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शोध और विकास | खुद के हुनर से किसानों की मदद
खुद के हुनर से किसानों की मदद

खुद के हुनर से किसानों की मदद

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published Published on Dec 19, 2015   modified Modified on Dec 19, 2015
नहीं है कोई डिग्री, कर रहे किसानों की मुश्किलों को दूर
गिरीश बद्रगोंड बीजापुर जिले के निवासी हैं. उन्हें मशीनों से लगाव है. लेकिन, मशीनों के संबंध में शोध करने की कोई डिग्री नहीं है. लिहाजा, वे छोटे-छोटे मशीनों का आविष्कार कर किसानों की मुश्किलों का समाधान करने का प्रयास कर रहे हैं. आज स्थिति यह है कि वे सैंटेप सिस्टम नामक कंपनी में पार्टनर हैं और कृषि तकनीक के उत्पादन में सहयोग कर रहे हैं.

वर्ष 2006 में गिरीश बद्रगोंड जब काम के सिलसिले में बेंगलुरु गये, तो उनके पास पूंजी के नाम पर जेब में कुछ पैसे, एक लैपटॉप और वायरलेस राऊटर था. कुछ दिन वे अपने दोस्त के साथ रहे. बाद में उन्होंने उसके साथ रूम शेयर करना शुरू कर दिया. पैसे के अभाव में भोजन पर भी संकट दिखने लगा, तो पुराने डीटीएच एंटीना की मदद से राऊटर विकसित कर बेचना शुरू किया. 

इसका बैंडविड्थ करीब 10 किमी तक था. इससे उन्होंने कुछ पैसे एकत्र किये. एसएसएलसी उत्तीर्ण गिरीश पैसों के अभाव में आगे की पढ़ाई नहीं कर सके थे. फिर भी अपने सपने को बिखरने नहीं दिया. जिस समय वे हाई स्कूल में पढ़ते थे, उसी समय इन्वर्टर, बिजली आपूर्ति करने के उपकरण और अन्य इलेक्ट्रॉनिक प्रोजेक्ट तैयार करते थे. बेंगलुरु में उन्हीं प्रोजेक्टों पर फिर से काम करना शुरू कर दिया.

गिरीश बताते हैं कि बचपन से ही उन्हें मशीनों में दिलचस्पी थी. एक दिन चचेरे भाई की घड़ी को पूरी तरह से खोल कर जोड़ दिया. इससे मशीनों से उनका लगाव और गहरा हो गया. बेंगलुरु में वह खेती से जुड़े उपकरणों पर काम करने लगे. इसी दौरान नाबार्ड और निफ से संपर्क साधा. दोनों संस्थानों की मदद से उन्होंने कृषि तकनीक से संबंधित कई छोटे आविष्कार करके किसानों की समस्याओं का हल करना शुरू कर दिया. 

बोरवेल स्कैनर का किया आविष्कार : भूमिगत जल के लिए पहले किसानों को कई जगह खुदाई करनी पड़ती थी. पानी नहीं निकलने पर किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता. गिरीश ने इस समस्या को ध्यान में रख कर एक बोरवेल स्कैनर तैयार किया. इसकी मदद से भू-जल स्तर का आसानी से पता लगाया जा सकता है. इसमें एक कैमरे का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें एक फ्लैश लगा है और वह 180 डिग्री में आसानी से घूम सकता है. 

इसके साथ ही यह स्कैनर जमीन के अंदर पानी के स्तर तक पहुंच कर फोटो भी खींच सकता है. स्कैनर पानी के आने का रास्ता भी बताता है. गिरीश बताते हैं कि बोरवेल स्कैनर से पानी की स्थिरता का पता चलता है. यदि पानी स्थिर हो, तो वहां बोरिंग नहीं कराना चाहिए. जिस स्तर पर जल का अंतरप्रवाह हो, वहीं बोरिंग कराना बेहतर है.

एडवांस्ड मोड माइक्रो इरीगेशन सिस्टम : कृषि कार्य में मदद के लिए गिरीश सिर्फ बोरवेल स्कैनर के निर्माण तक ही सीमित नहीं रहे. उन्होंने एडवांस्ड मोड माइक्रो इरीगेशन सिस्टम भी तैयार किया. इसके जरिये दूर रखे पंप और उसके वॉल्व को नियंत्रित किया जा सकता है. 

इस मशीन से पानी की धारा नियंत्रित कर पौधों की जरूरत और मजबूती के हिसाब से सिंचाई कर सकते हैं. इस तरह से पानी की बचत भी होती है और सिंचाई का अधिकाधिक लाभ भी मिलता है. इस मशीन में सोलर सेंसर जमीन में स्थापित कर दिये जाते हैं. 
ये सेंसर नियंत्रक यूनिट को सिग्नल भेजते हैं और ये मोटर को जरूरत के हिसाब से स्वत: ऑन-ऑफ करते हैं. यह मशीन 10 एकड़ तक की जमीन की सिंचाई में मददगार है. गिरीश के अनुसार, पंप से आमतौर पर फसल की सिंचाई तेज धार के साथ की जाती है. इससे पंप की पाइप के सामने की फसल नष्ट हो जाती है. इसी को ध्यान में रख कर फसल को बिना कोई नुकसान पहुंचाये अधिक से अधिक जल के उपयोग के लिए इस यंत्र को विकसित किया.

बर्ड रिपेलर : अक्सर किसानों को फसल पकने के बाद पक्षियों से दाने चुग जाने का भय रहता है. ऐसे में किसान पारंपरिक तरीके से खेतों के बीच आदमी का पुतला बना कर रखते हैं, ताकि चिड़िया खेतों से दूर रहे. गिरीश के बर्ड रिपेलर यंत्र में आठ स्पीकर लगे हैं. इससे कई प्रकार की आवाजें निकलती हैं. इन आवाजों को सुन कर पक्षी फसल के पास नहीं आते. इसकी यूनिट इलेक्ट्रिक प्वाइंट के पास रहती है और यह मशीन एक बैटरी पर तीन दिन तक काम करती है.

http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/667032.html


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