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न्यूज क्लिपिंग्स् | ‘हम दर-दर भटकना नहीं चाहते, हमें बंधुआ मज़दूरी से मुक्ति मिले और हमारा पुनर्वास हो’

‘हम दर-दर भटकना नहीं चाहते, हमें बंधुआ मज़दूरी से मुक्ति मिले और हमारा पुनर्वास हो’

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published Published on Jan 15, 2020   modified Modified on Jan 15, 2020
बंधुआ मज़दूरी प्रथा को 44 साल पहले यानी 1976 में भले ही ग़ैर-क़ानूनी घोषित किया गया हो, लेकिन अब भी रह-रहकर इसे जुड़ी ख़बरें आती ही रहती हैं. लेकिन न तो मुख्यधारा का मीडिया इन ख़बरों को जगह देता है और न ही सरकार द्वारा इन घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कोई पुख़्ता कदम उठाए जाते हैं.

केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के जम्मू की राजौरी तहसील में दो ईंट-भट्ठों से बीते साल 26 और 27 दिसंबर 91 बंधुआ मज़दूरों को छुड़ाया गया. ये सब मजदूर 24 परिवारों के हैं. इनमें महिला और पुरुषों के अलावा 41 बच्चे भी शामिल हैं, जिनमें से कुछ को बंधुआ मज़दूर बनाकर रखा गया था. महिलाओं में से कुछ फिलहाल गर्भवती हैं.

ये सारे लोग छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चापा ज़िले के विभिन्न गांवों से हैं. इन्हें छुड़ाने की कार्रवाई दिल्ली के कुछ एनजीओ की पहल पर स्थानीय प्रशासन की अगुवाई में पूरी हुई.

यह बचाव कार्य राजौरी तहसील में फंसे एक 25 वर्षीय मज़दूर अजय कुमार द्वारा संभव हो पाया. अजय को इससे पहले फरवरी 2019 में हिमाचल प्रदेश के एक ईंट-भट्ठे से बंधुआ मज़दूरी से छुड़ाया गया था. लेकिन चूंकि उसका कोई पुनर्वास नहीं हुआ था, इसलिए वो दोबारा दूसरे एजेंट के चंगुल में फंस गए.

अजय कुमार को बंधुआ मज़दूरी से पहले कैसे छुड़ाया गया था, इस बारे में उन्होंने बताया, ‘पांच साल पहले राजू राजा नाम का एक जमादार (एजेंट) हमारे घर आया था. उसने हमें काम दिलाने की बात कहीं तो मैं अपने परिवार (बीवी-बच्चों) के साथ आ गया.’

वे कहते हैं, ‘पहले उसने हमें हरियाणा के राजा तालाब के एक ईंट-भट्ठे में काम पर लगा दिया. वहां हमने दो साल काम किया था लेकिन हमें पैसा नहीं दिया गया. उसके बाद हमें श्रीनगर ले जाया गया था. वहां भी हमने काम किया लेकिन पैसा नहीं मिला. मालिक हमारे साथ मारपीट करता था. मेरे छोटे-छोटे बच्चों से भी काम कराता था. श्रीनगर से दोबारा हमें हरियाणा लाया गया.’

उन्होंने आगे बताया, ‘हमें पलवल के करीब बल्लभगढ़ के ईंट-भट्ठे में ले जाया गया था, बाद में वहीं से हमें मुक्त कराया गया था. जिस समय हमें छुड़ाया गया, तब घर जाने के लिए किराया का भी पैसा नहीं था. थोड़ा बहुत जो पैसा था उससे मेरी बहन और दो बच्चों को छत्तीसगढ़ भिजवा दिया. हम वहीं मज़दूरी के लिए इधर-उधर भटक रहे थे, ताकि कुछ पैसों का जुगाड़ हो और हम घर जा सकें. उसी दौरान एक दूसरा जमादार मिला, जिसने कहा कि दो महीना काम करो तो पैसा दूंगा फिर तुम घर चले जाना.’
 
पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 

संतोषी मरकाम, http://thewirehindi.com/108021/bonded-labourer-of-chhattisgarh-freed-from-jammu-kashmir/


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