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न्यूज क्लिपिंग्स् | सबसे बड़े लोकतंत्र में धरना-प्रदर्शनों की आवाज़ क्यों नहीं सुनी जाती?- माधव शर्मा

सबसे बड़े लोकतंत्र में धरना-प्रदर्शनों की आवाज़ क्यों नहीं सुनी जाती?- माधव शर्मा

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published Published on May 3, 2019   modified Modified on May 3, 2019
जयपुर: देश में चुनाव हो रहे हैं. हर तरफ लोकतंत्र, नागरिक अधिकार, संविधान की रक्षा और विकास जैसे शब्द कई तरह के नारों के साथ हर रोज़ सुनाई दे रहे हैं, लेकिन दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इन शब्दों को सही मायनों में ज़मीन पर उतारने में लगभग नाकाम ही रहा है.

स्वस्थ लोकतंत्र में संवैधानिक हक़ के तौर पर देश के नागरिकों को मिले शांतिपूर्वक विरोध, धरने और प्रदर्शनों के साथ इन्हीं नागरिकों द्वारा चुनी गई सरकारों का रवैया कैसा रहा है, यह राजस्थान में पिछले कुछ सालों से चल रहे धरनों पर सरकारी उदासीनता से पता चलती है.

प्रदेश में जयपुर मेटल एंड इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड के मज़दूर, नवलगढ़ में सीमेंट फैक्ट्री के लिए भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ किसानों का धरना, चित्तौड़गढ़ में अफीम किसानों का अफीम के पट्टे बढ़ाने की, नीमकाथाना में भूमि अधिग्रहण और अवैध खनन के ख़िलाफ़ सालों से स्थानीय लोग धरने पर बैठे हैं.

इसके अलावा कई कस्बों और गांवों में छोटे-छोटे धरने-प्रदर्शन चल रहे हैं, लेकिन सरकारी नुमाइंदों व चुने हुए जन प्रतिनिधियों ने हमेशा लोकतंत्र में सरकारों के विरोध के लिए नागरिकों को मिले इस अहिंसक हथियार को नज़रअंदाज़ ही किया है.

द वायर हिन्दी पर प्रकाशित इस कथा को विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 


http://thewirehindi.com/80304/multipal-workers-protests-in-rajasthan-jaipur-bjp-congress/


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