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न्यूज क्लिपिंग्स् | हजारों वर्गफुट में फैला मलबा बना चुनौती

हजारों वर्गफुट में फैला मलबा बना चुनौती

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published Published on Sep 24, 2009   modified Modified on Sep 24, 2009

कोरबा. बालको के निर्माणाधीन पॉवर प्लांट की चिमनी गिरने की यह अपने तरह की पहली घटना है। इस बड़ी औद्योगिक दुर्घटना में आपदा प्रबंधन की व्यवस्था की पोल भी खोलकर रख दी है। चिमनी गिरने के बाद संयंत्र परिसर में अफरा-तफरी मच गई। मजदूर अपने साथियों को तलाशते हुए बदहवास थे।



यह सही है कि हादसा बड़ा है मगर उसके बाद राहत और आपदा प्रबंधन ने जो व्यवस्था की जानी थी वह नजर नहीं आई। आलम यह रहा कि मजदूरों के गुस्से को देखते हुए बालको और ठेका कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी गायब हो गए। सुरक्षा के लिए तैनात निजी एजेंसी का यह हाल था कि संयंत्र के गेट खुले छोड़ दिए गए थे और हजारों लोग मौके पर पहुंच गए।



बाद में पुलिस की गेट पर तैनाती की गई। घायलों को आनन-फानन में बालको हास्पीटल भेजा गया। जहां बालको के संवाद प्रमुख बीके श्रीवास्तव के साथ अन्य अधिकारी उपचार व्यवस्था में जुटे हुए थे। दुर्घटना की खबर जंगल में लगी आग की तरह शहर में फैल गई। जिस किसी ने भी इसे सुना पहले तो मजाक समझा और उसके बाद उसके मुंह से आह निकल गई।



संयंत्र में काम करने वाले अधिकांश मजदूर झारखंड, बिहार और उड़ीसा के है। संयंत्र के आस-पास ही बने कच्चे मकानों तथा झुग्गियों में यह रहते है जहां आज मातमी सन्नाटा पसर गया। मृतकों में बिहार छपरा के जलालपुर निवासी असिफ अली, सूरज देव साय, रतन कुमार सिंह, सुखदेव शाह, गजाधर, हरिशंकर, जितेन्द्र सिंह और राजकुमार टोप्पो शामिल हैं। इन मृतकों की शिनाख्त उनके गेटपास से की गई है।



गिरती चिमनी को देख अमेरिका के ट्विन्स टॉवर का हादसा याद आया



बालको अस्पताल में भर्ती घायलों में महेन्द्र, दयाराम राठौर, राजू, रामफल, रिकेश शामिल है। इनका कहना है कि वे मौत के मुंह में से वापस लौटे है। एक बारगी तो उन्हें न्यूयार्क में आतंकवादी हमले में ध्वस्त हुए ट्वीन टॉवर की याद आ गई थी। वहां तो हवाई जहाज टकराया गया था मगर यहां शान के साथ अगल-बगल खड़ी हो रही दो चिमनियों में से एक गिरते हुए उन्होंने देखी।



सबसे बड़ी समस्या चिमनी के करीब 12 हजार वर्ग फुट में गिर पड़े हजारों टन मलबे को हटाने की है। यह पूरा मलबा लोहे की राड और कांक्रीट का है। इसके आस-पास संयंत्र निर्माण के लिए लाई गई भारी मशीनरी, लोहे के गर्डर, राड, प्लेट आदि बिखरी हुई है। घटनास्थल पर राहत कार्य के लिए जेसीबी, केटरपीलर, क्रेन आदि साजो सामान पहुंच गया है, मगर उसे मलबे तक पहुंचाने में रात 11 बजे तक मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है।



एनटीपीसी चिमनी दुर्घटना और सीएसईबी हादसे की आई याद



बुधवार को बालको के निर्माणाधीन पॉवर प्लांट की चिमनी ढहने का देश में अपनी तरह का यह पहला हादसा है। इस हादसे ने 1984 में एनटीपीसी के निर्माणाधीन संयंत्र की चिमनी दुर्घटना की याद दिला दी। इन दोनों ही हादसों में एक बड़ा फर्क यह है कि बालको की चिमनी ही ध्वस्त हो गई, जबकि एनटीपीसी चिमनी हादसे में चिमनी के अंदर ऊंचाई पर काम के लिए बनायी गई लोहे की गेढ़ी भरभराकर नीचे गिर पड़ी थी। इस हादसे में 6 मजदूरों की मौत हुई थी। वही मजदूर सरदार बलवंत सिंह की दिलेरी ने 18 मजदूरों जिसमें कुछ महिलाएं भी शामिल थी कि जान बचा ली थी।



उस हादसे में मजदूर 190 मीटर की ऊंचाई पर काम कर रहे थे। उस दिन भी गरज-बरस के साथ बारिश हो रही थी। हादसे के बाद एनटीपीसी दिल्ली मुख्यालय को सूचना मिलने पर एक हेलीकाप्टर आनन-फानन में भेजा गया। हालांकि वह भी मजदूरों को बचाने में मदद नहीं कर पाया। तब सरदार बलवंत सिंह की सूझबुझ काम आई। जिस स्थान पर मजदूर फंसे थे वहां से नीचे एक प्लेटफार्म पर बड़ा रस्सा पड़ा हुआ था। सरदार जी ने अपनी पगड़ी निकाली और उसका सहारा ले उस स्थान तक पहुंचे जहां रस्सा था और फिर रस्से को नीचे फेंका गया।



पहले एक फोन रस्से से बांधकर ऊपर भेजा गया और उससे ऊपर बातचीत शुरू हो पाई जिसके बाद उसी रस्से के सहारे जाली और दूसरा सामान भेजा गया तथा फिर एक-एक मजदूरों को सुरक्षित नीचे उतारा गया। इस साहस के लिए सरदार बलवंत सिंह को तत्कालीन राष्ट्रपति ने पुरस्कृत किया। वहीं राज्य तथा देश की अनेक संस्थाओं ने भी उनका सम्मान किया था। दूसरा बड़ा औद्योगिक हादसा सीएसईबी के कोरबा पूर्व विस्तार संयंत्र के निर्माण के दौरान वर्ष 2006 में घटित हुआ था। जब संयंत्र के कोल हेंडलिंग प्लांट का बंकर शाम 4 बजे एकाएक ढह गया और उसके मलबे में दबकर 7 मजदूरों की मौत हो गई थी। अगले दिन भड़के मजदूरों ने प्लांट परिसर में स्थित कार्यालय में जमकर तोड़-फोड़ व आगजनी की।




बालको में बनी दूसरी चिमनी पर भी लगा सवालिया निशान



हादसे के बाद ध्वस्त हुई चिमनी से 125 मीटर दूर बन रही दूसरी चिमनी पर भी सवालिया निशान लग गया है। ये दोनों ही चिमनियों का निर्माण लगभग एक साथ जीडीसीएल ने शुरू किया था। दूसरी बात जिस तरह से चिमनी ध्वस्त हुई है उसके हजारों टन मलबे से आस-पास की जमीन मानो भूकंप के झटके लगने जैसी हिल गई थी। जानकार कहते है कि आस-पास बन रही इन चिमनियों में शेष बची चिमनी की मजबूती पर भी असर होना तय है। बालको प्रबंधन का कहना है कि जांच के बाद ही पता चल पाएगा कि यह हादसा क्यों हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि प्रथमदृष्टया निर्माण गुणवत्ताहीन होना इसका कारण है। वही एक आशंका बिजली गिरने से हादसा होने की भी जताई जा रही है।

 
 

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