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न्यूज क्लिपिंग्स् | सड़क दुर्घटनाओं में बिहार देश के दस शीर्ष राज्यों में

सड़क दुर्घटनाओं में बिहार देश के दस शीर्ष राज्यों में

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published Published on Jun 20, 2015   modified Modified on Jun 20, 2015
सड़क दुर्घटना के तुरंत बाद अगर ट्रॉमा सेंटर में घायलों को पहुंचाया जाए तो जख्मी की जिंदगी को बचाया जा सकता है। पर बिहार में एक भी ट्रॉमा सेंटर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अब पारा मेडिकल कर्मियों को प्री हॉस्पिटल ट्रॉमा टेक्नीशियन की ट्रेनिंग दी जाएगी। चाहे वे किसी भी अस्पताल में तैनात हों, इस ट्रेनिंग के बाद वह सड़क दुर्घटना में घायल को तत्काल उपचार उपलब्ध करा सकेंगे। डायरेक्टोरेट जेनरल हेल्थ सर्विसेस ने इसका पाठ्यक्रम तैयार किया है। 12 महीने के इस पाठ्यक्रम में सड़क दुर्घटना से जुड़े कई बिंदुओं को शामिल किया गया है। आरंभ में प्रशिक्षण के लिए पारा मेडिकल स्टाफ मास्टर ट्रेनर की भूमिका निभाएंगे। बिहार में तेजी से बढ़ रही सड़क दुर्घटनाएं सरकार और जनता के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है। सड़क दुर्घटना के मामले में दस शीर्ष राज्यों में बिहार भी शामिल है।

नशे के कारण होती है अधिकतर दुर्घटनाएं: वर्ष 2013 में पूरे देश में 1.38 लाख लोगों की मौत सड़क दुर्घटना में हुई। इनमें 80 प्रतिशत मामले ऐसे थे जिसमें ड्राइवर ने शराब पी रखी थी और खतरनाक तरीके से ड्राइविंग कर रहे थे। हर एक मिनट पर देश में एक सड़क दुर्घटना होती है और चार मिनट में सड़क हादसे में एक की मौत।

सड़क दुर्घटना में सजा का प्रावधान: सड़क दुर्घटना के संबंध में जो कानून है उसे सख्त किए जाने की बात समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जाती रही है। वर्तमान में जो कानून है इसके अंतर्गत आईपीसी की धारा 279 को पहले लागू किया जाता है। इसके तहत खतरनाक तरीके की ड्राइविंग से अगर कोई घायल होता है तो ड्राइवर को छह महीने की सजा होगी और एक हजार रुपए का जुर्माना होगा। वहीं अगर किसी की मौत हो जाती है तो आईपीसी की धारा 304 ए लागू होता है। इस कानून में दो वर्ष की सजा का प्रावधान है।

नए रोड सेफ्टी कानून का ड्राफ्ट तैयार: पथ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने नये रोड सेफ्टी कानून का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। इस कानून के तहत सड़क दुर्घटना के जिम्मेवार ड्राइवर को सात साल की सजा का प्रावधान किया गया है। ड्राइवर और वाहन मालिक दोनों इस कानून की परिधि में आएंगे।

तुरंत मदद के ख्याल से कानूनी पहलुओं में बदलाव: सड़क दुर्घटना में घायलों के लिए एक गोल्डेन आवर होता है। अगर उस अवधि में उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो उनकी जिंदगी बचायी जा सकती है। पर बेवजह पुलिस पूछताछ और अन्य किस्म की दिक्कतों की वजह से लोग घायलों को अस्पताल पहुंचाने में दिलचस्पी नहीं लेते। पर पथ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इस पचड़े को खत्म कर दिया है। सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अगर कोई अस्पताल पहुंचाता है तो उससे न तो अस्पताल प्रबंधन और न ही पुलिस कोई पूछताछ करेगी। वह घायल को अस्पताल पहुंचाकर निकल सकता है। सड़क दुर्घटना में घायल की मदद के लिए उसे पुरस्कृत भी किया जाएगा।


http://www.livehindustan.com/news/bihar/article1-Road-accident-Bihar-483814.html


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