Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | शक्ल ही भद्दी हो तो आईना क्या करे? - शरद यादव

शक्ल ही भद्दी हो तो आईना क्या करे? - शरद यादव

Share this article Share this article
published Published on Mar 27, 2015   modified Modified on Mar 27, 2015
नैतिकता, स्त्री-पुरुष संबंधों और स्त्री से जुड़े तमाम सवालों को लेकर हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में खासकर खाए-अघाए तबके में पाखंड इस कदर हावी है कि वह अपनी तमाम कुंठाओं को तरह-तरह से छुपाता है और सच का या कड़वे सवालों का सामना करने से कतराता और घबराता है। इसलिए 'नईदुनिया" के 18 मार्च के अंक में श्री अमूल्य गांगुली ने मेरी आलोचना करते हुए जो लेख लिखा, उससे मुझे बिल्कुल भी ताज्जुब नहीं हुआ। श्री गांगुली ने यह लेख पिछले दिनों बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा छब्बीस फीसद से बढ़ाकर उनचास फीसद करने के लिए पेश किए विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान चमड़ी के रंग और सुंदरता को लेकर दिए गए मेरे भाषण के एक अंश को केंद्र में रखकर लिखा है। उस लेख में की गई मेरी आलोचना को लेकर मैं कतई क्षुब्ध नहीं हूं, लेकिन मुझे इस बात का अफसोस है कि लेखक ने सतही दलीलों का सहारा लिया।

लेख की शुरुआत में ही मुझ पर जातिवादी राजनीति करने का आरोप लगाया गया है। इस आरोप में नया कुछ नहीं है। राजनीति में सक्रिय जो भी व्यक्ति समाज के दबे-कुचले और वंचित तबके की पैरोकारी करता है, उसे जातिवादी करार देना हमारे समाज में एक फैशन बन गया है। इसी आधार पर बाबासाहेब आंबेडकर, डॉ. राममनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओं पर भी समय-समय पर जातिवादी राजनीति करने के आरोप लगाए गए हैं, जबकि हकीकत यह है कि इन नेताओं ने हमेशा जाति की दीवारें तोड़ने के लिए काम किया है। इसी आधार पर यदि मुझे भी जातिवादी बताया जाता है तो मैं स्वीकार करता हूं कि मैं जातिवादी हूं।

जहां तक महिला आरक्षण संबंधी मेरे विचारों की बात है तो मैं पहले भी कई बार स्पष्ट कर चुका हूं और फिर कर रहा हूं कि मैं संसद और विधानमंडलों में महिलाओं के आरक्षण के कतई खिलाफ नहीं हूं। मेरा विरोध सिर्फ महिला आरक्षण विधेयक के उस स्वरूप से है, जो पिछड़े तबके की महिलाओं की उपेक्षा करता है। रही बात महिला आरक्षण पर संसद में बहस के दौरान आत्महत्या कर लेने संबंधी मेरे कथित बयान की, तो उस बारे में मैं पहले ही स्पष्ट कर चुका हूं कि मेरे बयान को मीडिया के एक तबके ने तोड़मरोड़ कर पेश किया था।

राज्यसभा में बीमा विधेयक पर बहस के दौरान मैंने सुंदरता और चमड़ी के रंग को लेकर हमारे समाज में व्याप्त एक खास पूर्वग्रह की जो आलोचना की थी, उसे भले ही कोई संदर्भ से काटकर या मूल विषय से हटकर देखे, लेकिन मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस पूर्वग्रह की चर्चा के पीछे मेरा मकसद गोरे रंग को श्रेष्ठ समझने की उस हीन ग्रंथि की ओर इशारा करना था, जो हमारे भारतीय मन में गहरे तक पैठी हुई है, यहां तक कि हमारा सत्ता-तंत्र भी उससे मुक्त नहीं है। वह भी उन नीतियों की ओर बहुत जल्दी आकर्षित हो जाता है, जो गोरे मुल्कों में अपनाई जाती हैं। इस तथ्य से कौन इनकार कर सकता है कि बीमा विधेयक में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने का सवाल हो या आर्थिक उदारीकरण की अन्य नीतियों का, इन सब पर स्पष्ट रूप से पश्चिम मुल्कों का प्रभाव नजर आता है? यही नहीं, गोरे रंग को लेकर आम भारतीय मानस इतना दीवाना रहता है कि एक ब्रिटिश महिला हमारे देश में आती है और यहां उसे बलात्कार की एक घटना पर वृत्तचित्र बनाने के लिए वे तमाम सुविधाएं और अनुमतियां आसानी से मिल जाती हैं, जो किसी भारतीय फिल्मकार को इतनी आसानी से नहीं मिल सकती हैं। मैंने राज्यसभा में अपने भाषण के दौरान इन्हीं संदर्भों में गोरे रंग और सुंदरता के पैमाने को लेकर चर्चा की थी। स्त्री को महज घरेलू नौकरानी या शरीर-सुख का साधन मानने वाली विकृत मानसिकता के लोगों

को यह चर्चा जरूर अटपटी लगी होगी, मगर यह देह-चर्चा कतई नहीं थी।

क्या यह सच नहीं है कि हमारे समाज में गोरे रंग को सुंदरता का पर्याय माना जाता है और सांवले रंग को हीन दृष्टि से देखा जाता है? अखबारों में आने वाले तमाम वैवाहिक विज्ञापन भी इस हकीकत की गवाही देते हैं। वैसे गोरे रंग को श्रेष्ठ मानने की धारणा सारी दुनिया में किसी न किसी हद तक प्रचलित है, लेकिन हमारे देश में यह ज्यादा ही गहराई से जड़ें जमाए हुए है। क्या इस अमानवीय और अन्यायी मानसिकता पर चोट करना और उससे उबरने का आग्रह करना कोई अपराध है? दरअसल, गौरवर्ण की तानाशाही दुनिया का सबसे बड़ा उत्पीड़न है। वैसे तो दुनिया की सभी स्त्रियां किसी न किसी रूप में उत्पीड़ित हैं, लेकिन सांवले या काले रंग की स्त्रियां कुछ ज्यादा ही उत्पीड़न का शिकार होती हैं। वे चिंता और हीनता की खुराक पर ही पलती हैं। इस तथ्य को महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक 'दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का इतिहास" और समाजवादी विचारक डॉ. राममनोहर लोहिया ने अपने चर्चित निबंध 'राजनीति में फुरसत के क्षण" में शिद्दत से रेखांकित किया है।

मानव संसाधन मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी के विरुद्ध कथित रूप से मेरे द्वारा की गई टिप्पणी को मीडिया के एक वर्ग द्वारा प्रचारित किया जा रहा है। यह असत्य, निराधार एवं द्वेषपूर्ण है। सत्य यह है कि मैंने कोई असम्मानजनक बात नहीं की और वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने भी बताया कि राज्यसभा के रिकॉर्ड में ऐसी कोई बात नहीं है। यही नहीं, स्वयं स्मृति ने भी कहा है कि उन्होंने ऐसी कोई बात मेरे द्वारा नहीं सुनी है। श्रीमती स्मृति ईरानी से मेरा कोई मतभेद नहीं रहा है। जब मंत्री महोदया की डिग्री पर प्रश्न उठाया गया था तब मैंने खुद उनका बचाव किया था।

कुल मिलाकर मेरा कहने का आशय यही है कि हमारे समाज में जाति, औरत की दोयम स्थिति और चमड़ी के रंग पर रची मानसिकता एक कड़वी हकीकत है। जो लोग नैतिकता का ढोल पीटते हुए इस हकीकत को नकारते हैं या अनदेखा करते हैं, वे अपने शुतुरमुर्गीय रवैये का ही परिचय देते हैं। जाति और लिंग के कठघरे में जकड़े लोग ही दूसरों को जातीय समरसता और स्त्री के सम्मान का पाठ पढ़ाकर अपने अपराधबोध या अज्ञानता को छिपाने का भौंडा प्रयास अक्सर करते रहते हैं। जरूरत समाज की शक्ल सुधारने की है, आईने को दोष देने से काम नहीं चलेगा। शक्ल ही भद्दी हो तो आखिर आईना क्या करेगा?

(लेखक जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

 


- See more at: http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-what-mirror-can-do-if-the-face-is-ugly-334961#sthash.qLzMaElo.dpuf


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close