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न्यूज क्लिपिंग्स् | सवर्ण गरीबों की खिल्ली-- मिलिन्द मुरुगकर

सवर्ण गरीबों की खिल्ली-- मिलिन्द मुरुगकर

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published Published on Feb 6, 2019   modified Modified on Feb 6, 2019
नरेंद्र मोदी सरकार ने सवर्ण गरीबों को आर्थिक मापदंड पर आधारित आरक्षण देने का निर्णय किया है. इस मापदंड के अनुसार आठ लाख रुपये प्रति वर्ष, अर्थात 66,600 रुपये प्रतिमाह से कम आय पाने वाले लोग अब आर्थिक मापदंड से पिछड़े माने जाएंगे.

इसका सीधा मतलब यह है कि मोदी सरकार ने वास्तविक दृष्टि से गरीब सवर्णों को आरक्षण दिया ही नहीं है, बल्कि चुनाव जीतने के लिए उनकी आंखों में धूल झोंकी है.

आर्थिक आरक्षण का उद्देश्य अगर सवर्णों में आर्थिक दृष्टि से पिछड़ों को नौकरियों के अवसर देना था और ऐसा अवसर देने का पूरा मौका होते हुए भी नरेंद्र मोदी ने गरीब सवर्णों के मुंह का निवाला क्यों छीन लिया?

सवर्ण गरीबों की भावनाओं के साथ जो चाहे मनमर्जी खिलवाड़ हो और इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए इन गरीब सवर्णों को कोई प्रतिनिधित्व भी ना मिले यह दुर्भाग्यपूर्ण है.

आर्थिक और सामाजिक विषमताओं में उलझे इस देश में सामाजिक न्याय के लिए कोई कदम उठाना हमेशा से बड़ा ही पेंचीदगी भरा काम रहा है.

स्वतंत्रता के बाद (और कुछ जगहों पर स्वतंत्रता से पहले भी) सबसे पहले दलित और आदिवासियों को आरक्षण दिया गया. हजारों वर्ष इस तबके ने अत्यंत अन्यायपूर्ण व्यवस्था के जुल्म सहा है और आज भी सह रहे है. ऐसे तबके को आरक्षण के माध्यम से प्रतिनिधित्व मिला.

फिर मंडल कमीशन लागू होने पर अन्य पिछड़े वर्ग को भी आरक्षण का लाभ हुआ. इन सबके बीच सवर्ण गरीबों में हीनता की भावना पनपती गई. माना कि हमें सामाजिक विषमता का सामना नहीं करना पड़ा, पर आर्थिक असमर्थता का क्या कीजिएगा?

द वायर हिन्दी पर प्रकाशित इस कथा को विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


http://thewirehindi.com/71002/ews-quata-ten-percent-reservation/


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