पिछले सप्ताह न्यूयार्क टाइम्स में एक लेख छपा था, जिसे पढ़ कर कई भारतीयों का खून खौलने लगा। मेरा भी। इसलिए कि इतना बकवास लेख में मैंने पहली बार पढ़ा होगा। लेखक भारतीय मूल का था शायद, लेकिन इतना भी नहीं जानता था कि हर हर महादेव का मतलब यह नहीं है कि हम सब शिव हैं। यही एक गलती होती इस लेख में तो उस पर लिखने की जरूरत...
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आधार के प्रयोग को रोकना उचित नहीं-- हरिवंश
यह बौद्धिक विमर्श और संवाद अपनी जगह है, पर बिचौलियों और भ्रष्टाचार को खत्म करना आज समाज की निगाह में व्यवस्था का सबसे प्रासंगिक और जरूरी मसला नहीं है? हाल ही में एक डच दार्शनिक विचारक व इतिहासकार रटजर बर्जमैन की महत्वपूर्ण किताब आयी है, ‘यूटोपिया फॉर रिअलिस्ट्स' (ब्लूम्सबेरी). यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेस्टसेलर मानी गयी है. इस पुस्तक का मर्म है कि हम एक अप्रत्याशित उथल-पुथल के दौर में...
More »भीड़तंत्र से शोरतंत्र तक-- शशि शेखर
पिछले एक हफ्ते से आप सिर्फ बिलखते लोगों की तस्वीरें देख रहे होंगे। गोरखपुर में अकाल काल के गाल में समा जाने वाले नौनिहालों के रोते-चीखते परिजन, नोएडा में जेपी, आम्रपाली सहित तमाम बिल्डर्स के शिकार मध्यवर्गीय लोग, कर्ज-माफी की घोषणा के बावजूद अपनी जान देने पर मजबूर किसान, केरल में सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों के परिजन...। क्या गुजरे 70 सालों में हमने यही कमाया है? यह गम और गुबार...
More »बुढ़ापे में ज्यादा देखभाल की जरूरत-- आशुतोष चतुर्वेदी
मुमकिन है कि आपने यह ह्दयविदारक खबर पढ़ी हो. यह खबर किसी को भी झकझोर कर रख सकती है और समाज के लिए एक आईना है. यह खबर एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर भी इशारा करती है कि देश में वृद्धजनों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है और पुराना सामाजिक तानाबाना टूट चुका है. संयुक्त परिवारों का दौर गया और एकल परिवारों में मां-बाप के लिए स्थान नहीं...
More »बेरहम जमाने में घरेलू हिंसा का दाग - मृणाल पांडे
बीते हफ्ते जब मानसून सत्र में संसद गोकशी, कथित गोरक्षकों द्वारा मचाए गए तांडव और सर्वोच्च न्यायालय भारतीय नागरिकों के निजता अधिकार की परिधि पर बहस में मुब्तिला थे, तभी एक सफल और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर असमिया मॉडल द्वारा पति के हाथों कथित रूप से प्रताड़ित हो आत्महत्या करने की लोमहर्षक रपट भी सुर्खियों में थी। बॉलीवुड की एक युवा अभिनेत्री जिया खान की कथित आत्महत्या भी अब तक...
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