Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | व्यापम : द ग्रेट भर्ती घोटाला,55 केस, 2530 आरोपित, 1980 गिरफ्तार

व्यापम : द ग्रेट भर्ती घोटाला,55 केस, 2530 आरोपित, 1980 गिरफ्तार

Share this article Share this article
published Published on Jul 6, 2015   modified Modified on Jul 6, 2015
स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से मध्य प्रदेश एक पिछड़ा राज्य है. वहां प्रति 18,650 लोगों पर मात्र एक डॉक्टर उपलब्ध है. इस कमी को पूरा करने के लिए राज्य में कई वर्षो तक सैकड़ों अयोग्य और अक्षम लोग पैसे और पैरवी के सहारे डॉक्टर की डिग्री हासिल करते रहे. बाद में राज्य की अन्य नौकरियों में भी घूस, हेराफेरी और अनियमितताएं बरती जाने लगीं. 2013 से इस घोटाले की परतें खुल रही हैं.

इस दौरान जहां वरिष्ठ राजनेताओं से लेकर व्यावसायिक परीक्षा मंडल के अधिकारियों तक और छात्रों-अभिभावकों से लेकर शिक्षकों तक की मिलीभगत सामने आयीं, वहीं एक के बाद एक 42 आरोपितों व गवाहों की संदेहास्पद परिस्थितियों में मौतों ने व्यापम घोटाले को स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे जटिल, भयावह और व्यापक घोटाला बना दिया है. 55 केस, 2530 आरोपित, 1980 गिरफ्तारियों के बाद भी इस महाघोटाले का पूरा सच सामने नहीं आ सका है. इस घोटाले की तह तक पहुंचने का एक प्रयास आज के समय में.

ब्रजेश राजपूत
विशेष संवाददाता, एबीपी न्यूज, भोपाल

मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले ने सरकारी खजाने को तो बहुत नुकसान नहीं पहुंचाया, लेकिन प्रदेश की प्रतिभाआंे को बेमौत मार डाला. सरकार की नाक के नीचे सालों से चल रहा यह घोटाला साबित करता है कि जब बाड़ ही फसल को खा रही थी, तब प्रदेश में सरकारी तंत्र जान-बूझ कर इससे आंखें मूंदे हुए था. मंत्री, अफसर और दलालों का नापाक गंठबंधन नियमों की धज्जियां उड़ा कर मनमानी कर रहा था..

भोपाल के लिंक रोड एक के किनारे बने खूबसूरत चिनार पार्क के खत्म होते ही जो रास्ता ऊपर चढ़ता है, बस वहीं है व्यापम यानी मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल का दफ्तर. कुछ साल पहले तक यह दफ्तर प्रदेश भर के बेरोजगारों की आशाओं का केंद्र होता था. पढ़े-लिखे नौजवान इस बिल्डिंग के सहारे अपने सपनों को पूरा होता देखने की आस संजोते थे, मगर आज यही दफ्तर भोपाल का सबसे बदनाम पता हो गया है. आखिर ऐसा हुआ क्या, जो अपने बनने के तैंतीस साल के भीतर ही एक सरकारी संस्था बेइमानी और बदइंतजामी का पर्याय हो गयी.

व्यापम के शुरुआती कदम

दरअसल, 1982 से शुरू हुए व्यापम का काम प्रदेश के मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों के लिए प्रवेश परीक्षा कराना ही था. तब परीक्षाओं के मानदंड बड़े कड़े होते थे, इसलिए व्यापम की निप्पक्षता उन दिनों संदेह के परे थी. लेकिन 2008 में व्यापम से सरकारी नौकरियों की भर्तियां भी करायी जाने लगीं. शिक्षक, पुलिस कांस्टेबल, सब इंस्पेक्टर, फूड इंस्पेक्टर, वन रक्षक और जेल रक्षक सरीखी नौकरियों की परीक्षाएं भी व्यापम आयोजित करने लगा. इन परीक्षाओं का दबाव बढ़ते ही प्रदेश भर से ये शिकायतें भी आने लगीं कि व्यापम की ओर से आयोजित मेडिकल कॉलेज के दाखिले की परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हो रहा है. पहचान छिपा कर परीक्षाएं दी जा रहीं है.

खुलने लगीं रैकेट की परतें

कुछ जिलों में नकली छात्र पकड़े भी गये और मुन्ना भाइयों के रूप में उनकी पहचान कर खबरें भी छपीं, लेकिन पहला बड़ा खुलासा हुआ 7 जुलाई, 2013 को इंदौर में डॉ जगदीश सागर की गिरफ्तारी के बाद. डॉ जगदीश मध्य प्रदेश में चल रहे मेडिकल कॉलेज में धांधलीबाजी के रैकट का सरगना निकला. उसके पास से काफी नगदी और ऐसे दस्तावेज बरामद हुए, जिनसे इस रैकेट की परतें खुलनी शुरू हुईं.

वह ठेके लेकर मेडिकल कॉलेज में दाखिला करवाता था, जिसमें उसकी पूरी मदद करते थे व्यापम में बैठे अफसर.
इस रैकेट में पैसे लेकर छात्र को पास कराने के सारे इंतजाम होते थे. संबंधित छात्र का रोल नंबर इस तरह से रखा जाता था कि आसपास बैठे साल्वर उसे नकल कराते थे. कई दफा साल्वर ही नकली पहचान बना कर पेपर साल्व कर देते थे. छात्र अपनी कापी (ओएमआर शीट) यदि खाली छोड़ आये, तो उसे व्यापम में अंकों की फिर से जांच के नाम पर नंबर बढ़ा दिये जाते थे और यदि इसमें भी कुछ ना हो तब भी रिजल्ट की लिस्ट में नाम जोड़ कर मेडिकल कॉलेज में दाखिला करा दिया जाता था.

15 से 25 लाख में सौदा

व्यापम मामले की जांच कर रहे एक अधिकारी की मानें तो धांधली के जितने तरीके हो सकते थे, सारे हथकंडे अपनाये जाते थे मनपसंद लोगों के दाखिले और चयन के लिए. मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए 15 से 25 लाख रुपये तक लिये जाते थे, जबकि पीजी सीट के लिए यह रकम चार गुना तक बढ़ जाती थी. जांच से यह बात सामने आयी है कि प्रदेश भर से इकट्ठी रकम व्यापम के चेयरमैन से लेकर परीक्षा नियंत्रक और तकनीकी विशेषज्ञ तक बांटी जाती थी. यह धांधली इतने बड़े पैमाने पर होती रही कि सन् 2012 की पीएमटी परीक्षा में 712, तो 2013 की परीक्षा में 876 फर्जी दाखिले सामने आये.

मंत्री के बंगले से भी सिफारिशें

जब मेडिकल कॉलेज की सीटों में यह फर्जीवाड़ा चलने लगा, तो फिर व्यापम की दूसरी परीक्षाओं में भी यही तरीका अपना कर भर्तियां करायी जाने लगीं. व्यापम तकनीकी शिक्षा विभाग के अधीन दफ्तर था, इसलिए विभाग के मंत्री को इस फर्जीवाड़े की भनक लगी, मगर इसे बंद करने की जगह मंत्री के बंगले से भी मेडिकल कॉलेज से लेकर नौकरियों तक की सिफारिशें आने लगीं और पैसों के खेल में मंत्री उनका स्टाफ और व्यापम के लोग शामिल होने लगे.

मेडिकल कॉलेज में दाखिले की यह गड़बड़ी पकड़ी गयी, तो दूसरी सरकारी नौकरियों का फर्जीवाड़ा भी सामने आने लगा. घोटाले का दायरा बढ़ा तो इंदौर पुलिस से इस मामले की जांच सितंबर, 2013 में एसटीएफ को दे दी गयी. कोर्ट में जब इस घोटाले की अर्जियां लगीं, तो एसटीएफ की जांच हाइकोर्ट की निगरानी में होने लगी और फिर जब इस व्यापक घोटाले की सीबीआइ जांच की मांग उठी, तो हाइकोर्ट ने तीन सदस्यों की एसआइटी बना दी, जो एसटीएफ की नये सिरे से निगरानी करने लगी.

हालांकि, इस बीच में जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, व्यापम व्यापक होता गया. व्यापम के परीक्षा नियंत्रक पियूष त्रिवेदी और सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा के बाद तकनीकी शिक्षा मंत्री का ओएसडी ओपी शुक्ला गिरफ्तार हुआ, तो पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा भी नहीं बच सके. शर्मा का करीबी और खनन कारोबारी सुधीर शर्मा भी जांच के चपेट में आया और अब सब जेल में है.

आरोप यह है कि प्रभावशाली लोग नौकरियों और मेडिकल में भर्ती के लिए मंत्री जी तक सिफारिशें पहुंचाते थे, जहां से ये सिफारिशें व्यापम भेजी जाती थीं. हालांकि, इनमें बहुत सारे नये नाम बंगले से जुड़ जाते थे, जिनसे स्टाफ के लोग पैसे रखवा लेते थे. आरोप है कि सिफारिश करनेवालों में सत्ता प्रमुख राज्यपाल रामनरेश यादव, उनका बेटा शैलेश यादव, ओएसडी धनराज यादव, केंद्रीय मंत्री उमा भारती से लेकर संघ के सुरेश सोनी, केसी सुदर्शन, आइएएस, आइपीएस सरीखे सभी लोग शामिल थे. इनमें से कुछ बड़े नाम आज आरोपी हैं, तो कुछ और आरोपियों की जमात में शामिल हो सकते हैं.

इस माह पेश हो सकते हैं चालान

व्यापम घोटाले में 55 केस दर्ज किये गये हैं, जिनमें 2,530 लोग आरोपित हैं, इनमें से 1,980 गिरफ्तार हो चुके हैं और 550 फरार हैं. इतने सारे केसों की सुनवाई के लिए प्रदेश में बीस से ज्यादा कोर्ट बनाये गये हैं. इस केस की व्यापकता का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि लंबे समय से चल रहे इस घोटाले के कुल 42 आरोपित मौत के मुंह में जा चुके हैं.

पहली एफआइआर लिखे जाने से पहले ही 11 लोग मर चुके थे. दुर्घटना, बीमारी और डिप्रेशन से तो लोग मरे ही हैं, कुछ मौतें संदेह के दायरे में भी हैं, जिनकी जांच के आदेश एसआइटी ने दी है. मगर इन मौतों ने व्यापम घोटाले को देश-दुनिया की निगाहों में ला दिया है. अब उम्मीद की जा रही है कि इस महीने के आखिर तक 55 में से आधे से ज्यादा मामलों के चालान पेश कर दिये जायेंगे. लेकिन, केस को साबित करना भी जांच एजेंसी के लिए आसान नहीं होगा.

बीजेपी के राज में पनपे इस घोटाले ने सरकारी खजाने को तो बहुत नुकसान नहीं पहुंचाया, मगर प्रदेश की प्रतिभाआंे को बेमौत मार डाला. गृह मंत्री बाबूलाल गौर स्वीकार करते हैं कि इस घोटाले ने हमारे प्रदेश की प्रतिष्ठा धूमिल कर दी. सरकार की नाक के नीचे सालों से चल रहा यह घोटाला साबित करता है कि जब बाड़ ही फसल को खा रही थी, तब प्रदेश में सरकारी तंत्र जान-बूझ कर इससे आंखें मूंदे हुए था.

मंत्री, अफसर और दलालों का नापाक गंठबंधन नियमों की धज्जियां उड़ा कर मनमानी कर रहा था. अब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान घोटाले की जांच कराने के फैसले पर अपनी वाहवाही करते घूमते रहे हैं, लेकिन सीबीआइ जांच की मांग पर सरकार को सांप सूंघ जाता है. लाखों छात्रों के भविष्य के साथ हुई व्यापक पैमाने पर इस धोखाधड़ी की जिम्मेवारी सरकार क्यों नहीं उठा रही, यह ऐसा सवाल है जो अब शिवराज सिंह से बार-बार पूछा जा रहा है.

स्वच्छ शिक्षा के लिए कड़े कदम जरूरी

कौशलेंद्र प्रपन्न
शिक्षाविद् एवं भाषा विशेषज्ञ

हरिशंकर परसाई की कहानी ‘इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर' का इंस्पेक्टर आज शिक्षा जगत में साफ नजर आता है. उसने जिस तरह से चांद पद मौजूद व्यवस्था तंत्र को मिट्टी में मिला देता है, इसकी बानगी जाननी हो तो यह कहानी पढ़नी चाहिए. आज की तारीख में हमारी शिक्षा भी ऐसे इंस्पेक्टरों से बची नहीं है. दूसरे शब्दों में कहें, तो समाज में हर क्षेत्र में घोटाले होने, किये जाने और घोटाला-घटनाओं की खबरें सामने आ रही हैं.

वह चाहे व्यापम का हो या कोयला या फिर स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालय में नामांकन का मसला हो, शिक्षा का आंगन भी इन घोटालों की घटनाओं से बचा नहीं है. हाल में दिल्ली में व्यापक स्तर पर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग यानी इडब्ल्यूएस के कोटे पर अगड़ों ने कब्जा जमा लिया है. बड़ी-बड़ी कोठियों में बसनेवालों के बच्चे गरीब बच्चों के स्थान हड़पने में लगे हुए हैं. इस घोटाले के बाजार में बड़ी नामी-गिरामी लोग-तंत्र शामिल हैं.

शिक्षा में घोटाले की लाइन में व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम में जिस तरह से नामांकन को लेकर फर्जीवाड़ा और घोटाले हुए वे नागर समाज की आंखें खोलनेवाले थे. माना जाता है कि 2006 के वर्ष में ही लगातार व्यावसायिक परीक्षा मंडल की भर्तियों और दाखिले की परीक्षा में गड़बड़ी की शुरुआत हो चुकी थी. लेकिन यह आवाज ज्यादा तेज तब सुनायी दी, जब 2013 में डॉ जगदीश सागर की धर-पकड़ हुई और यह सारा मामला खुलने लगा. गौरतलब है कि इस व्यापम घोटाले में मध्य प्रदेश की मेधावी पीढ़ी अपना भविष्य बरबाद कर चुकी है.

आज की तारीख में मेडिकल, इंजिनियरिंग, बीएड आदि प्रवेश परीक्षाओं में धांधली कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है. गौरतलब है कि भर्ती और दाखिले की परीक्षाओं में करीब चालीस ऐसे आरोपी हैं, जिनकी पिछले दो-तीन सालों में मौत हो चुकी है. हर साल उच्च शिक्षा की प्रवेश परीक्षा के परचे परीक्षा से पहले ही आउट हो जाते हैं. इसमें हानि किसकी होती है? कौन इसका खामियाजा भरता है यह सब जानते हैं.

आज की युवा पीढ़ी जिस तन्मयता से मेडिकल और इंजिनियरिंग की परीक्षाओं में बैठती है, उन्हें इसका इल्म भी नहीं है कि परीक्षा का घोटाला तंत्र इसे किस तरह खोखला कर चुका है. उच्च-उच्चतर शिक्षा में भी गुणवत्ता की डफली बजानेवाले खूब पैसे पीट रहे हैं, लेकिन क्या वजह है कि शिक्षा आजादी के तकरीबन सात दशक बाद भी अपने उद्देश्यों को हासिल करने में सफल नहीं हुई है. इसका कारण स्पष्ट है कि शिक्षा-व्यवस्था को नापाक करनेवाले हमारे इसी समाज में बसते हैं. वे अपनी जेब भरने की फिराक में शिक्षा को नोचने-खसोटने से बाज नहीं आ रहे हैं.

शिक्षाशास्त्रियों व शिक्षा-समाजविदों की मानें, तो शिक्षा को इस बद्तर हालत तक पहुंचाने में हम अपनी राजनीतिक रणनीतियों को नजरअंदाज नहीं कर सकते. वरना क्या वजह है कि जो पैसे राज्य के स्कूलों तक पहुंचने चाहिए, वह ब्लॉक के खातों से निकल नहीं पाते. क्या वजह है कि स्कूल कॉलेज में दाखिले के लिए हजारों और लाखों रुपये लेकर नामांकन दिलाने वाले खुलेआम घूमते हैं और उन्हें कोई टोकता तक नहीं.

दरअसल, शिक्षा को तार-तार करने में घोटालेबाजों का बड़ा और गहरा हाथ है. घोटाले की गूंज महज पैसों के ही नहीं होते रहे हैं, बल्कि आंकड़ों और नामांकन से लेकर शिक्षक भर्ती प्रक्रिया तक में सुनायी देती रही है. यह अलग बात है कि वह आवाज सरकार और व्यवस्था के कानों तक नहीं पहुंच पाती या वह सुन कर भी बहरी बनी रहती है. यदि हम शिक्षा को स्वस्थ और स्वच्छ बनाना चाहते हैं, तो हमें शिक्षा में छद्मभेषी घोटालों के स्वरूप और उन काले चेहरों को पहचान कर खदेड़ना ही होगा, वरना अंदाजा लगाना कठिन नहीं है कि आनेवाले दिनों में हमारी शिक्षा और हमारे बच्चे किस तरह के मूल्यपरक समाज में सांस लेंगे.

व्यापम घोटाला : परत-दर-परत गिरफ्तारियां और खुलासे

- व्यापम की परीक्षाओं में अनियमितताओं की शिकायतें 2009 से सामने आने लगी थीं. शुरू में इस मसले को प्रकाश में लाने का श्रेय इंदौर के एक चिकित्सक आनंद राय को जाता है. वर्ष 2013 के बाद से तो इस घोटाले से जुड़ी खबरें लगातार सुर्खियों में हैं.
- 6 जुलाई, 2013 को प्री-मेडिकल टेस्ट में भाग ले रहे 20 परीक्षार्थी गिरफ्तार किये गये. इन पर दूसरे परीक्षार्थियों की जगह परीक्षा देने का आरोप था.
- उसी वर्ष 12 जुलाई को इस मामले का मुख्य आरोपित जगदीश सागर पकड़ा गया और उसके पास से 317 परीक्षार्थियों की एक सूची बरामद हुई. इन गिरफ्तारियों से प्री-मेडिकल टेस्ट में बहुत बड़े पैमाने पर चल रहे भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ.
एसटीएफ को सौंपी जांच
- इस फर्जीवाड़े के सामने आने के कई साल पहले से राज्य के अनेक थानों में दूसरों की जगह परीक्षाएं देने के मामले दर्ज होते रहते थे, लेकिन सागर की गिरफ्तारी और उसके द्वारा पकड़े जाने से तीन साल पहले से 2013 तक 100-150 ‘एमबीबीएस डॉक्टर' बनाने की बात स्वीकारने के बाद इस घपले की गंभीरता को देखते हुए 26 अगस्त, 2013 को जांच की जिम्मेवारी अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के नेतृत्व में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को सौंप दी गयी. एसटीएफ मध्य प्रदेश पुलिस की एक इकाई है.
- तब इस मामले को ‘पीएमटी घोटाला' नाम दिया गया था और 2013 में अक्तूबर महीने में ही पहली चाजर्शीट इंदौर की एक अदालत में दायर कर दी गयी.
- इस चाजर्शीट में एसटीएफ ने कहा कि 438 परीक्षार्थियों ने अवैध रूप से मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेने की कोशिश की थी तथा भोपाल स्थित व्यापम के अधिकारियों ने परीक्षाओं में बैठने की व्यवस्था में फेर-बदल किया था, ताकि व्यवस्थित रूप से धांधली की जा सके. एसटीएफ ने संदेश जताया था कि संदेहास्पद परीक्षार्थियों की संख्या 876 हो सकती है. अभियोग पत्र जमा करने से एक सप्ताह पूर्व व्यापम के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी को गिरफ्तार कर लिया गया था.
- नवंबर, 2013 में एसटीएफ ने पाया कि व्यापम के अधिकारियों ने राज्य की नौकरियों की पांच परीक्षाओं में धांधली की थी. आगामी महीनों में एसटीएफ ने सैकड़ों छात्रों, अभिभावकों और अधिकारियों पर परीक्षा प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाया.
- शुरू में जांच का दायरा संगठित रूप से प्री-मेडिकल टेस्ट में की जानेवाली धांधली था, जिसमें ऐसे इच्छुक छात्रों की खोज की जाती थी, जो 15-25 लाख रुपये देने के लिए तैयार हों और वैसे लोगों से संपर्क किया जाता था, जो पैसा देनेवाले छात्रों की मदद कर सकें. पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए 50 लाख रुपये तक वसूले जाते थे.
राजनेताओं की मिलीभगत
- सबसे सनसनीखेज गिरफ्तारी मध्य प्रदेश के तत्कालीन तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की थी. इस पूरे घपले में राजनेताओं की मिलीभगत के खुलासे की यह बड़ी शुरुआत थी.
- राज्य में 2008-13 के बीच प्री-मेडिकल टेस्ट में फर्जी परीक्षार्थियों की जांच कर रही टीम ने पाया कि कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों, खाद्य निरीक्षकों, सिपाहियों और आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारियों की बहाली में भी खूब धांधली हुई है.
एसआइटी का गठन
- एसटीएफ ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सुधीर साही के नेतृत्व में नवंबर, 2014 तक इस मामले की जांच की. उसके बाद मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन किया, जिसे एसटीएफ की निगरानी की जिम्मेवारी दी गयी. इस आदेश की पृष्ठभूमि में विपक्ष द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराने की मांग करते हुए दायर की गयी याचिकाएं थीं, जिन्हें उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि एसटीएफ राज्य सरकार की एजेंसी है, इसलिए उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध है, क्योंकि इस मामले में बड़े राजनीतिक रसूख के लोग शामिल हैं.
- उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश चंद्रेश भूषण को एसआइटी का अध्यक्ष बनाया गया, जो उस समय राज्य के उप-लोकायुक्त थे. इसके अन्य दो सदस्य केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के पूर्व विशेष महानिदेशक विजय रमन और नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर के पूर्व उपमहानिदेशक सीएलएम रेड्डी हैं. एसआइटी नियमित रूप से जांच की रिपोर्ट उच्च न्यायालय के समक्ष रखती है.
- एक विवाद के बाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था कि एसआइटी को स्वतंत्र रूप से जांच का अधिकार नहीं है और उसकी जिम्मेवारी एसटीएफ के जांच की निगरानी करना है.
- एसआइटी ने राज्य के राज्यपाल रामनरेश यादव के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति दी थी, जिसे न्यायालय ने रद्द कर दिया था. इस निर्णय का आधार यह था कि राज्यपाल को ऐसी स्थिति में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है.
- कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बुलावे पर दिल्ली जाकर जरूरी दस्तावेज देखने के एसआइटी के निर्णय पर विवाद हुआ था. इस वर्ष मार्च में उच्च न्यायालय ने इस बात के लिए विशेष जांच दल की खिंचाई की और फिर इस बात को रेखांकित किया कि उसका काम एसटीएफ के जांच की निगरानी करना है.
जांच की मौजूदा स्थिति
- एंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ने इंदौर में जगदीश सागर की कुछ संपत्तियों को जब्त किया है. विपक्षी दलों, छात्रों, कार्यकर्ताओं आदि द्वारा लगातार मांग की जा रही है कि व्यापम घोटाले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो से करायी जाये. लेकिन राज्य सरकार और उच्च न्यायालय ने इसकी अनुमति नहीं दी है. इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दी
गयी है.
- एसटीएफ घोटाले की जांच में लगी है, न्यायालय समय-समय पर उसे निर्देश देती है. गिरफ्तारियों में देरी या अनधिकृत अदालतों से आरोपितों को जमानत मिलने पर खिंचाई भी करती है.
व्यापम घोटाले के रसूखदार आरोपित
- लक्ष्मीकांत शर्मा : पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री को कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों की बहाली परीक्षा में धांधली के आरोप में जेल भेजा गया है. उनके पूर्व विशेष अधिकारी ओपी शुक्ला और पूर्व सहायक सुधीर शर्मा भी जेल में हैं. शुक्ला पर व्यापम के निलंबित अधिकारियों- निदेशक एवं परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी तथा मुख्य सिस्टम्स विशेषज्ञ नितिन महिंद्रा- से परीक्षार्थियों को पास कराने के एवज में 85 लाख रुपये लेने का आरोप है.
- धनराज यादव : मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के पूर्व विशेष अधिकारी यादव पर पर व्यापम के निलंबित अधिकारियो से सांठगांठ कर बड़ी संख्या में परीक्षार्थियों को पास कराने का आरोप है.
- आरके शिवहरे : उप पुलिस महानिरीक्षक रहे इस निलंबित आइपीएस अधिकारी पर पुलिस सब-इंस्पेक्टर परीक्षा में अवैध तरीके से परीक्षार्थियों को पास कराने का आरोप है. शिवहरे बेटी और दामाद पर धांधली कर पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल परीक्षा उत्तीर्ण करने का आरोप भी है.
- रामनरेश यादव : मध्य प्रदेश के राज्यपाल यादव पर पांच लोगों से वनकर्मी बनाने के एवज में रिश्वत लेने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी, जिसे बाद में उच्च न्यायालय ने संवैधानिक व्यवस्थाओं के आधार पर रद्द कर दिया.
संदिग्ध परिस्थितियों में मौतें
- व्यापम घोटाले की जांच कर रही स्पेशल टास्क फोर्स ने उच्च न्यायालय को कुछ समय पहले एक सूची सौंपी है, जिनमें बताया है कि 23 लोगों की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है. एसटीएफ इन मामलों की जांच कर रही है.
- 10 मौतें सड़क दुर्घटना में.
- 11 मौतें बीमारी या अज्ञात कारणों से.
- तीन लोगों ने आत्महत्याएं कीं.
- जांच की निगरानी कर रही एसआइटी के प्रमुख सेवानिवृत न्यायाधीश चंद्रेश भूषण ने बताया है कि एसटीएफ के कुछ अधिकारियों को भी जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. एसटीएफ के सहायक पुलिस महानिरीक्षक आशीष खरे और डीएसपी डीएस बघेल ने धमकी मिलने की बात कही है.
सबसे रहस्यात्मक मौतें
- शैलेश यादव : 50 वर्षीय शैलेश यादव राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे थे और व्यापम घोटाले के आरोपित भी थे. उन्हें राज्यपाल के लखनऊ आवास पर मार्च में मृत पाया गया था. पारिवारिक सदस्यों ने उन्हें डायबिटिक बताया और कहा कि सुबह उनके मरने की खबर हुई, पर कुछ रिपोर्टो में इसे जहर से हुई मौत कहा गया था. पोस्टमार्टम से भी मरने के कारणों का निर्धारण नहीं हो सका.
- विजय सिंह : जमानत पर रिहा चल रहे इस आरोपित की लाश छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में एक लॉज में पायी गयी थी. फार्मासिस्ट के रूप में सरकारी नौकरी करनेवाले सिंह के कमरे या भोजन में जहर या अन्य खतरनाक चीज नहीं पायी
गयी थी. इनके परिवार ने मामले की जांच
की मांग की है.
- नम्रता दामोर : इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज की छात्र नम्रता दामोर की लाश 7 जनवरी, 2012 को उज्जैन के पास रेल पटरी पर मिली थी. वह एक हफ्ते से कॉलेज से लापता थी. दामोर का नाम 2010 में कदाचार से मेडिकल परीक्षा पास करनेवालों संदिग्धों में था.
- डॉ डीके साकाले : साकाले जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के डीन थे और इनकी मृत्यु जुलाई, 2014 में हुई थी. व्यापम घोटाले से जुड़े छात्रों के निलंबन के बाद हंगामे के कारण साकाले महीने भर की छुट्टी पर थे. खबरों के अनुसार, उन्हीं दिनों जलने के कारण साकाले की मौत हो गयी थी.
- रमेंद्र सिंह भदौरिया : इस वर्ष जनवरी में प्राथमिकी दर्ज होने के कुछ दिन बाद भदौरिया ने आत्महत्या कर ली. एक सप्ताह के बाद उसकी माता ने भी तेजाब पीकर आत्महत्या कर ली. परिवार का आरोप है कि भदौरिया पर घोटाले के सरगनाओं द्वारा चुप रहने के लिए बहुत दबाव डाला जा रहा था.
- नरेंद्र सिंह तोमर : इंदौर जेल में पिछले माह तोमर की मौत ने व्यापम को फिर चर्चा में ला दिया है.
- डॉ राजेंद्र आर्य : तोमर की मौत के 24 घंटे के अंदर ग्वालियर में आर्य की मृत्यु हो गयी. वे साल भर से जमानत पर थे.


http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/504052.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close