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न्यूज क्लिपिंग्स् | सरकार ने किया 'चमत्कार', अब 28 रुपये कमाने वाले गरीब नहीं

सरकार ने किया 'चमत्कार', अब 28 रुपये कमाने वाले गरीब नहीं

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published Published on Jul 24, 2013   modified Modified on Jul 24, 2013
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कमरतोड़ महंगाई को थामने में नाकाम रही सरकार ने चुनावी साल में 17 करोड़ गरीब कम करने का चमत्कार कर दिखाया है। ऐसा गरीबों की आमदनी का जरिया बढ़ाकर नहीं बल्कि आमदनी के आंकड़े में हेरफेर कर किया गया है। उनकी आय महज एक रुपये बढ़ाकर एक झटके में 15 फीसद गरीब कम कर दिए गए। पिछले कई सालों से महंगाई भले ही चरम पर हो, लेकिन सरकार की गरीबी परिभाषा में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया है। नई परिभाषा के तहत अब गांवों में रोजाना 26 की जगह 27.20 रुपये और शहरों में 32 की जगह 33.30 रुपये से ज्यादा कमाने वाले गरीब नहीं कहे जाएंगे। यानी गांव में हर महीने 816 रुपये और शहरों में 1000 रुपये से ज्यादा कमाने वाले इस मुगालते में रहें कि वो सरकार की नजरों में गरीबी रेखा से ऊपर उठ चुके हैं।

गरीबी रेखा के नए सरकारी मानकों के मुताबिक मनरेगा जैसी योजनाओं में अगर हर महीने कोई व्यक्ति दस दिन का रोजगार भी पा जाए तो वह गरीबी रेखा से ऊपर उठ जाएगा। नई गरीबी रेखा भी उसी तेंदुलकर फार्मूले पर तय हुई है जिस फार्मूले के तहत दो साल पहले सितंबर 2011 में गांव में रहने वालों के लिए 26 रुपये और शहरों के लिए न्यूनतम 32 रुपये प्रति दिन की आमदनी निर्धारित की गई थी। उस वक्त इसकी तीखी आलोचना के बाद सरकार ने इस फार्मूले को खुद ही खारिज कर दिया था।

इसके बाद सरकार ने गरीबी रेखा का नया फार्मूला तय करने के लिए जून 2012 में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह गठित किया था। मगर चुनावी साल को देखते हुए सरकार ने अगले साल के मध्य तक आने वाली रंगराजन समिति की रिपोर्ट का इंतजार करना मुनासिब नहीं समझा। लिहाजा तेंदुलकर फार्मूले के आधार पर ही गरीबी रेखा तय कर दी गई। नए आंकड़े मंगलवार को योजना आयोग ने जारी किए।

नई गरीबी रेखा 2011-12 की कीमतों के आधार पर तय की गई है। इसके मुताबिक गांव में रहने वाला पांच सदस्यीय परिवार अगर रोजाना 136 रुपये या महीने में 4080 रुपये कमाता है तो वह गरीब नहीं माना जाएगा। इसी तरह शहर में 166.5 रुपये रोजाना या 5000 रुपये महीना कमाने वाला परिवार गरीब नहीं कहलाएगा। नए आंकड़ों के मुताबिक अब देश में 22 फीसद ही गरीब हैं। गरीबों की संख्या का अनुमान योजना आयोग ने साल 2011-12 के आंकड़ों के आधार पर लगाया है। इससे पहले 2004-05 में गरीबों की संख्या 37.2 फीसद थी।

'दैनिक जागरण' गरीबों की संख्या का सरकारी ब्योरा 18 जुलाई को ही दे चुका है। योजना आयोग के मुताबिक 2011-12 में गांवों में कुल आबादी का 25.7 फीसद गरीब थे तो शहरी आबादी में 13.7 फीसद गरीब थे। आयोग मानता है कि अब हर साल दो फीसद से ज्यादा की दर से गरीबी कम हो रही है। नए आंकड़ों में गरीबी घटने की दर 2004-05 से 20011-12 के सात वर्षो में तीन गुना हो गई है। गरीबों के आंकड़े का एक अनुमान सरकार ने 2009-10 में भी लगाया था। तब देश में करीब 30 फीसद गरीब थे। इन आंकड़ों का एलान सरकार ने मार्च 2012 में किया था।

गरीबी रेखा में बदलाव [रुपये प्रतिमाह]

आबादी, सितंबर 2011, जुलाई 2013

ग्रामीण, 781, 816

शहरी, 995, 1000

कहां कितने गरीब [फीसद में]

राज्य 2004-05 09-10 11-12

बिहार 54.7 53.5 33.7

उप्र 40.9 37.7 29.4

मप्र 48.6 36.7 31.7

पंजाब 14.2 15.9 8.3

हरियाणा 24.1 20.1 11.2

प. बंगाल 34.2 26.7 20.0

ओडिशा 57.2 37.0 32.6

गुजरात 31.6 23.0 16.6

राजस्थान 34.4 24.8 14.7

दो साल में कुछ प्रमुख जिंसों के बढ़े दाम

जिंस, सितंबर 2011, जुलाई 2013

आटा, 16, 20

चावल, 24, 28

अरहर दाल, 72, 75

चना दाल, 44, 53

चीनी, 33, 36

दूध , 27, 32

सरसों तेल, 81, 99

नमक, 14, 16

प्याज, 21, 36

[भाव रुपये प्रति किलो/लीटर में]


http://www.jagran.com/news/national-poverty-declines-to-219-per-in-the-country-in-201112-10588927.html


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