Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | ‘मुझे अब भी यकीन नहीं होता कि मैं आजाद हो गई हूं’

‘मुझे अब भी यकीन नहीं होता कि मैं आजाद हो गई हूं’

Share this article Share this article
published Published on Nov 24, 2013   modified Modified on Nov 24, 2013

हाल ही में दिल्ली और हरियाणा के सोनीपत से छुड़ाई गई दो लड़कियों की कहानी तहलका की उस पड़ताल की पुष्टि करती है कि असम के लखीमपुर से बड़ी संख्या में लड़कियों की तस्करी करके उन्हें बंधुआ मजदूरी के नरक में धकेला जा रहा है. प्रियंका दुबे की रिपोर्ट.

उत्साह और ऊर्जा से भरी 17 साल की जुलिता को देखकर पहली नजर में यकीन करना मुश्किल है कि वह अभी-अभी बंधुआ मजदूरी, शारीरिक हिंसा, बलात्कार, गर्भपात और मानसिक प्रताड़ना के ढाई साल लंबे एक दुश्चक्र से मुक्त हुई है. जनवरी,  2011 के दौरान मानव तस्करों के जाल में फंसकर असम के लखीमपुर जिले से दिल्ली पहुंची जुलिता पूरी बातचीत के दौरान एक बात बार-बार दोहराती है, ‘मुझे अभी भी विश्वास नहीं होता कि मैं अब आजाद हूं और अपने घर वापस जा सकती हूं. अब मुझे सुबह-शाम कोई नहीं पीटेगा, मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा, मुझे भरपेट खाना मिलेगा. मुझे विश्वास नहीं होता कि मैं सचमुच बाहर आ गई हूं. मैं बहुत पहले ही उम्मीद खो चुकी थी.’  

जुलिता लखीमपुर जिले से हर साल गुमशुदा होने वाली उन सैकड़ों लड़कियों में से एक है जिन्हें तस्करों के एक बड़े नेटवर्क के जरिए महानगरों में 'काम दिलाने' के नाम पर बंधुआ मजदूरी के लिए बेचा जा रहा है. बीती जुलाई में तहलका ने लखीमपुर में पसरे महिला तस्करी के इस जाल और यहां से गुमशुदा हो रही लड़कियों के शोषण पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी. 'लखीमपुर: मानव तस्करी
ी नई राजधानी'
नामक शीर्षक के साथ प्रकाशित हुई तहलका की पड़ताल के बाद यह पहली बार है जब दिल्ली पुलिस  द्वारा अलग-अलग जगहों पर मारे गए छापों के बाद लखीमपुर से ताल्लुक रखने वालीं जुलिता और गुन्नू सांवरा को छुड़ाया गया. यह छापे अक्टूबर, 2013 में अलग-अलग जगहों पर मारे गए थे.

जुलिता की कहानी भारतीय महानगरों में बंधुआ मजदूरी की चक्की में पिस रही अनगिनत नाबालिग लड़कियों की प्रताड़ना की पुष्टि करती है. टूटी-फूटी हिंदी में जुलिता कहती है, ‘मैं तो सब कुछ भूलने लगी थी. अपनी भाषा, चाय बागान, अपना गांव, घर, खेत, त्यौहार...सब कुछ. मैं मान चुकी थी कि मुझे अब हमेशा इसी कैद में रहना होगा.’  वह आगे बताती है, ‘मैं असम के जोरहाट जिले की रहने वाली हूं. मेरी मौसी लखीमपुर में रहती हैं. 2010 में क्रिसमस मनाने मैं अपनी मासी के गांव दुलहत आई थी. वहीं एक दिन स्टीफन आया हमारे घर. वह हमारी लाइन से तीन लड़कियों को दिल्ली ले जा रहा था. उसने मुझसे भी पूछा और मैंने मना कर दिया. मैंने कहा कि मौसी, मां और बाबा से पूछे बिना मैं नहीं जाऊंगी. लेकिन उसने मुझे कहा कि हम एक दिन में दिल्ली से घूमकर आ जाएंगे. तब मुझे पता नहीं था कि मेरे गांव से दिल्ली जाने में ही तीन दिन लगते हैं. बाकी लड़कियां भी जा रही थीं तो मैं भी घूमने के लिए आ गई.’

जुलिता तब सिर्फ 14 साल की थी. उसे पहले बस से गुवाहाटी लाया गया और वहां से ट्रेन के जरिए दिल्ली. वह बताती है, ‘मैंने कई बार स्टीफन से पूछा कि हम अब तक क्यों नहीं पहुंचे और वापस कब जाएंगे, लेकिन ट्रेन में बैठते ही उसने हमें डांटना शुरू कर दिया. फिर  तीन जनवरी, 2011 को हम दिल्ली पहुंचे. हमें सुकूरपुर में प्रवीण के यहां लाया. वहां हम चारों लड़कियों को एक-दो कमरे के घर में रखा गया. एक कमरे में लगभग 20 लड़के थे और हमारे कमरे में 20 लड़कियां. सब बहुत दूर से आई थीं और घर वापस जाना चाहती थीं. लेकिन रोज कोई आता और उन्हें ले जाता. उन्हें काम पर लगाया जा रहा था. फिर हर रोज नई लड़कियां भी आती रहती थीं. वहां बहुत लोग थे.’ वह आगे कहती है, ‘10 दिन बाद पहले मुझे एक कोठी में काम के लिए भेजा गया लेकिन मैं भाग आई क्योंकि मुझे अच्छा नहीं लग रहा था. फिर उन लोगों ने मुझे इंदरजीत वाधवा के घर सोनीपत भेज दिया. मैं वहां से नहीं भाग पाई क्योंकि मुझे वापस आने का रास्ता ही नहीं पता था. वहां मैडम मुझे रोज मारती थी. पांच कमरों के घर का पूरा काम, खाना बनाना और फिर मार खाना. ढाई साल मैं घर के भीतर ही रही. फोन पर भी बात नहीं करने देते थे. मैडम का सब्जीवाला मेरे साथ जबरदस्ती करता था. मैंने शिकायत भी की कई बार, लेकिन मेरी किसी ने नहीं सुनी.’ वह बताती है कि इसी के चलते उसे गर्भपात जैसी यातना से गुजरना पड़ा.

जुलिता की बात को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली के रोहिणी इलाके से छुड़ाई गई गुन्नू सांवरा कहती है, ‘मुझे दुलहत गांव का दुलन दिल्ली लाया था. तब मैं 15 साल की थी. मैं जहां काम करती थी वहां मेरे लिए घर के बाहर लॉबी में एक लोहे का खुला हुआ बाड़ा जैसा बनाया गया था. मैं वहीं सोती थी. मुझे बाहर नहीं निकलने दिया जाता था और मेरी पिटाई होती थी. मुझे बाड़े में बहुत ठंड लगती थी.’

प्लेसमेंट एजेंसियों के एक विजिटिंग कार्ड के सहारे मई, 2013 में जुलिता की मौसी इतुवारी तांते और गुन्नू की मां मोमिनी सांवरा ने दिल्ली के शकूरपुर इलाके के सुभाष पैलेस पुलिस थाने में उनके अपहरण और तस्करी की रिपोर्ट दर्ज करवाई. शिकायत दर्ज करने से लेकर लड़कियों को बरामद करने तक की पूरी प्रक्रिया में इन परिवारों की मदद करने वाली गैर सरकारी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक राकेश सेंगर बताते हैं, ‘शिकायत के तुरंत बाद प्रवीण और उमेश राय को पता चल गया. जुलिता के मामले में ज्यादा दिक्कत हुई.  पुलिस में शिकायत की खबर मिलते ही जुलिता को लाने वाला दलाल स्टीफन उसका मामा बनकर पुलिस को चकमा देना चाह रहा था. लेकिन सोनीपत में काउंसलर के सामने बच्ची ने बता दिया कि स्टीफन उसका दलाल है और वह अपनी मौसी के साथ घर जाना चाहती है. फिर मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज करवाने के बाद जुलिता को इलाज के लिए दिल्ली लाया गया. इधर गुन्नू की मां जिस प्लेसमेंट एजेंट का कार्ड लेकर दिल्ली आई थीं उस पर छापा मारने के दौरान ही पुलिस के हाथ लखीमपुर के दलाल दुलन भी लग गया. उसने पूछताछ के दौरान गुन्नू का पता बताया जिसके बाद पुलिस ने छापा मारकर उसे भी छुड़ा लिया .    

जुलिता और गुन्नू अब सुरक्षित हैं. स्टीफन और दुलन नाम के तस्कर भी सलाखों के पीछे हैं. लेकिन  आज भी दिल्ली में सक्रिय लगभग 2000 प्लेसमेंट एजेंसियां रोज असम, झारखंड और ओडिशा से लाई जा रही न जाने कितनी लड़कियों को खरीदकर उन्हें बंधुआ मजदूरी और शारीरक प्रताड़ना के दुश्चक्र में धकेल रही हैं. ऐसा प्लेसमेंट एजेंसियों की पड़ताल के संबंध में दिसंबर, 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा जारी किए गए विशेष दिशानिर्देशों के बावजूद हो रहा है. पिछले साल एक याचिका के बाद दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट को बताया था कि सरकार प्लेसमेंट एजेंसियों पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाने जा रही है और 2013 में यह विधेयक विधानसभा में पेश किया जाएगा. इस कानून में न सिर्फ महिलाओं व बच्चों की ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए उपाय किए जाएंगे बल्कि कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी होगी. लेकिन ‘दिल्ली प्राइवेट प्लेसमेंट एजेंसी रेगुलेशन बिल 2012’ नाम की यह पहल अब भी विधानसभा की बाट जोह रही है.


http://www.tehelkahindi.com/indinoo/national/2110.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close