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सिकुड़ रही कश्मीर घाटी की झीलें, इंसानी हस्तक्षेप के चलते पानी की गुणवत्ता में भी आ रही गिरावट

डाउन टू अर्थ, 21 जून कश्मीर घाटी में मौजूद झीलें पिछले कुछ वर्षों में तेजी से सिकुड़ रहीं हैं। साथ ही इन झीलों में मौजूद पानी की गुणवत्ता भी तेजी से गिर रही है। यह जानकारी नासा अर्थ ऑब्जर्वेटरी द्वारा साझा की गई रिपोर्ट में सामने आई है। इन झीलों में कश्मीर को दो बेहद प्रसिद्ध झीलें डल और वुलर शामिल हैं। यह झीलें हिमालय के ऊंचे पहाड़ों से घिरी हैं...

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ठाणे में बढ़ते शहरीकरण के साथ बढ़ा बाढ़ का खतरा, 2050 तक 56 फीसदी बढ़ जाएगा शहरी जंगल

डाउन टू अर्थ, 20 जून   ठाणे में बढ़ता शहरीकरण अपने साथ नई समस्याएं भी साथ ला रहा है। इस बारे में मुंबई के वीरमाता जीजाबाई प्रौद्योगिकी संस्थान से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि ठाणे में बढ़ते शहरी जंगल और मौसम की चरम घटनाओं के चलते बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। अध्ययन के नतीजे जर्नल ऑफ इंटीग्रेटेड डिजास्टर रिस्क मैनेजमेंट में प्रकाशित हुए हैं।  शोधकर्ताओं के...

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वन संरक्षण क़ानून में बदलाव: सरकार को मिले 1,200 से अधिक सुझाव

कार्बनकॉपी, 16 जून इस साल मार्च में केंद्र सरकार वन संरक्षण कानून (फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट) 1980 को संशोधित करने के लिए एक बिल संसद में लाई। मोटे तौर पर देखें तो इस क़ानून के ज़रिए सरकार कुछ तरह की ज़मीन को वर्तमान क़ानून में परिभाषित संरक्षित भूमि के दायरे से बाहर करना चाहती है। इसके साथ वहां पर किए जा सकने वाले कार्यों की सूची को बढ़ाना चाहती है। जैसे वन...

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झरिया: कभी हरे भरे थे पहाड़, आज धधकती आग और सुनसान खदानों के साए में रह रहे हैं लोग

डाउन तू अर्थ, 9 जून एक बार फिर झारखंड का झरिया चर्चा में है। यहां खदान में चाल धंसने के कारण दो लोगों की मौत हो गई। आखिर झरिया क्यों लोगों की कब्रगाह बनता जा रहा है। इस रिपोर्ट से समझें-  भारत के पूर्वी राज्य झारखंड का झरिया क्षेत्र कभी हरे-भरे पहाड़ों से घिरा था। कभी इस क्षेत्र में जिंदगी खुशहाल थी। लेकिन आज लोग यहां सुनसान खदानों और धधकती आगे के...

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डूबते सुंदरवन में मौसुनी द्वीपवासियों के जीवन का संघर्ष

कारवां, 30 मई द्वीप की मेरी कुछ पहली तस्वीरों में एक महिला अपनी बेटी को बाढ़ वाली सड़कों से स्कूल ले जाती हुई दिखती है, जो तब मुझे पूरी तरह से अवास्तविक लगती थी. आपदा के प्रति द्वीपवासियों की प्रतिक्रिया, मेरे जैसे एक शहरवासी की कल्पना से बिल्कुल विपरीत होने के कारण, मैं चौंक गया और मुझे सुंदरबन में ग्रामीण लोगों के दैनिक जीवन में अपनाए जाने वाले तरीकों की सराहना...

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