एक्ट 1972 और इएसआइ एक्ट 1948 और कर्मचारियों की मौत या विकलांगता की स्थिति में दस्तावेजों के आधार पर सामाजिक सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश तय हैं.

वेतन में समानता, महिला कर्मचारियों से भेदभाव रोकने की जिम्मेवारी भी संस्था के मुखिया की है. इसकी अनदेखी करने पर समान वेतनमान कानून 1976 के तहत सजा के कड़े प्रावधान किये गये हैं. इसके तहत न्यूनतम जुर्माना दस हजार रुपये या 6 महीने से एक साल तक की सजा का प्रावधान है.

ऐसे में किसी संस्था के मुखिया पर यह जिम्मेवारी है कि वह इस बात की गारंटी ले कि कंपनी की प्रक्रिया और कार्य पूरी तरह सुरक्षित और व्यवस्थित हैं. रोजगार देने वाले पर विभिन्न कानूनों, नियमों, विनिमयों का पालन करने की जिम्मेवारी दफ्तर के तय समय के बाद भी रहती है. ऐसे में कंपनी के मुखिया की जवाबदेही घड़ी की सुई के साथ ही चलती रहती है. यह चौबीसों घंटे, सातों दिन रहती है. इसका मतलब है नौकरी देने वाले पर कर्मचारियों का पीछा करने की जिम्मेवारी है. अगर साप्ताहिक छुट्टी के दौरान भी इएसआइ एक्ट 1948 के तहत लाभ का हकदार कोई कर्मचारी या उसके परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाये, तो कर्मचारी का समय पर इलाज हो जाये, यह जिम्मेवारी नौकरी देने वाले की बनती है. इसमें किसी प्रकार की ढिलाई उसके लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती है.

इस कानून का जन्म भ्रष्टाचार, गड़बड़ियों और अराजकता के कारण हुआ है. इस दुनिया में शायद कभी किसी कानून की कोई जरूरत नहीं होती, अगर लोगों के दिल और दिमाग में भ्रष्टाचार, अराजकता, मानसिक विकृतियां नहीं होतीं. कानून गलत ताकतों पर नियंत्रण स्थापित करने का एक तंत्र है, एक पद्धति है. एक सभ्य समाज में स्वीकार्य और गैर स्वीकार्य कामों की तर्कसंगत व्याख्या करने का काम कानून ही करता है. अगर हमारे गैर स्वीकार्य काम हमारे स्वीकार्य कामों पर हावी हो जाते हैं, तब ऐसी स्थिति पर नियंत्रण रखने के लिए कुछ साधनों की जरूरत होती है और उसका समाधान हम कानून में पाते हैं. इसके उलट अगर हम मामले को अपने नजरिये से देखें तो यह कानून बेहतर नजर आयेगा, क्योंकि तब हमें लगेगा कि नौकरी देने वाला कर्मचारियों के हित में काम कर रहा है और वह कानून को बोझ नहीं, बल्कि दिशानिर्देश मानता है.

ऐसे में यह मामला रवैये से भी जुड़ा हुआ लगता है. यह जरूरी है कि हम हमेशा कानून के साथ खड़े हों और सभी कानून और नियमों का सही-सही पालन करें. लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि कानून निर्माता जागें और इस कानून की खामियों को दूर करें.
किसी संस्था के शीर्ष अधिकारी को जवाबदेह मानना सही है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इससे दोषियों को सजा मिल ही जाती है. ऐसे में बदलते परिदृश्य को देखते हुए कानून में बदलाव और इसे व्यापक बनाने की सख्त जरूरत है.

यह तर्क कंपनी डायरेक्टरों या इसके प्रमोटरों के पक्ष में नहीं, बल्कि यह तय करने के लिए है कि सभी इसमें शामिल हों और दोषियों को समान रूप से सजा मिल सके. जब तक यह समय नहीं आयेगा, हमारे कानूनों का मजाक उड़ाया जाता रहेगा और इस पर होने वाली बहसों का जमीनी स्तर पर कोई असर नहीं होगा.

http://www.prabhatkhabar.com/node/142832
 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close