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न्यूज क्लिपिंग्स् | सरकारी स्कूल की हालत ट्रांसपोर्ट की गाड़ी जैसी

सरकारी स्कूल की हालत ट्रांसपोर्ट की गाड़ी जैसी

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published Published on Sep 15, 2014   modified Modified on Sep 15, 2014
पटना : मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने शिक्षा की सरकारी व्यवस्था के बारे में रविवार को साफ-साफ और बेबाक अंदाज में बात की. मुख्यमंत्री ने कहा, सरकारी स्कूलों का हाल ठीक सरकार के ट्रांसपोर्ट की उस गाड़ी की तरह हो गयी है, जिसके एक साल चलते-चलते टायर व पार्ट्स तक बिक जाते हैं. वहीं, प्राइवेट स्कूलों का विकास प्राइवेट बस की तरह हो रहा है.

एक साल में एक बस मालिक के पास तीन-चार बसें हो जाती हैं, उसी तरह प्राइवेट स्कूल के यूनिट बढ़ते हैं. श्री मांझी ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को भी खरी-खरी सुनायी. बोले, प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का वेतन ज्यादा है. फिर भी वे सड़क पर नारे लगाते हैं. सरकार अपने बजट की 24 फीसदी राशि शिक्षा पर खर्च कर रही है. इसके बाद भी शिक्षा का स्तर यही रहेगा, तो विकल्प खोजना होगा.

मुख्यमंत्री रविवार को एसके मेमोरियल हॉल में ‘द रोल ऑफ प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल इन द एजुकेशनल डेवलपमेंट ऑफ बिहार' विषय पर आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे. इसका आयोजन आइडियल आइज ने किया था. मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चों में प्रतिस्पर्धा की भावना होनी चाहिए. सरकारी स्कूलों में हम सुविधाएं दे रहे हैं. वे निजी स्कूलों के बच्चों से प्रतिस्पर्धा करें. उन्होंने कहा कि आज आम आदमी क्या, शिक्षक भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहते हैं.

उनके बच्चे खुद प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ते हैं. शिक्षा में सुधार के लिए हमें अपने बच्चों को अपने ही स्कूल ले जाकर पढ़ाना होगा, तभी सुधार हो सकती है. कुछ लोग आज कई डिग्रियां ले लेते हैं, लेकिन कुछ ने तो प्राथमिक स्कूल तक का अब भी मुंह नहीं देखा है. इसके लिए सरकार के साथ-साथ समाज, शिक्षक व संगठन भी दोषी हैं कि बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे नहीं आये. आज प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों को बहुत कम वेतन मिलता है, लेकिन सरकारी स्कूल में ज्यादा राशि देने के बाद भी वे सड़कों पर नारे लगाते रहते हैं. अब शिक्षक इन बातों को अन्यथा रूप में लेंगे.

मुझ पर टिप्पणी भी कर सकते हैं. कहेंगे 2015 के चुनाव में सरकार को बताते हैं, लेकिन सच कहने में कोई बुराई नहीं है. सीएम ने कहा कि बच्चों को अपने व देश के भविष्य के बारे में गंभीरता से सोचना होगा, नहीं सोचेंगे, तो जो गरिमा है, वह विलुप्त हो जायेगी. पहले पढ़ने के लिए संस्थाओं की कमी थी. मुझे सातवीं के बाद हाइस्कूल की पढ़ाई के लिए नौ किलोमीटर दूर स्कूल में हर दिन पैदल जाना पड़ता था, लेकिन आज ऐसी स्थिति नहीं है. हर पंचायत में हाइस्कूल खुल रहा है. 2017 तक सभी पंचायतों में हाइस्कूल खोल दिये जायेंगे. उन्होंने कहा कि शिक्षा पद्धति में दोष है. यह एकांगी हो गयी है. इससे बेरोजगारी है और छात्रों में फ्रस्टेशन है. इसलिए बच्चों को सर्वशिक्षा लेनी चाहिए.

सेमिनार सह सम्मान समारोह में कई क्षेत्रों नाम कमानेवालों को मुख्यमंत्री ने सम्मानित भी किया. आइडियल आइज ने मुख्यमंत्री को दशरथ मांझी सोशल डेवलपमेंट अवार्ड भी दिया. सेमिनार में राज्य नागरिक परिषद् के महासचिव रामेश्वर प्रसाद यादव, राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष अंजुमआरा, आइडियल आइज के सचिव मो शकील अख्तर, डॉ शशि कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किये.

क्लास में खैनी ठोंकते हैं शिक्षक

श्री मांझी ने कहा ‘सच कहना अगर बगावत है, तो हम भी बागी हैं. लोग हमें पागल घोषित कर दें, मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मेरे कहे शब्दों से शिक्षकों व बच्चों में सुधार हो जाये यह बड़ी बात है. मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले के शिक्षक को देख कर आदर का भाव जगता था. जहां मिलते, पैर तक छूते थे. मुरगा के बांग के साथ सुबह उठ कर हम पढ़ने भी लगते थे, लेकिन आज के शिक्षक कुरसी पर बैठ कर टेबुल पर पैर रखते हैं. क्लास में ही खैनी ठोंकते हैं.

इसमें अभिभावक भी कम दोषी नहीं हैं. जो अभिभावक चढ़ाते (शराब पीते) हैं. वे अपने बच्चों से ही कहते हैं कि बेटा आधा ग्लास ले आओ. उनकी नजर इधर-उधर गयी, तो एक घूंट बेटा भी चढ़ा लेता है. गाजिर्यन बच्चों को सिगरेट लाने भेजते हैं. जब वह लेने जाता है, तो अलग से एक सिगरेट ले लेता है और उसे पीने के बाद ही आता है. इसके लिए शिक्षकों को सद्चरित्र और चरित्रवान बनना होगा. अभिभावकों को पवित्र होकर बच्चों को पढ़ाना होगा, तभी वो आगे बढ़ सकेगा.
कौन-सी शिक्षा दे रहे सरकारी मास्टर साहब
कक्षा पांच के
- 32 } बच्चे नहीं जानते चार अंकों का जोड़
- 24 } बच्चे लकड़ियों की गठरी नहीं पहचानते
- 59 } बच्चे छोटी स्टोरी पढ़ कर प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकते
- 48 } को रीडिंग नहीं आती
कक्षा तीन के
- 36 } बच्चों को नहीं आता साधारण जोड़
- 19 } बच्चे पेड़ के चित्र को नहीं पहचानते
- 44 } बच्चों को रीडिंग नहीं आती
- 61} को तीन स्तर का जोड़ नहीं आता
(स्नेत- मई, 2014 में बीइपी व एजुकेशन इनिशिएटिव द्वारा कराये गये अध्ययन की रिपोर्ट)

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