Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | ‘आप’ को फिर जन-आंदोलन बनना होगा-- राजदीप सरदेसाई

‘आप’ को फिर जन-आंदोलन बनना होगा-- राजदीप सरदेसाई

Share this article Share this article
published Published on May 2, 2017   modified Modified on May 2, 2017

जिस दिन टीवी पर दिल्ली नगर निगम चुनाव को लेकर एग्ज़िट पोल के नतीजों में भाजपा की एकतरफा जीत का अनुमान व्यक्त किया जा रहा था, आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता विद्रोही तेवरों में आसन्न हार के लिए ईवीएम को दोष दे रहे थे। मैंने पूछा कि आप एग्ज़िट पोल पर ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप कैसे लगा सकते हैं, क्योंकि वह तो मतदाताओं के सैंपल के आधार पर होता है? ‘आप' प्रतिनिधि थोड़ी देर मौन रहे फिर चिल्लाने लगे, ‘सब मिले हुए हैं।' जाहिर है जनमत संग्रह और ईवीएम को बड़ी साजिश के साथ जोड़ना भ्रांति ही है खासतौर तब जब बाद में आने वाले चुनाव नतीजों में एग्ज़िट पोल के नतीजों की पुष्टि ही हुई है। बेशक, ईवीएम के दुरुपयोग के पर्याप्त सबूतों के बिना हार के लिए इन मशीनों को दोष देने से ‘आप' की विश्वसनीयता और घटने का खतरा है। ईवीएम के मुद्‌दे से तो चुनाव आयोग को खुले व पारदर्शी तरीके से निपटना चाहिए। ‘आप' को इस पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय खुद से यह पूछना चाहिए : दिल्ली के जिन मतदाताओं ने दो साल पहले उसे इतने उत्साह से समर्थन दिया था, उन्होंने अब उसे निर्णायक रूप से खारिज क्यों कर दिया? शुरू में ही यह अहसास हो जाता है कि मतदाताओं को लगा कि ‘आप' ने उन्हें नीचा दिखाया, जिससे वे गुस्सा हैं। जब अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के मतदाताओं ने 2015 में दूसरा मौका दिया तो उम्मीद थी कि वे ईमानदारी से मुख्य धारा के राष्ट्रीय दलों से अलग वैकल्पिक राजनीतिक संस्कृति प्रदान करेंगे। ‘उम्मीद' ऐसा विचार है, जो सपनों को जन्म देता है। अपने अस्तित्व की साधारणता के बोझ से दबे आम आदमी के लिए ‘उम्मीद' ही जिंदगी को जीने लायक बनाती है। जब वे सपने साकार नहीं होते, जब उम्मीद की हत्या हो जाती है तो पहले यह हताशा में बदलती है और फिर गुस्से में। खेद है कि परिपूर्ण शासन देने की बजाय ‘आप' ने नरेंद्र मोदी सरकार और मोदी से टकराव में ही अपना यूएसपी देखा। दुख है कि यह लड़ाकू मुद्रा ही अपने आप में लक्ष्य बन गई, जिससे ‘आप' के ट्रैक रिकॉर्ड के आसपास नकारात्मक ऊर्जा जमा हो गई। आप यथास्थिति को चुनौती देने वाले आंदोलनकारी के रूप में प्रतिष्ठान विरोधी हो सकते हैं लेकिन, सरकार में आने के बाद वैसे नहीं रह सकते।

 

सत्ता में बैठे केजरीवाल से अपेक्षा थी कि वे शहरी शासन का दिल्ली मॉडल तैयार करेंगे, जो सीधे मतदाता से संपर्क पर आधारित होगा। यह ऐसी बात थी, जिसने मूल रूप से उन्हें वेतनभोगी मध्यवर्ग और निम्न आय वर्गों में खासतौर पर भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल आंदोलन के दौरान लोकप्रिय बनाया था। मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी स्कूलों में सुधार सही दिशा में उठाए कदम थे लेकिन, उपराज्यपाल, केंद्र और यहां तक कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे पूर्व सहयोगियों से ‘आप' नेता के बार-बार के विवादों के शोर में अच्छा काम दबकर रह गया। जो दिख रहा था वह भी गलत था : कार्यकर्ता आधारित नीचे से ऊपर की ओर विकसित राजनीतिक ढांचा निर्मित करना तो दूर, केजरीवाल अपने आप में ही हाईकमान हो गए। लगा कि मुट्‌ठीभर दरबारियों ने उन हजारों कार्यकर्ताओं का स्थान ले लिया, जिन्होंने ‘आप' जैसी घटना को जन्म दिया था। केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं को यह भी भरोसा दिया था कि वे भगोड़े नहीं है, जो 2014 में 49 दिनों में उनकी सरकार गिरने के बाद विरोधियों का प्रमुख आरोप था। 2015 के चुनाव अभियान का हर पोस्टर ‘पांच साल केजरीवाल' का वादा करता था, जो कम से कम पूरा होता दिख रहा है। तब उनकी जीत के आकार और मोदी का मजबूत विकल्प पेश करने की विपक्ष की नाकामी ने शायद केजरीवाल को यकीन दिला दिया कि वे खाली स्थान भर सकते हैं। इसीलिए शायद वे महत्वाकांक्षी स्टार्टअप्स की रणनीतिक गलती कर बैठे : जमीन पर मजबूत हुए बगैर विस्तार की कोशिश। पंजाब व गोवा में की गई पहल से संदेश यह गया कि ‘आप' दिल्ली के मतदाताओं को हलके में ले रही है।

 

इसके उलट भाजपा ने मतदाता के मूड को ठीक पहचाना। स्थानीय शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार महामारी के स्तर पर है और कई जनप्रतिनिधि रातोंरात करोड़पति बन गए। लेकिन, अपने सारे मौजूदा पार्षदों को टिकट न देकर और प्रधानमंत्री मोदी के आसपास प्रचार को केंद्रित रखकर भाजपा ने चर्चा का स्वर बदल दिया। मोदी के करिश्में से मोहित मतदाताओं को ‘नई भाजपा' का वादा बहुत आकर्षक लगा। भाजपा को वोट देने वाले कई लोगों ने शायद नए पार्षदों के नाम भी नहीं सुने होंगे पर उन्होंने नतीजों के लिए ब्रैंड मोदी पर भरोसा किया।

 

विडंबना यह है कि मोदी केंद्रित भाजपा का रवैया ‘आप' जैसे दलों को चुनौती भी देता है और सुधार का मौका भी। चुनौती चुनाव जीतने की धारणा को परे रखकर नागरिकों के मुद्‌दे उठाने की है। मसलन, अगली बार यदि डेंगू या चिकनगुनिया का प्रकोप हो तो ‘आप' को राजधानी में व्यापक जागरूकता अभियान चलाकर वैकल्पिक समाधान देना चाहिए। इसे ‘दैवी हस्तक्षेप' कहने और मच्छरों के लिए भाजपा को दोष देने की बजाय उसे जनसमर्थन से नई राह दिखाने वाला स्वच्छता अभियान चलाना चाहिए। जहां शहरी ‘हिंदू' मध्यवर्ग खासतौर पर मोदी उन्माद से ग्रस्त है, वहीं लोगों से न जुड़ी और सपनों पर केंद्रित व्यक्तित्व संचालित राजनीति को चुनौती देने की अब भी गुंजाइश है। बात चुनाव जीतने की नहीं है बल्कि ऐसे मुद्‌दों पर लोगों को एकजुट करने की है, जिनसे वे जुड़ सकें। अपनी पुनर्खोज में ‘आप' को मूल पहचान पर लौटना होगा: पार्टी की बजाय ऐसा लोक-आंदोलन, जो उन लोगों की आवाज बनें, जो अब भी खुद को राजनीतिक व्यवस्था के बाहर महसूस करते हैं।

 

पुनश्च : कोलकाता से एक मित्र ने मुझसे पूछा कि आप दिल्ली चुनाव पर इतना ध्यान क्यों दे रहे हो। कोलकाता नगर निगम के चुनाव पर तो किसी ‘राष्ट्रीय' चैनल ने एग्जिट पोल नहीं कराया था। वे गलत नहीं थे। एक अर्थ में केजरीवाल दिल्ली में रहने के शिकार भी हैं और इसका लाभ उठाने वाले भी। इस नगर-राज्य की राजनीति कभी-कभी ‘राष्ट्रीय' राजनीति से मिल जाती है और ‘नेशनल' मीडिया नाटकीय रूप से व्यक्तियों को हीरो व जीरो बनाने के बीच झूलता रहता है।(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

राजदीप सरदेसाई
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक


http://www.bhaskar.com/news/ABH-bhaskar-editorial-by-rajdeep-sardesai-5585334-NOR.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close