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न्यूज क्लिपिंग्स् | सोशल मीडिया में बढ़त जीत की गारंटी नहीं है- विपुल मुद्गल

सोशल मीडिया में बढ़त जीत की गारंटी नहीं है- विपुल मुद्गल

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published Published on May 1, 2014   modified Modified on May 1, 2014

किसी भी व्यक्ति के विचार को गढ़ने में, विचारों के संचरण में मीडिया का रोल काफी अहम है. विचारों के प्रसार में सोशल मीडिया का भी अपना महत्व है, जिसका प्रयोग कर विभिन्न राजनीतिक दल अपनी ताकत को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके जरिये न सिर्फ वाद-विवाद को जन्म दिया जाता है, बल्कि अपनी नीतियों, अपने कार्यो, अपने नेताओं के बारे में जानकारी भी जनता तक पहुंचायी जाती है.

भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में ही व्यापक स्तर पर तकनीक का प्रयोग करना शुरू किया था. तब मोबाइल पर अटल बिहारी वाजपेयी की आवाज गूंजती थी कि ‘मैं अटल बिहारी वाजपेयी बोल रहा हूं.’ 2014 के आम चुनाव से मोबाइल के अलावा सोशल मीडिया का प्रयोग पहले की तुलना में बढ़ता हुआ दिख रहा है. अब राजनीतिक दल अपनी बैठकों में वर्चुअल माध्यमों और तकनीकी का प्रयोग व्यापक तौर पर कर रहे हैं. पिछले चुनावों में एसएमएस के जरिये मतदाताओं तक संदेश भेजा जाता था, जबकि अब वीडियों क्लिपिंग्स आदि के जरिये भी अपनी बात पहुंचाये जाने की शुरूआत हो गयी है.       

भाजपा ने ब्रांडिंग और मोदी की बातों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए कम्युनिकेशन टीम को काफी तरजीह दी है. इसमें बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट के छात्र शामिल हैं, जो मोदी और भाजपा की ब्रांडिंग में लगे हुए हैं. आइआइटी और आइएमएम जैसे संस्थानों से पढ़े ये छात्र फेसबुक और ट्विटर का प्रयोग धड़ल्ले से करते हैं. यही नहीं, देश में मोबाइल पर इंटरनेट का प्रयोग करनेवालों की संख्या 14 करोड़ के आसपास है. भाजपा इस वर्ग के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की कवायद कर रही है. यही कारण है कि मोदी सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं. इस माध्यम के जरिये उनका तार अपने समर्थकों के साथ लगातार जुड़ा रहता है, और विरोधियों पर भी इसके जरिये वे तीखा हमला बोलते हैं. लेकिन सोशल मीडिया का अपना दायरा है.

सोशल मीडिया किसी व्यक्ति की ताकत को बढ़ाता है, लेकिन यह शून्य में काम नहीं करता. सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा प्रभाव मध्य वर्ग में होता है. यह भी कहा जा सकता है कि लोअर मिडिल क्लास भी इसका प्रयोग कुछ हद तक करता है. यह मध्यम वर्ग ओपिनियन मेकर होता है, विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करता है, और उनकी बातें आम लोगों तक भी किसी न किसी तरीके से पहुंचाता है. इसलिए आम आदमी सोशल मीडिया का प्रयोग भले ही न कर रहा हो, लेकिन इन ओपिनियन मेकर के जरिये सूचना के संचरण से बहुत प्रभावित होता है. वैसे भी भारत में युवाओं की संख्या ज्यादा है, और इस चुनाव में ऐसी उम्मीद की जाती है कि युवा मतदाता बढ़-चढ़ कर चुनाव में अपनी जनतांत्रिक जवाबदेही निभायेंगे. यह वर्ग मीडिया के अन्य माध्यमों के साथ सोशल मीडिया का प्रयोग भी धड़ल्ले से करता है, और इसी मतदाता वर्ग को भाजपा एवं अन्य राजनीतिक दल लक्षित कर रहा है.      

लेकिन यहां हमें समझना होगा कि सोशल मीडिया आपकी ब्रांडिंग कर सकता है, लेकिन ब्रांड के रूप में आप खुद को तभी भुना पायेंगे, जब आपकी सक्रियता धरातल पर होगी. सोशल मीडिया आपकी मजबूती, आपकी उपस्थिति, आपके दायरे को और बढ़ा सकता है, लेकिन शून्य में आपके लिए काम नहीं कर सकता है. अगर आपके पास पैर है, पैरों के नीचे जमीन है, तभी वह आपके भागने में और तेज दौड़ लगाने में आपकी मदद करेगा.

इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि मोदी सिर्फ सोशल मीडिया की उपज हैं, या सिर्फ सोशल मीडिया ने या अन्य मीडिया माध्यमों की बदौलत मोदी खड़े हुए हैं. मोदी खुद की बदौलत खड़े हुए हैं, और उनके पीछे भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं की ताकत है. और यही कार्यकर्ता और पार्टी और यहां तक की खुद मोदी सोशल मीडिया का प्रयोग कर तेज दौड़ लगाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया का प्रयोग अन्य दल नहीं कर रहे हैं. उदाहरण के लिए अगर पिछले साल हुए अन्ना के आंदोलन को देखें, तो इस आंदोलन में सोशल मीडिया ने ही अहम भूमिका निभायी थी.

यहां तक कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ भी सोशल मीडिया का प्रयोग धड़ल्ले से करती है. लेकिन यह माध्यम उनके लिए उतना उपयोगी नहीं हो पा रहा है, जितना स्थापित राजनीतिक दल (भाजपा जैसे दल) के लिए. क्योंकि बिना अपनी उपस्थिति दर्ज कराये, कार्यकर्ताओं की लंबी श्रृंखला तैयार किये बगैर चुनावी जीत हासिल नहीं हो सकती. अमेरिका के चुनावों में सोशल मीडिया का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता रहा है. भारत में मध्यवर्ग और युवाओं की बढ़ती संख्या और तकनीक के इस्तेमाल के प्रति इनके लगाव को देखते हुए मोदी ने अपने ट्विटर संदेश 12 भाषाओं में प्रेषित करते हैं. मोदी सोशल मीडिया के साथ ही जमीनी स्तर पर भी काम कर रहे हैं.                                   
बातचीत: संतोष कुमार सिंह

http://www.prabhatkhabar.com/news/57756-story.html


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