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पोषण और अंडे का संघर्ष- ज्यां द्रेज

बच्चों को लेकर भारत में एक बड़ा विरोधाभास दिखायी देता है. एक तरफ, घर में बच्चों को बहुत प्रेम किया जाता है. दूसरी तरफ, लोक-नीति में बच्चों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है. आज भी गरीब बच्चों को न सही शिक्षा मिल रही है, न स्वास्थ्य सुविधा और न ही पोषण. इसके कारण बांग्लादेश और नेपाल की तुलना में भारत के बाल विकास से संबंधित आंकड़े कमजोर हैं. इससे...

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.....ताकि चुनाव-चर्चा के बीच आप भुखमरी से हो रही मौतों को ना भूल जायें !

झारखंड में बीते 30 दिनों में कम से कम दो जन भुखमरी के कारण मौत की चपेट में आये हैं.  भोजन का अधिकार अभियान ने यह जानकारी एक तथ्यान्वेषी दल की रिपोर्ट के आधार पर दी है.   रिपोर्ट में राज्य के दुमका जिले में जामा प्रखंड के महुआटांड गांव के कलेश्वर सोरेन और देवघर जिले में  मार्गोमंडा प्रखंड के मोती यादव की मौत के पीछे भुखमरी को एक कारण के...

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पत्रकारिता और नैतिकता- मृणाल पांडे

कई दूसरे शब्दों की तरह पिछले सालों में नैतिकता शब्द का भी घोर अवमूल्यन हुआ है. आज किसी भी काम के साथ इस शब्द के जुड़ते ही उससे एक पाखंडी बड़बोले उपदेशक के नक्की प्रवचन की ध्वनि कानों में रेत की तरह किरकिराने लगती है. शायद इसी वजह से जो नेकनीयत पत्रकार पेशे को समर्पित हैं, वे भी सच्चे तथा फेक, संदर्भयुक्त या संदर्भ से काटे गये समाचारों के संकलन...

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आदिवासी अधिकार के नाम पर- शशिशेखर

जिस समय कश्मीर का अलगाववाद पूरे देश में चिंता का विषय बना हुआ है, ठीक उसी समय झारखंड के कुरूंगा गांव में एक दूसरा दृश्य दिख रहा है। वहां एक शिलालेख पर लिखा है-   ‘भारत में गैर आदिवासी दिकु, विदेशी केंद्र सरकार को शासन चलाने और रहने का लीज एग्रीमेंट 1969 ई. में ही समाप्त हो गया है।' ‘वोटर कार्ड (मतदान पहचान पत्र) और आधार कार्ड (आम आदमी का अधिकार कार्ड) आदिवासी...

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क्या हम इस हादसे से सबक सीखेंगे-- नीरज कुमार झा

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। सुरक्षा प्रथम, काम हरदम। ...ये ऐसे ‘स्लोगन' हैं, जो हरेक निर्माण स्थल के आसपास हम बडे़-बड़े अक्षरों में लिखा देखते हैं। मगर लगता नहीं कि इन वाक्यों का शब्दश: पालन भी किया जाता है। अगर किया जाता, तो तमाम हादसों से हम अपने आप बच सकते थे। वाराणसी में निर्माणाधीन पुल के गर्डर (भारी बीम) गिरने की घटना भी ऐसी ही है। अगर गर्डर रखने में...

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