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न्यूज क्लिपिंग्स् | शासन क्षमता का भी प्रदर्शन हो-- आकार पटेल

शासन क्षमता का भी प्रदर्शन हो-- आकार पटेल

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published Published on Nov 22, 2016   modified Modified on Nov 22, 2016
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे केंद्र सरकार में दो चीजें लेकर आयेंगे- निर्णय की निश्चितता और सुशासन. उनके पास अन्य गुण भी हैं और लोगों ने पहले उल्लिखित बातों के साथ उन गुणों के लिए भी उन्हें वोट दिया था. प्रधानमंत्री मोदी किसी वंश से संबंध नहीं रखते हैं और उन्होंने सार्वजनिक जीवन में अपने गुणों के आधार पर ऊंचाइयां चढ़ी हैं. उनकी छवि ईमानदार राजनेता की है और संघीय सरकार में अब तक शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार की कोई रिपोर्ट नहीं आयी है, जैसा कि डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में होता था. 

हाल के दिनों में उनके इन गुणों का प्रदर्शन हुआ है और हमें भारत पर इनके असर की पड़ताल करनी चाहिए. निर्णय लेने की निश्चितता का तात्पर्य है- त्वरित और दृढ़ निर्णय लेने की क्षमता. इसे आम तौर पर सद्गुण के रूप में देखा जाता है. अनिर्णय को कमजोरी माना जाता है, हालांकि यह किसी मसले पर गंभीरता से सोच-विचार का ही दूसरा नाम है. और, अगर बर्दाश्त करने की सीमा से परे अनिश्चितता या अफरातफरी का माहौल हो, तो निर्णय नहीं लिया जाता है. दूसरी तरफ, निर्णय लेने का गुण निश्चितता के रूप में भी देखा जा सकता है, यानी ऐसा व्यक्ति ज्ञान के द्वारा आश्वस्त होने की जगह अपने मन के विश्वास के आधार पर अपने को सही मानता है.

संजय गांधी भी निश्चयी व्यक्ति थे. वे मामूली पढ़े-लिखे थे (वे दसवीं कक्षा की पढ़ाई भी पूरा नहीं कर सके थे) और उन्हें बड़े अधिकार और खूब ताकत दे दी गयी थी. इनका निर्वाह उन्होंने खराब तरीके से किया और उनके अहंकार और आत्मविश्वास का खामियाजा भारतीयों को अकल्पनीय रूप से भुगतना पड़ा था. उन्हें लगता था कि उन्हें पता है कि हम सभी भारतीयों के लिए क्या उचित है. 

दूसरे गुण- शासन- को अन्य शब्द के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है, जिसका उपयोग सैन्य इतिहासकार करते हैं. यह शब्द है- पकड़. इसका अर्थ है- सेनापति की अपने अधिकार क्षेत्र पर पूरा नियंत्रण. उसे यह पता होता है कि उसकी टुकड़ी की क्षमता क्या है और उसके अनुरूप वह तैयार होता है.

जुलियस सीजर की पकड़ मजबूत थी और उनकी सेना पर वे तब नियंत्रण कर सके थे, जब संचार तंत्र कमजोर था और साजो-सामान की आपूर्ति का रास्ता बहुत लंबा होता था. हालांकि, युद्ध क्षेत्र में जनरल मॉन्टगोमरी का रिकॉर्ड मिला-जुला है, पर ऐसा माना जाता है कि वे भी नियंत्रण कर पाने में सक्षम थे. द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के अन्य कई जनरलों की तरह वे अपनी सेना की क्षमता के बारे में किसी भ्रम में नहीं थे. 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी निर्णय क्षमता का प्रदर्शन पांच सौ और हजार के नोटों को चलन से बाहर करने के मामले में किया है. इस कदम को कालेधन को समाप्त करने या उस पर बड़ी चोट के रूप में प्रचारित किया गया. हमें अभी तक नहीं बताया गया है कि यह कैसे होगा, सिवाय इसके कि प्रधानमंत्री मोदी कहते रहे हैं कि भ्रष्ट और धनी नकदी के जिस अंबार पर बैठे हैं, अब वह बेकार कागज हो जायेगा. 

जिन लोगों ने कारोबार चलाया है (मैंने एक मैनुफैक्चरिंग और सेवा व्यवसाय को संचालित किया है), उन्हें पता है कि कालाधनका मामला ऐसा नहीं है. व्यवसाय बढ़ाने के लिए इसका उपयोग उसी तरह से किया जाता है, जैसे कि वैध धन का होता है. इसे सामानों और परिसंपत्तियों के रूप में रखा जाता है. पूरी तरह से नकदी के रूप में यह कोई खास उपयोगी नहीं रहता है. दूसरा कारण यह बताया गया कि इससे आतंकी गतिविधियां कमजोर होंगी, क्योंकि उन्हें जाली नोटों के जरिये अंजाम दिया जाता है. आज भारतीयों को कोई भी विचार बेचा जा सकता है, अगर उसे आतंकवाद से जोड़ दिया जाये. इस बात की आशा कम ही है कि मीडिया इस पर सवाल उठायेगा. 

बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने निर्णय लेने की क्षमता की झलक दिखायी है. इसका नतीजा यह है कि हम ऐसे दिनों से गुजर रहे हैं, जब सिर्फ नकदी पर आश्रित भारत के करोड़ों वंचितों का इस्तेमाल एक प्रयोग में किया जा रहा है. 

कुछ दलों को छोड़ कर विपक्ष मोदी से भयभीत है, और इसका मतलब यह हुआ कि नोटबंदी का अब तक विरोध नहीं हुआ है. चूंकि इसके साथ आतंकवाद को जोड़ दिया गया है, कांग्रेस इतना डर गयी है कि वह विमुद्रीकरण को वापस लेने की मांग नहीं कर रही है. जनता की प्रतिक्रियाओं के बारे में उन्हें समझ नहीं है और वे मानते हैं कि इस निर्णय के प्रति लोगों में उत्साह है. 

इस दौरान आकस्मिक क्रूरता के इस कदम के कारण करोड़ों की संख्या में लोग परेशान और त्रस्त हैं. गुजराती भाषा के टेलीविजन समाचार चैनलों को देखते हुए मुझे ऐसा लग रहा था कि अंगरेजी चैनलवाले किसी और देश की खबरें दिखा रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने हमें बताया है कि लोगों की मौजूदा परेशानी एक जनवरी को मिलनेवाले लाभांश से उचित साबित होगी. वह हम भी देखेंगे. खैर, निर्णय की निश्चितता का प्रदर्शन करने के बाद उन्हें हमें अपनी शासन क्षमता दिखानी चाहिए. 

प्रधानमंत्री मोदी की विजयी घोषणा के बाद से सरकार बड़बड़ाहट की शिकार हो गयी है. ऐसा लग रहा है कि वह परिस्थितियों की प्रतिक्रिया में कदम उठा रही है. वह पैसे निकालने की सीमा घटा-बढ़ा रही है, मनमाने ढंग से कुछ राज्यों के लिए नियमों में छूट दे रही है, और उंगली में स्याही लगाने जैसे तदर्थ प्रशासनिक उपाय लगा रही है. 

जब सरकार ऐसे बड़े फैसले लेती है, तो उससे पैदा होनेवाली अफरातफरी का अनुमान कोई भी लगा सकता है. ऐसे में इस पर नियंत्रण के लिए जरूरी प्रतिभा और क्षमता कहां है? यह कहना गलत नहीं होगा कि अभी इसका अभाव दिखाई दे रहा है. उनके लिए यही एक अवसर है. इस संकट से कुछ लोग ही प्रभावित नहीं हो रहे हैं (जैसा कि आतंकी घटनाओं में होता है), बल्कि करोड़ों लोगों पर सीधे असर पड़ा है. यदि प्रधानमंत्री मोदी इस पर काबू पा लेते हैं, तभी हम समझेंगे कि स्थिति पर उनकी पकड़ मजबूत है.

http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/896303.html


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