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न्यूज क्लिपिंग्स् | सेना में ड्राइवर के तौर पर भर्ती हुए थे अन्ना

सेना में ड्राइवर के तौर पर भर्ती हुए थे अन्ना

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published Published on Apr 7, 2011   modified Modified on Apr 7, 2011
नई दिल्ली. भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सख्त लोकपाल विधेयक बनाने और उसमें जनता की हिस्सेदारी की मांग को लेकर अनशन पर बैठे अन्ना हजारे देश के भीतर ईमानदारी और इंसाफ की लड़ाई लड़ने से पहले सीमा पर देश के दुश्मनों के भी दांत खट्टे कर चुके हैं। 1962 में चीन से युद्ध के बाद भारत सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील के बाद वे अन्ना सेना में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे। 1965 की लड़ाई में खेमकरण सेक्टर में अपनी चौकी पर हुई बमबारी के बाद अन्ना की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई। पाकिस्तानी हमले में उनकी चौकी पर तैनात सारे सैनिक शहीद हो गए। अन्ना इस हमले में सुरक्षित रहे। अपने साथियों की मौत से दुखी अन्ना ने अपना जीवन समाज के हित में लगाने का संकल्प ले लिया।

समाजसेवी अन्ना हजारे का मूल नाम डॉ. किशन बाबूराव हजारे है। उनका जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव में हुआ था। उन्होंने 1975 में अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत की थी। अन्ना की राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान 1995 में बनी थी जब उन्होंने शिवसेना-बीजेपी की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। 1990 तक हजारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता की थी, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि नाम के गांव की कायापलट कर दी थी। पहले इस गांव में बिजली और पानी की जबर्दस्त किल्लत थी। हजारे ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया। उनके ही कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई भी मिली। इसके बाद हजारे की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हुआ। 

1995 में महाराष्ट्र के तीन 'भ्रष्ट' मंत्रियों-शशिकांत सुतार, महादेव शिवंकर और बबन घोलाप के खिलाफ वे अनशन पर बैठे थे। सरकार को झुकना पड़ा और सुतार और शिवंकर को कैबिनेट से बाहर कर दिया गया। घोलाप ने हजारे के खिलाफ अवमानना का मुकदमा कर दिया। हजारे ने दावा किया था घोलाप ने ज्ञात स्रोतों से अपनी कमाई के अनुपात में बहुत ज़्यादा रकम इकट्ठा कर ली है। हालांकि, हजारे अदालत में इन दावों के समर्थन में सबूत पेश नहीं कर पाए, जिसके बाद अदालत ने उन्हें तीन महीने की जेल की सज़ा सुनाई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने एक दिन की सज़ा के बाद ही उन्हें जेल से बाहर कर दिया।

इसके बाद अन्ना ने मनोहर जोशी, गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। हालांकि, बाद में उन्होंने अपने आरोप वापस ले लिए। अन्ना के गांधीवादी विरोध का सामना महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी की सरकारों को भी करना पड़ा है। अन्ना 2003 में कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार भ्रष्ट मंत्रियों-सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठ गए। हजारे का विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया। मलिक ने इस्तीफे दे दिया। आयोग ने जैन के खिलाफ आरोप तय किए तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अन्ना हजारे को 1990 में सरकार ने 'पद्मश्री' सम्मान से नवाजा था।


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