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शोध और विकास | बच्चे पढ़ने लगे बिहार के राघव की कहानी

बच्चे पढ़ने लगे बिहार के राघव की कहानी

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published Published on Jun 1, 2010   modified Modified on Jun 4, 2014
पटना [भारतीय वसंत कुमार]। बिहार में वैशाली जिले के मंसूरपुर में रहने वाले राघव की कहानी इन दिनों देश के बच्चे पढ़ने लगे हैं। राघव ने बिना किसी तकनीकी शिक्षा के अपने गांव के लिए 'कम्युनिटी रेडियो' का माडल विकसित किया। इस राह में उसे कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा। पुलिस के चक्कर भी लगाने पड़े। लेकिन उसके प्रयास को सफलता मिली और इस समय वह अजमेर [राजस्थान] के बेयरफुट कालेज में कम्युनिटी रेडियो स्टेशन का संचालन कर रहा है।

मंसूरपुर गांव के उसके संघर्षमय जीवन को राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद [एनसीईआरटी] ने अपनी पुस्तक 'भारत में सामाजिक परिवर्तन और विकास' में शामिल किया है। यह पुस्तक 12वीं कक्षा के छात्रों के पाठ्यक्रम में भी शामिल है।

राघव की कहानी थोड़ी पुरानी है। वह पहले टेंट हाउस में काम करता था। गरीबी के कारण उसकी माध्यमिक की भी पढ़ाई पूरी नहीं हो सकी। बाद में आजीविका के लिए उसने रेडियो मरम्मत करने वाली एक दुकान में काम सीखना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसने निपुणता हासिल कर ली और रेडियो मकैनिक के रूप में वैशाली के मंसूरपुर गांव में झोपड़ीनुमा दुकान बना ली। खोजी मन के कारण एक दिन उसे ख्याल आया कि एक रेडियो के माध्यम से क्या पूरे गांव को उनकी पसंद का गीत नहीं सुनाया जा सकता? इसी खोज में वह जुट गया और काफी परिश्रम के बाद उसने इसमें सफलता पाई। उसने अपने गांव के लिए ग्रामीण एफएम रेडियो स्टेशन का माडल [कम्युनिटी रेडियो] बना दिया।

लेकिन दिक्कत यह हुई कि राघव के रेडियो स्टेशन की फ्रीक्वेंसी से वैशाली जिला पुलिस की रेडियो की फ्रीक्वेंसी टकराने लगी और पुलिस के वायरलेस पर भी 'रेडियो मंसूरपुर' [राघव ने यही नाम दिया था] का गाना बजने लगा। एक दिन पुलिस राघव के गांव भी आ पहुंची और रेडियो मंसूरपुर खामोश हो गया। समाचार पत्रों में [दैनिक जागरण में सर्वप्रथम] जब रेडियो प्रसारण की इस पहल की रिपोर्ट छपी तो दिल्ली की संस्था 'डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन' के निदेशक एस.मंजर ने राघव को सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों से मिलवाया और दिल्ली में राघव ने अपना प्रेजेंटेशन दिया।

राघव को वहां ट्रेनिंग दिलायी गई। आज भी उसका [राघव का] माडल देश का सबसे सस्ता और सुलभ रेडियो प्रसारण का माडल है। एनसीईआरटी की पुस्तक 'भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास' की पृष्ठ संख्या 132 और 133 पर बिहार के युवक राघव के जीवन संघर्ष की कहानी छपी है। राघव की इच्छा है कि अगर बिहार सरकार मदद करे तो वह यहां ग्रामीण रेडियो एफएम के कई चैनल का सहजता से संचालन कर सकता है। यह बात दीगर है कि बिहार की इस प्रतिभा की चमक यहां नहीं दिखकर राजस्थान में दिख रही है। राघव ने कहा कि उसने राज्य सरकार के अधिकारियों से मुलाकात की, लेकिन किसी ने उसके प्रति रुचि नहीं दिखाई।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6453861.html
 

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