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शोध और विकास | गूगल साइंस अवॉर्ड के दावेदारों में पानीपत का अर्श भी शामिल

गूगल साइंस अवॉर्ड के दावेदारों में पानीपत का अर्श भी शामिल

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published Published on Oct 20, 2014   modified Modified on Oct 20, 2014
हरियाणा के एक लड़के ने ऐसा यंत्र बनाया है, जो लकवाग्रस्त न बोल पाने वाले लोगोें की मदद करेगा. एएलएस या लोउ गेहरिग बीमारी से ग्रस्त मरीजों को उनकी सांस के जरिए बोलने में मदद करता है. उसका यह प्रोजेक्ट अब 'गूगल साइंस फेयर अवॉर्ड 2014' के लिए चुने गए 15 प्रोजेक्ट में शामिल हो गया है.

पानीपत स्थित डीएवी पब्लिक स्कूल के 12वीं के छात्र अर्श शाह दिलबगी ने 'टॉक' नामक एक नया संवर्धी एवं वैकल्पिक संचार यंत्र का आविष्कार किया है. यह यंत्र एम्योट्रोफिक लेटरल स्केलेरोसिस (एएलएस) बीमारी से निपटने में मदद करता है. एएलएस एक न्यूरो-अपक्षयी (न्यूरो-डिसॉर्डर) रोग है, जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करता है. अर्श ने अपना प्रोजेक्ट फरवरी में ऑनलाइन जमा किया.

गूगल साइंस फेयर में हजारों प्रोजेक्टर जमा कराए गए थे. इसमें प्रतिभाग करने के लिए कोई फीस नहीं ली गई थी. निर्णायक मंडल ने आगे विचार करने के लिए 90 प्रोजेक्ट को चुना था और उनमें से पांच भारत से थे.

अर्श ने बताया, ‘निर्णायकों ने 90 प्रतिभागियों का ऑनलाइन साक्षात्कार लिया. उन्होंने भारत सहित नौ देशों से 15 प्रोजेक्ट चुने.' अर्श अब एशिया क्षेत्र से इकलौते प्रतिभागी हैं. उन्होंने कहा कि उनका 'टॉक' एएलएस मरीजों को अपनी श्वास के जरिए बात करने में मदद करेगा.

बाजार में उलब्ध ऐसे यंत्रों की कीमत हजारों डॉलर है, लेकिन टॉक 100 डॉलर में उपलब्ध है. इसके अलावा यह यंत्र वाक दर को 300 प्रतिशत तक बढ़ाता है.

अर्श ने कहा, ‘पहले एएलएस मरीजों के लिए एक बार इस्तेमाल होने वाला स्विच यंत्र ही एकमात्र सहारा था, लेकिन इसकी कीमत 10 लाख रुपये से शुरू है. मध्यम वर्गीय परिवार इसे नहीं खरीद सकते.' उन्होंने कहा कि दुनियाभर में एएलएस के एक करोड़ से ज्यादा मरीज हैं.

अर्श 19 सितंबर को कैलिफोर्निया के लिए रवाना होंगे. वहां 21-22 सितंबर को परफॉर्मेंस राउंड होगा, जिसके नतीजों की घोषणा 23 सितंबर को होगी.

15 प्रतिभागियों में से छह को पुरस्कार दिया जाएगा.


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