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शोध और विकास | टिड्डियों के हमलों के दौरान ड्रोन का इस्तेमाल करने वाले दो भाइयों ने बताया कैसे किया था सफाया

टिड्डियों के हमलों के दौरान ड्रोन का इस्तेमाल करने वाले दो भाइयों ने बताया कैसे किया था सफाया

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published Published on Mar 25, 2021   modified Modified on Mar 29, 2021

-गांव कनेक्शन,

पिछले साल जब कई राजस्थान, गुजरात समेत कई राज्यों में टिड्डियों ने तबाही मचायी थी। किसान से लेकर केंद्र सरकार तक सबके सामने चुनौती थी कि टिड्डियों से कैसे फसल बचाई जाए और कैसे इनकी बढ़ती संख्या को रोका जाए। हेलिकॉप्टर से लेकर ड्रोन तक की मदद भी ली गई थी। गुजरात में राजधानी गांधीनगर से लगभग 100 किमी दूर मेहसाणा जिले के दो भाइयों के मुताबिक उन्होंने टिड्डियों को रोकने के लिए पहली बार ड्रोन का इस्तेमाल किया था। प्रदीप पटेल के मैकेनिकल इंजीनियरिंग से मास्टर की डिग्री है, जबकि हितेन पटेल सिविल इंजिनियर हैं। दोनों भाई बचपन से ही टेक्नोलॉजी के सहारे कुछ अलग और नया करने की सोचते थे, उनके ज्ञान का सही उपयोग उस समय हुआ , जब कोरोना महामारी के साथ ही टिड्डियों का हमला हुआ। सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती थी। ड्रोन की मदद से वहां तक भी पहुंच सकते हैं, जहां पर ट्रैक्टर या फिर स्प्रेयर से कीटनाशकों का छिड़काव करना आसान हो जाता है।

प्रदीप पटेल गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "पहली बार साल 2019 के नवम्बर महीने में दांतीवाड़ा में टिड्डी हमला हुआ। हमें समाचार के माध्यम से खबर मिली की लोग टिड्डियों को लाउडस्पीकर, थाली बजाकर भगा रहे हैं। टिड्डियां कुछ समय के लिए चली तो जाती थी। लेकिन फिर वापस आ जाती, नहीं तो वह पेड़ों की टहनियों पर बैठ जाती। इसको खत्म करने के लिए दवाई का छिड़काव खेत में तो हो जाता, लेकिन ऊंची जगहों पर संभव नहीं हो पाता। परिस्थितियों को देखते हुए हमने अधिकारियों से मुलाकात की।" प्रदीप के मुताबिक उन लोगों ने स्थानीय अधिकारियों को बताया कि टिड्डियों की रोकथाम में ड्रोन कारगर हो सकते हैं। क्योंकि रेत के टीलों, उबड़-खाबड़ जमीन, पहाड़ी क्षेत्रों में गाड़ियां आसानी से नहीं पहुंच पातीं। यहां से टिड्डी बच कर निकल जाते हैं। कई बार इतनी ऊंचाई पर चले जाते हैं कि वॉटर स्प्रेडिंग नहीं हो पाती। ऐसे में ड्रोन से इन पर काबू पाना आसान होगा। पांच लोगों की पांच अलग-अलग टीम बनाकर पांच ड्रोन की मदद ली गई। 

प्रदीप बताते हैं, अधिकारियों की रजामंदी के बाद हमने कई जगह दौरा कर देखा कि टिड्डी पेड़ों पर रुक रही हैं और वह उस स्थान को तब तक नहीं छोड़ रही हैं जब तक उनके ऊपर सूरज की रोशनी नहीं मिल रही है। इसलिए हमने सुबह ड्रोन से दवा छिड़कने की योजना बनायी और उससे काफी हद तक टिड्डियों की मौत हुई।" प्रदीप आगे कहते हैं, "साल 2020 के मार्च महीने में गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में टिड्डियों का फिर हमला हुआ। उस समय सरकार के द्वारा टेंडर निकला। हमें गुजरात में ड्रोन से टिड्डियों को मारने अनभुव था। इसके चलते हमें टेंडर मिला। उसके बाद हमने गुजरात के बनासकांठा और राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों जैसे, बाड़मेर, फलोदी, जैसलमेर के आस-पास के इलाकों में दो महीनें जून और जुलाई तक पांच लोगों की पांच अलग-अलग टीम बनाकर पांच ड्रोन की मदद से एक ड्रोन में 10 लीटर कीटनाशक मात्र 10 मिनट में दो बीघा खेत में छिड़काव करते थे। वहीं पहाड़ों के पेड़ों पर भी टिड्डियों का आशियाना होता था। उन जगहों पर ड्रोन से ही दवा छिड़कना संभव था।"

पूरी विजयगाथा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


अंकित राठोर, https://www.gaonconnection.com/badalta-india/drone-used-to-clear-locust-swarms-in-gujarat-other-state-48899


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