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न्यूज क्लिपिंग्स् | हेराफेरी पर कस रही आरटीआइ की नकेल

हेराफेरी पर कस रही आरटीआइ की नकेल

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published Published on Sep 8, 2013   modified Modified on Sep 8, 2013

सूचना का अधिकार कानून भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई व अपने अधिकारों को पाने का माध्यम बन गया है. झारखंड के गांवों में बड़ी संख्या में लोग आरटीआइ का प्रयोग कर रहे हैं. आरटीआइ के जरिये भ्रष्टाचार का खुलासा करने या अपने अधिकारों को पाने वाले लोगों से प्रेरित होकर दूसरे लोग भी आरटीआइ का उपयोग कर रहे हैं. इस बार की आमुख कथा में पंचायतनामा ने आरटीआइ के ऐसे ही किस्सों को समेटा है.

राहुल सिंह
पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड क्षेत्र में आदिवासियों के लिए संचालित मेसो परियोजना में हेरफेर की गयी. गरीबों के कल्याण व विकास के लिए चलाये जाने वाले कार्यक्रम के पैसों की अफसरों व एनजीओ वालों ने बंदरबांट कर ली. आम लोगों व जमीनी मुद्दों के लिए संघर्ष करने वाले दिनेश महतो ने आरटीआइ के जरिये पूछा कि किन किसानों की जमीन पर विशेष केंद्रीय योजना के तहत फलदार व इमारती पौधों का रोपण किया गया. उन्होंने इसकी सूची मांगी. उन्हें बताया गया कि पटमदा प्रखंड के दिघी, गोबर घुसी, पटमदा, गोड्डी, दामोदरपुर, सिसदा, हुड़ंगबील व उड़िया तिरुडीह पंचायत के लेकड़ो, सारी, सुंदरपुर, नामसोल, लावजो, घोडाबांधा एवं काकू गांव के 140 लाभुक किसानों के 140 एकड़ भूमि पर पौधरोपण किया गया. इस योजना के तहत तालाब निर्माण भी किया जाना था. दिनेश को इस संबंध में संबंधित विभाग से सूचना उपलब्ध करायी गयी. उन्हें बताया गया कि लाभुक किसानों की सूची में क्रमांक 98 कृतिवास सिंह, क्रमांक 100 कोकिल सिंह, क्रमांक 103 गणोश माहली तीन का ग्राम लावजोड़ा, पंचायत दामोदरपुर, प्रखंड पटमदा के एक-एक एकड़ कुल तीन एकड़ में पौधरोपण किया गया है.        

लेकिन दिनेश ने जब स्थल का मुआयना किया व उन किसानों से बात की तो उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि उन्हें तो इस योजना की जानकारी तक नहीं है. पौधे लगना तो दूर की बात है. इसी तरह लाभुका किसानों कि सूची में किसान क्रमांक 81 से 88 के आठ लाभुक किसानों की जिस आठ एकड़ जमीन पर पौधरोपण का दावा किया गया, उस पर एक भी पौधा नहीं लगाया गया. ग्राम नामशोल, पंचायत गोड्डी, प्रखंड पटमदा के रोहित सिंह का किसान क्रमांक 84 है. उन्होंने ऐसी योजना की जानकारी होने से इनकार किया व बताया कि गांव में केवल दो तालाब बनाये गये हैं. दिनेश ने सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी व जमीनी हकीकत का फोटो, किसानों से बातचीत का ब्योरा व अन्य दस्तावेज पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त को दो सितंबर को भेज दिया. इसकी प्रतिलिपि राज्य के मुख्य सचिव व लोकायुक्त को भी उन्होंने भेजी है. उन्होंने इन लोगों को लिखे अपने पत्र में गरीबों के  कल्याण के लिए आये पैसे में से 60 लाख रुपये के गबन का आरोप लगाया है. अब दिनेश इस इंतजार में हैं कि उनके आवेदन पर प्रशासन व लोकायुक्त कार्यालय के द्वारा क्या कार्रवाई की जाती है?      

इसी तरह दिनेश ने पिछले साल पोटका की हरणा पंचायत के चुकागड़ा में आदिम जनजाति सबर समुदाय के बच्चों के लिए बनने वाले विद्यालय के संबंध में आरटीआइ से सूचनाएं जुटायीं. उन्हें पता चला कि पैसे तो निकाल लिये गये, लेकिन विद्यालय भवन नहीं बनाया गया. उन्होंने अधिकारियों को पत्र लिखा. इसका असर यह हुआ कि डीडीसी ने एफआइआर व डीइओ को जांच का आदेश दिया. इसके बाद प्रस्तावित स्थल पर रातों-रात स्कूल बन गया. हालांकि दिनेश का आरोप है कि डीइओ ने अपने मातहत काम करने वाले अधिकारियों को बचाने के लिए जान-बूझकर जांच में देरी की, ताकि तबतक काम हो जाये.      

आरटीआइ के राज्य भर में ऐसे ढेरों किस्से हैं, जिससे जमीनी स्तर पर किसी रुके काम के हो जाने, गरीबों के पैसे हड़प लेने के मामले उजागर हुए हैं. ऐसे मामलों में कार्रवाई भी हुई है व दोषियों को जेल की हवा भी खानी पड़ी. दोषी अधिकारी-कर्मचारी को अपने पद से हटाये जाने के भी कई मामले हैं.

सूचना के अधिकार कानून ने न केवल शहरी इलाकों बल्कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को एक संबल प्रदान किया है. लोग अपने हक -अधिकार के लिए सूचना के अधिकार कानून का प्रयोग कर रहे हैं. लोग आरटीआइ के जरिये सूचनाएं जुटाते हैं और उसको आधार बना कर अधिकारियों से अपना व समाज का हक मांगते हैं. जिला, प्रखंड व पंचायत स्तर पर आरटीआइ कार्यकर्ता सक्रिय हैं. देवघर के मधुपुर के आरटीआइ कार्यकर्ता मुकेश रजक वीडियो वोलेंटियर के रूप में भी काम करते हैं. वे अपने कामकाज के जरिये जमीनी सच्चइयां व गड़बड़ियों को उजागर करते हैं. 2012 में जब उन्होंने मधुपुर प्रखंड में मनरेगा की योजनाओं की स्थिति बताने के लिए आरटीआइ डाला तो उन्हें एफआइआर में उलझा दिया गया. इसके लिए मोहरा बनाया गया एक रोजगार सेविका को. उन पर रंगदारी मांगने व धमकी देने का आरोप लगाया गया. दिलचस्प यह कि इसके लिए जिस रोजगार सेविका वंदना कुमारी को मोहरा बनाया गया, वह उस दिन मधुपुर में उपस्थित ही नहीं थी. बल्कि दुमका के एक बीएड कॉलेज में उसकी उपस्थिति दर्ज थी, क्योंकि वह वहां से बीएड कर रही थी. मुकेश ने यह जानकारी भी आरटीआइ के जरिये ही हासिल की. उनके इस दोहरे आरटीआइ का लाभ यह हुआ कि एक सरकारी कर्मी होने के बावजूद रेगुलर क्लॉस से बीएड करने के कारण उसे संस्थान से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

उधर, आरटीआइ कार्यकर्ता व झारखंड माइंस एरिया को-आर्डिनेशन कमेटी के क्षेत्रीय संयोजक सुभाष गयाली ने कोयला कंपनियों के पास पिछले कई सालों से लगातार खनन, खुली खदानों, उनकी सामाजिक जिम्मेवारियों, प्रदूषण से संबंधित विषयों पर दर्जनों आरटीआइ डाला. इसका असर, यह है कि कई गड़बड़ियां सामने तो आयी हीं, कंपनियां अपनी सामाजिक जिम्मेवारियों व खुली खदानों को भरने व वैकल्पिक प्रबंध करने को लेकर ज्यादा सचेत हो गयीं.

मानवाधिकार कार्यकर्ता गोपीनाथ घोष ने आरटीआइ याचिका डाल कर पुलिसिया कार्रवाई व नक्सलियों के हाथों मारे गये लोगों की जानकारी राज्य के गृह मंत्रालय से हासिल की व फिर उसको आधार बनाकर हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की. इसके बाद हाइकोर्ट ने सरकार को पीड़ित परिवारों को मुआवजा व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया. गोपीनाथ बताते हैं कि  उनकी जानकारी में कुछ ऐसे परिवार हैं, जिन्हें कोर्ट के सख्त रवैये के बाद  फिलहाल एक-एक लाख रुपये मुआवजा मिला है.


केस 1
फर्जी ढंग से नामांकन का खुलासा

सुनील महतो, रांची
आरटीआइ कार्यकर्ता सुनील महतो ने कल्याण विभाग के दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के उप निदेशक के पास आरटीआइ आवेदन देकर रांची के जेल रोड में संचालित हो रहे पिछड़ी जाति के आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाली बच्चियों के बीपीएल कार्ड की सत्यता के बारे में जानना चाहा. उनके आवेदन के बाद उप निदेशक ने विद्यालय में पढ़ने वाली बच्चियों के गृह क्षेत्र के बीडीओ को पत्र भेजकर संबंधित बच्चियों के बीपीएल कार्ड की सत्यता की जांच कराने व रिपोर्ट देने का निर्देश दिया. सुनील के पास सूचना थी कि यहां फर्जी बीपीएल प्रमाण पत्र पर प्रवेश मिल रहा है. जांच में पाया गया कि रांची के बुंडू की बारेडीह पंचायत के तुंजू गांव की छात्र प्रियंका कुमारी का नाम बीपीएल बुक में दर्ज नहीं है. इसी प्रखंड के एड़केया के धनेश्वर महतो की बेटी अंजली कुमारी व बुढ़ाडीह के वृंदावन महतो की बेटी रीता कुमारी का नाम बीपीएल सूची में दर्ज नहीं है. तमाड़ के जिलिंगसेरेग गांव के देवेंद्र नाथ महतो की बेटी सिंधु कुमारी का नाम भी बीपीएल सूची में दर्ज नहीं है. सुनील को फिलहाल दूसरे प्रखंड कार्यालयों से आने वाली सूचना का भी इंतजार है. सुनील का दावा है कि इस तरह की गड़बड़ियां उजागर होने के बाद फर्जी तरीके से प्रवेश लेने वाली छात्रएं बाहर की जाएंगी और वास्तव में अति गरीब परिवार की बच्चियों को इस स्कूल में प्रवेश मिल सकेगा.


केस 2
हर लेटर अब वीआइपी है
विजय यादव, कोडरमा
विजय यादव ने सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली सुधारने में दिलचस्प प्रयोग किये. उपायुक्त कार्यालय में आम नागरिकों को आवेदन की प्राप्ति रसीद नहीं दी जाती थी. सिर्फ किसी वीआइपी के लेटरहेड पर आये आवेदनों या पत्रों के लिए ही प्राप्ति रसीद दी जाती थी. जनवरी 2013 में विजय यादव ने उपायुक्त, कोडरमा के कार्यालय में आरटीआइ आवेदन डाल कर इससे संबंधित नियमावली की प्रति मांगी. इस पर उन्हें सूचना मिली कि आम लोगों के आवेदन की प्राप्ति रसीद नहीं देने संबंधी कोई नियम नहीं है. इसका परिणाम यह हुआ कि अब हर नागरिक को अपने आवेदन की प्राप्ति रसीद मिल रही है. इस तरह अब आम आदमी का हर आवेदन भी वीआइपी हो गया.


कोडरमा निवासी विजय यादव ने सूचना का अधिकार के माध्यम से शिक्षा विभाग में एसएसए फंड की राशि के उपयोग तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के क्रियान्वयन पर सूचना हासिल की. एसजीएसवाइ योजना के क्रियान्वयन पर भी आरटीआइ से उन्हें सूचना मिली. इसके कारण जिन समूहों को प्रशिक्षण के बावजूद भुगतान नहीं मिला था, उन्हें राशि मिल गयी. जिला मत्स्य विभाग विभाग द्वारा राशि का उपयोग नहीं करने के मामले का भी खुलासा हुआ और इस क्रम में लंबित मछुआरा आवास का काम पूरा हुआ.

केस 3
आरटीआइ से पंचायत हुई मजबूत
पुष्पा देवी, पंचायत समिति सदस्य, बारीडीह, बोकारो

झारखंड में पंचायतों में 56 फीसदी से भी ज्यादा पदों पर महिलाओं को सफलता मिली है. इनमें से कई महिला प्रतिनिधि अबतक अपना दायित्व पूरी तरह नहीं समझ पायी हैं. लेकिन ऐसी प्रतिनिधियों की तादाद कम नहीं, जो बखूबी अपना दायित्व निभा रही हैं. इनमे से एक नाम है पुष्पा देवी का. बोकारो जिले के जरीडीह प्रखंड की बारीडीह पंचायत समिति सदस्य पुष्पा देवी ने विभिन्न मामलों में अपनी पहल के जरिये अलग पहचान बनायी है. पंचायत प्रतिनिधि के बतौर मिले अधिकार के साथ उन्होंने एक नागरिक के बतौर आरटीआइ का भी सदुपयोग किया. इसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें अपने क्षेत्र के मामले उजागर करने और गलत चीजों पर रोक लगाने में जबरदस्त सफलता मिली है.

अनंतपुर स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय में कई तरह की अनियमितता का पता चलने पर पुष्पा देवी ने आरटीआइ आवेदन डाला. इससे विद्यालय में फरजी नामांकन दिखा कर छात्रवृत्ति एवं पोशाक की राशि की बंदरबांट का पता चला. वास्तविक छात्र-छात्रओं को उनके हक से वंचित करके राशि हड़प ली गयी थी. स्कूल की चहारदिवारी के निमाण में हुई अनियमितता और दोपहर के भोजन की बंदरबांट की भी बात सामने आयी. आरटीआइ से मिले दस्तावेजों को आधार बना कर पुष्पा देवी ने अभियान चला कर प्रधानाध्यापक को निलंबित कराने में सफलता हासिल की.

आरटीआइ से पुष्पा देवी ने एक और बड़ी सफलता हासिल की. उन्हें पता चला कि क्षेत्र की कई महत्वपूर्ण जमीन  पर भू-माफिया का कब्जा है. बहादुरपुर में एनएच के किनारे 99 एकड़ बेशकीमती सरकारी जमीन पर भी दबंग लोगों के कब्जे की उन्हें जानकारी मिली. पुष्पा देवी ने अंचलाधिकारी के पास आरटीआइ आवेदन डाल कर इस सच्चाई को उजागर किया. इसके कारण सरकारी जमीन की गलत तरीके से करायी गयी जमाबंदी रद्द हुई और चहारदिवारी भी हट गयी. पुष्पा देवी ने पंचायत प्रतिनिधि की ताकत के साथ आरटीआइ की ताकत का सदुपयोग करने का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है. आज सरकार द्वारा हर योजना में कन्वर्जेस की बात बात की जा रही है. यानी दो तरह की योजनाओं को जोड़ कर उनका लाभ उठाना. इसी तरह पंचायत पॉवर के साथ आरटीआइ पॉवर के कन्वर्जेस की बात भी होनी चाहिए. पुष्पा देवी इसका एक उदाहरण हैं.

केस 4

आरटीआइ से कॉपी देखी, बन गये जज
संजीत कुमार चंद्र, निरसा, धनबाद

आरटीआइ की ताकत के प्रेरणादायी उदाहरण हैं - संजीत कुमार चंद्र. 2005 से झारखंड हाईकोर्ट में वकालत कर रहे श्री चंद्र अब जज बन चुके हैं. वर्ष 2008 में झारखंड में सिविल जज, जूनियर सेक्शन की बहाली का विज्ञापन निकला था. संजीत ने ओबीसी श्रेणी में प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास की. इंटरव्यू भी अच्छा गया. लेकिन अगस्त 2010 में रिजल्ट देख कर हैरान रह गये. उनका नाम मेरिट लिस्ट में नहीं था. निराश होने के बजाय उन्होंने जेपीएससी से आरटीआइ के तहत अपनी उत्तर-पुस्तिका मांगी. नहीं मिलने पर सूचना आयोग गये. आयोग के निर्देश पर जेपीएससी ने 15़12़.2011 को उन्हें उत्तर पुस्तिका दी. पता चला कि उन्हें लिखित परीक्षा में कुल 72 अंक मिले थे, जबकि उनके अंक सिर्फ 68 दिखाये गये थे. चार अंक कम जोड़े जाने के कारण उनकी नियुक्ति नहीं हुई. लेकिन उनसे कम अंक वालों की नियुक्ति हो गयी. आरटीआइ से मिली उत्तर-पुस्तिका जब झारखंड हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रकाशचंद्र टाटिया को दिखायी गयी तो उन्होंने तत्काल एक उच्चस्तरीय कमेटी बना दी. जेपीएससी व उच्चाधिकारियों से जवाब मांगे गये. सरकार ने अपनी भूल सुधारने के लिए अतिरिक्त पद सृजित करने की प्रक्रिया शुरू कर के  संजीत कुमार चंद्र को सिविल जज जूनियर डिविजन के बतौर बहाल कर लिया.


केस 5

जुलियस को आरटीआइ का सहारा
जुलिसस एक्का, मांडर, रांची
विष्णु राजगढ़िया

रांची के मांडर का जुलियस एक्का एक सवाल पूछ रहा है. केंद्र और राज्य दोनों से. कौन देगा न्याय? सात साल से भटक रहा है. अक्सर फोन करता है - सर, कोई कुछ नहीं बता रहा है, अब तो हम थक गये, वकील साहब भी नहीं बोल रहे कब डेट आएगा.

वर्ष 2005 में बीसीसीएल ने एससी-एसटी कोटे में रिक्त  पदों पर बहाली का विज्ञापन निकाला. डंफर ऑपरेटर पद के लिए जुलियस एक्का का चयन हुआ, लेकिन उसे आज तक नौकरी नहीं मिल सकी है. कारण सिर्फ इतना है कि उसके जाति प्रमाण पत्र की सत्यापन रिपोर्ट रांची जिला प्रशासन ने दो साल तक नहीं भेजी. इसके कारण जुलियस की नियुक्ति निरस्त कर दी गयी.


जुलियस एक्का ने सूचना का अधिकार के जरिये दस्तावेज निकाले जिनसे पता चला कि इस मामले में जिला प्रशासन और बीसीसीएल, दोनों स्तरों पर आपराधिक अनियमितता बरती गयी. केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने आदेश में बीसीसीएल को पुनर्विचार करके एक गरीब युवक को न्याय देने की बात लिखी. लेकिन बीसीसीएल ने अनसुनी कर दी. जुलियस ने मुख्यमंत्री के नाम भी पत्र भेजा, लेकिन कोई जवाब तक नहीं मिला.


हार कर जुलियस ने वर्ष 2010 में झारखंड हाइकोर्ट में रिट याचिका दायर की. लेकिन अब तक सुनवाई शुरू भी नहीं हुई है. इस बीच जुलियस ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से भी गुहार लगायी. लेकिन दोनों के नोटिस के जवाब में बीसीसीएल ने बहला दिया कि मामला हाइकोर्ट में लंबित है.

अब जुलियस को सिर्फ हाइकोर्ट से ही उम्मीद है. लेकिन वकील के पास दौड़ते-दौड़ते जुलियस को कई बार लगता है कि बिना कोई फीस लिए उसका केस देखने के कारण वकील महोदय पूरा ध्यान नहीं दे रहे. उसकी इस धारणा को बदलने के लिए हमने एक अन्य वकील को मामला दिलवाया, लेकिन अब तक केस शुरू नहीं हुआ है. अक्सर फोन करके कहता है जुलियस  - सर, अब तो हम थक गये हैं.

आदिवासी कल्याण के नाम पर डुग्गी-तबला बजाना काफी नहीं है. जुलियस के साथ अन्याय में केंद्र और राज्य दोनों बराबर भागीदार हैं. जुलियस के सवालों से आंखें चुराने के बजाय न्याय देने से सरकारों पर भरोसा बढ़ेगा. वरना जुलियस के इलाके में ऐसे नौजवानों की तादाद बढ़ रही है, जिन्हें डंफर नहीं, बंदूक चलाना पसंद है.

आरटीआइ से जुलियस को अपना केस मजबूत करने में काफी मदद मिली. बीसीसीएल में मेरे आरटीआइ आवेदन से पता चला कि कोल इंडिया का  नियम यह है कि एससी-एसटी कोटे में किसी का चयन होने के बाद उसे तत्काल नियुक्त कर लेना है. उसके जाति प्रमाण पत्र के सत्यापन की प्रक्रिया अलग से चलायी जाएगी, लेकिन इसके नाम पर नियुक्ति में विलंब नहीं किया जाएगा. बीसीसीएल ने इस नियम का उल्लंघन करके इस राज्य में आदिवासी कल्याण के नारों को ठेंगा दिखाया है. आदिवासियों के किसी मसीहा ने आज तक जुलियस को सहानुभूति का एक शब्द तक नहीं कहा है. न्याय देना, दिलाना तो दूर की बात है.

 

(नोट : आरटीआइ कार्यकर्ता डॉ विष्णु राजगढ़िया के सहयोग से सामग्री संयोजन)

http://www.prabhatkhabar.com/news/42168-story.html


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