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न्यूज क्लिपिंग्स् | सेवानिवृत्त वेटरन को मिले नौकरी- वरुण गांधी

सेवानिवृत्त वेटरन को मिले नौकरी- वरुण गांधी

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published Published on Aug 24, 2018   modified Modified on Aug 24, 2018
भारत में सशस्त्र बलों के 25 लाख से अधिक वेटरंस (अनुभवी व्यक्ति) हैं, जिनमें से अधिकांश अच्छी तरह से प्रशिक्षित, प्रेरणा और उच्च कौशल से लैस नागरिक हैं, जो आगे बढ़कर राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने को तत्पर हैं.

इसमें हर साल लगभग 60,000 सैनिकों का और इजाफा हो जाता है. वेटरन में शामिल होनेवाले अधिकांश सैनिकों की उम्र 35 से 45 वर्ष के बीच होती हैं. हालांकि, इनमें से अधिकांश चरणबद्ध सेवानिवृत्ति की ओर अग्रसर हैं या ऐसी नौकरियों में अटके हैं, जो उनके विशिष्ट कौशल का सही तरीके से उपयोग नहीं कर सकती हैं.

सेवानिवृत्ति के बाद मिलनेवाली नौकरियों काे लेकर बहुत अच्छी राय नहीं है. सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों के बीच कराये गये एक सर्वेक्षण में 84 फीसद ने बताया कि उन्हें पुनर्वास की मौजूदा सुविधाओं से लाभ नहीं हुआ है. एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि वायु सेना के 82 फीसद वेटरन को पुनर्वास में किसी भी प्रमुख संस्थान से कोई सहायता नहीं मिली. ज्यादातर सैनिकों के लिए, सेवानिवृत्ति आमतौर पर जल्दी होती है, हालांकि 'सेवानिवृत्ति' शब्द खुद ही भ्रामक है.

ज्यादातर सैनिकों को कैरियर में बदलाव से समायोजन करना पड़ता है. इस तरह का मध्य-आयु में नागरिक जीवन को संक्रमण वास्तव में पुनः सामाजिकरण की प्रक्रिया है, जो तनावपूर्ण काम है. उन्हें ऐसी जगह को छोड़ना पड़ता है, जो सुरक्षा का पर्याय है और एक ऐसे वर्कफोर्स में शामिल होना होता है, जो अपनी बनावट में ही भविष्य को लेकर अनिश्चितताओं से घिरा है.

अक्सर नागरिक जीवन में वापसी के बाद सेवानिवृत्त फौजी का अधिकांश समय घर पर ही गुजरता है, जिससे समायोजन की समस्याएं भी पैदा होती हैं. जबकि वन रैंक वन पेंशन पर अब भी बहस जारी रही है, पुनर्वास पर गंभीरता से सामाजिक अध्ययन की जरूरत है.

ऐसा नहीं है कि वेटरन के लिए कोई संस्थागत चिंता नहीं है. केंद्रीय सैनिक बोर्ड के तहत काम कर रहे जिला सैनिक बोर्ड, अधिकतर जिलों में हैं. ये पूर्व सैनिकों के लिए जमीनी स्तर पर सुविधाएं मुहैया कराते हैं, और इनसे उन्हें फौरी व स्थायी रोजगार पाने में मदद मिलती है.

कैंटीन स्टोर्स विभाग पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को कैंटीन सेवाएं देना जारी रखता है. सशस्त्र बलों की स्थानीय सेवा संस्थाएं पूर्व सैनिकों को प्रशासनिक सेवाएं मुहैया कराते हैं, जबकि आर्म्ड फोर्सेस वाइव्स वेल्फेयर एसोसिएशन (एएफडब्ल्यूडब्ल्यूए) पूर्व सैनिकों की पत्नी-बच्चों को कई वित्तीय और गैर-वित्तीय सहायता प्रदान करती है.

वेटरन को एक्स सर्विसमेन कंट्रिब्यूटरी हेल्थ स्कीम के फायदे मिलते हैं, जिससे वे ईसीएचएस सिस्टम से कैशलेस चिकित्सा सुविधाएं पा सकते हैं. प्लेसमेंट सेल, खासकर वायुसेना में और सरकारी रोजगार केंद्र भी नौकरियां पाने में मदद करते हैं. सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में बैंकों की तरह आरक्षण नीतियों की एक शृंखला है, जिनका सशस्त्र बलों के कर्मी लाभ उठा सकते हैं, हालांकि इनमें से सिर्फ 16-18 फीसद ही लाभान्वित हुए हैं.

यह उदासीनता एक हद तक न सिर्फ ऐसे अवसरों के बारे में जानकारी के अभाव के कारण है, बल्कि जरूरी योग्यता परीक्षाओं को पास नहीं कर पाने के कारण भी है. सैन्यबलों में भी समायोजन की व्यवस्था है, जिसमें वेटरन रक्षा सेवा इकाइयों में 100 फीसद योगदान करते हैं. अच्छा हो कि सरकार वेटरन के लिए नौकरियों में समायोजन के मौके बढ़ाये.

इधर, निजी क्षेत्र में, सैन्यकर्मियों को ज्यादातर सुरक्षा से जुड़ी नौकरियों में ही रखा जाता है. हालांकि, कॉर्पोरेट जगत में वेटरन को बहुत सम्मान की नजर से देखा जाता है, लेकिन उन्हें अधिक योग्य उम्मीदवारों से प्रतिस्पर्धा में रखने को लेकर झिझक है.

वेटरन के लिए अवसर बढ़ाना एक बुनियादी चिंता है. सरकारी रोजगार केंद्रों को प्राथमिकता के आधार पर उनके लिए नौकरी के अवसरों का पता लगाना चाहिए. सरकार को रक्षाकर्मियों के सैन्य सेवा से बाहर आते ही सार्वजनिक क्षेत्र में नयी नौकरी मिल जाने की व्यवस्था करने पर भी विचार करना चाहिए.

सैन्य कर्मियों को फिर से नया कौशल सिखाना बुनियादी चिंता बन जाता है. डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ रिसेटलमेंट (डीजीआर) दूसरे कैरियर के वास्ते वेटरन की तैयारी के लिए नाममात्र का शुल्क लेता है.

यह प्रतिष्ठित संस्थानों में विभिन्न पाठ्यक्रमों के आयोजन के साथ एक संक्रमण की योजना बनाने पर केंद्रित होता है. पारिवारिक जिम्मेदारियां और सेवानिवृत्ति के बाद की योजना के चलते ऐसे पाठ्यक्रमों का बहुत ज्यादा लोग चुनाव नहीं करते हैं.

आदर्श स्थिति तो यह होगी कि डीजीआर उपयोगी सर्टिफिकेट्स और पाठ्यक्रमों की जरूरतों को समझने के लिए गहराई से उद्योग के साथ मिलकर काम करे, पर हां, इन पाठ्यक्रमों की टाइमिंग उद्योग के भर्ती-चक्र के साथ जुड़ी हो.

ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम उद्योग जगत के लोगों की देखरेख में आयोजित किये जाने चाहिए, जिससे कि उन्हें अनुभवी उम्मीदवारों को परखने का मौका मिले. इन पाठ्यक्रमों को बाजार में उपलब्ध नौकरियों की जरूरत के हिसाब से री-पैकेज किये जाने की जरूरत है, जो औद्योगिक साझीदारों के समूह में रोजगार गारंटी देता हो.

इस व्यवस्था में ऐसे कुशल वेटरन की सालाना उपलब्धता को सरकारी कार्यक्रमों से भी जोड़ने की जरूरत है. सरकारी मंत्रालयों और कार्यक्रमों के साथ स्ट्रेटजिक साझेदारी, जिसमें 'मेक इन इंडिया' और 'स्किल इंडिया' भी शामिल हो, से वेटरन में उद्यमशीलता के साथ-साथ कौशल विकास करने में काफी मदद मिलेगी.

ब्रिटिश सरकार ने आर्म्ड फोर्सेस अनुबंध (2011) में पुनर्वास सुनिश्चित करने को अपना समर्थन दिया है और इसके द्वारा सशस्त्र बलों में सेवा करने से हो सकनेवाले किसी भी नुकसान की भरपाई का वादा किया गया है, जिसमें कर्ज लेने, हेल्थकेयर या सोशल हाउसिंग के साथ ही उन्हें नौकरी पाने में मदद की जाती है.

आदर्श स्थित तो यह होगी कि सेवानिवृत्ति के बाद वेटरन को अपने लिए मदद मांगने के लिए बेसहारा न छोड़ा जाये. सरकार को, निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में, नागरिक समाज में उनका पूर्ण एकीकरण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए. प्रभावी पुनर्वास के बिना, सेवा में कार्यरत जवानों के मनोबल को बनाये रखना कठिन होगा और यह प्रतिभाशाली युवाओं को सशस्त्र बलों में शामिल होने से हतोत्साहित करेगा.

https://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/1197114.html


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