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न्यूज क्लिपिंग्स् | स्वच्छता सर्वेक्षण में हमारे शहर-- अभिषेक कुमार

स्वच्छता सर्वेक्षण में हमारे शहर-- अभिषेक कुमार

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published Published on Mar 8, 2019   modified Modified on Mar 8, 2019
इस बात में कोई संदेह नहीं कि आज आबादी के बोझ से चरमराते हमारे शहरों के लिए मूलभूत सुविधाएं पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. इन मूलभूत सुविधाओं में पीने का साफ पानी, शोधित सीवरेज, कचरे का निष्पादन, देश के हर कोने में चौबीस घंटे बिजली आपूर्ति, सुचारु यातायात और बेहतर चिकित्सा हासिल करना जैसी चुनौतियां शामिल हैं.

लेकिन, इनसे भी ज्यादा जरूरी है स्वच्छ माहौल, जो तभी मिल सकता है, जब हमारी सरकारें, स्थानीय प्रशासन और हर शहरी की मानसिकता साफ-सफाई को लेकर एकदम स्पष्ट हो. इसके आकलन का एक तरीका स्वच्छता का सर्वेक्षण हो सकता है, जिसकी तमाम कसौटियों पर मध्य प्रदेश का इंदौर लगातार तीसरी बार पहले नंबर पर घोषित किया गया है. देश की सबसे स्वच्छ राजधानियों में भी मध्य प्रदेश को ही अहमियत मिली और भोपाल सबसे साफ राजधानी घोषित की गयी. इस सूची में 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में अहमदाबाद और पांच लाख से कम आबादी वाले शहरों में उज्जैन ने बाजी मारी है.

उल्लेखनीय है कि महज 28 दिनों के भीतर 64 लाख लोगों के सीधे फीडबैक से तैयार ‘स्वच्छता सर्वेक्षण-2019' रिपोर्ट में देश के जिन 4,237 शहरों का सर्वेक्षण किया गया, उनमें करीब 70 कैटेगरी हैं. यानी किसी शहर का प्रशासन और नागरिक चाह लें, तो देश के 70 शहर किसी न किसी बात में अपनी चमक दिखा सकते हैं. लेकिन हैरानी है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और महाराष्ट्र के बाहर सफाई के पुरस्कार हासिल करनेवाले शहरों की संख्या कम ही दिखती है.

लगता है कि साफ-सफाई को लेकर हमारी सरकारों, प्रशासन और खुद नागरिकों में इसे लेकर कोई उलझन है, जिससे उनके सामने शहरों की स्वच्छता कोई बड़ा एजेंडा नहीं बन पा रही है. वे इसे लेकर कोई उत्सुकता नहीं दिखा पा रहे हैं कि आखिर उनके शहर की इस तरह की पहलकदमियों में कोई हिस्सेदारी क्यों नहीं है और क्या साफ-सफाई का जिम्मा सिर्फ सरकार और प्रशासन के सिर ही होना चाहिए?

दरअसल, भारतीय जनमानस में सफाई को लेकर एक खास किस्म की अड़चन दिखायी देती है. इस बात को ऐसे समझते हैं- हमारे देश में ज्यादातर लोगों का जोर सफाई के बजाय ‘पवित्रता' पर रहा है, जो या तो ईश्वर प्रदत्त होती है या आंतरिक उपायों से हासिल की जाती है. अपने परिवेश को साफ-सुथरा रखने के बजाय इसका जोर भीड़ से अलग दिखने पर है.

कहीं-न-कहीं हमारे अवचेतन में यह भी बैठा हुआ है कि सफाई हमारा नहीं, किसी और का यानी सरकार का काम है यानी सरकारी वेतन पर रखे गये सफाईकर्मियों का काम है. इसी सोच का नतीजा है कि वर्ण-व्यवस्था ने एक खास वर्ग को यह काम सौंप कर छुट्टी पा ली और बाकी समाज के लिए साफ-सफाई कोई मुद्दा ही नहीं रही.

कहने को तो आज वर्ण-व्यवस्था के बंधन कुछ ढीले हुए हैं, लेकिन इस परजीवी मानसिकता से निजात अभी नहीं मिली है कि हमारे सामने पड़ा कचरा उठाना किसी और की जिम्मेदारी है. बल्कि, शहरों में तो ऐसे नजारे आम हैं, जहां तमाम सोसाइटियों के पीछे उस कचरे के अंबार लगे हुए हैं, जो उन्हीं सोसाइटियों से निकलता है.

देखा जाये, तो अब तक हमारी सरकारें भी इस मामले में ज्यादा लापरवाह रही हैं. वे नगर निगमों को सफाई का पैसा तो देती रहीं, लेकिन इस बारे में कोई प्रेरणा नहीं जगा पायीं कि उन्हें इस पैसे का सही इस्तेमाल भी करना है.

हालांकि, मौजूदा केंद्र सरकार ने स्वच्छता मिशन के तहत ग्रामीण और शहरी, दोनों मोर्चों पर सफाई के अभियान शुरू किये. सरकार ने स्वच्छ भारत ग्रामीण मिशन के तहत गांवों में हर घर में शौचालय बनाने और खुले में शौच मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा, तो स्वच्छ भारत शहरी मिशन में घरों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर भी शौचालय और कूड़ा-कचरा प्रबंधन पर भी फोकस किया. पांच साल पहले 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकों से आह्वान किया था कि वे देश को साफ-सुथरा बनाने में सरकार की मदद करें. उन्होंने इसके लिए 2019 की डेडलाइन भी सामने रखी थी, क्योंकि यह वर्ष गांधीजी की 150वीं जयंती वर्ष है.

उनका मत था कि 2019 तक सारा देश साफ-सुथरा हो जाये, क्योंकि गांधीजी को सफाई बहुत पसंद थी. इसके लिए उन्होंने देश की जनता से यह अपील भी की थी कि देश का हर नागरिक साल में कम-से-कम सौ घंटे सफाई को दे. उन्होंने कहा था कि जिस तरह दिवाली पर हम अपने घर को साफ करते हैं, क्यों न पूरे देश को साफ करने का प्रयास करें.

स्वच्छता के सिद्धांत को मानें, तो हम पाते हैं कि अगर देश साफ रहेगा तो बीमारियों का प्रसार घटेगा. इससे लोगों के इलाज पर आनेवाला खर्चा बचेगा. इसलिए भारत को सफाई के मामले में विश्व के स्तर पर पहुंचना होगा. देश के पचास पर्यटन स्थलों में सफाई की व्यवस्था विश्व स्तर की करनी होगी, तभी भारत के बारे में दुनिया के लोगों की धारणा बदलेगी और हमारा पर्यटन भी बढ़ेगा.

हमारी सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के इरादे सही दिशा में हैं, पर सवाल है कि क्या उनके आह्वानों का असर हमारे शहरवासियों पर पड़ सका है? स्वच्छ सर्वेक्षण की ताजा सूची इस मानसिकता की तस्वीर को काफी हद तक साफ करती है. उम्मीद है कि सफाई को लेकर हमारी सोच को लगे जाले इससे जरूर साफ हो सकेंगे.

https://www.prabhatkhabar.com/news/columns/cleanliness-survey-city/1259169.html


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