सरकारी दफ्तरों में बैठे हुए हाकिमों को ‘जमीनी हकीकत' जानने में जो समस्या पेश आती है, वह कोई नई नहीं है। इतिहास बताता है कि अशोक से लेकर अकबर तक तमाम सम्राट सच जानने के लिए वेश बदलकर अपने राज्य में घूमा करते थे। आज भी हमारी सरकारों के लिए यह जानना एक बड़ी चुनौती है कि उनकी जन-हितकारी योजनाएं कैसी चल रही हैं? कनिष्ठ अधिकारी अक्सर इन योजनाओं...
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तेल का खेल अभी और चलेगा-- सौरभ चंद्र
तेल विश्व की राजनीति को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली वस्तु है। इसकी वजहें भी हैं। तेल अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है, इसका अपना सैन्य महत्व है और कुछ इलाकों में ही इसके भंडार सिमटे हैं। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि आने वाले दिनों में तेल की कीमतें कितनी होंगी? क्योंकि तेल की दुनिया में अनिश्चितता ही निश्चित है। भू-राजनीति और भू-अर्थव्यवस्था में तेल का अव्वल स्थान है। इसका...
More »ताकि वे अपनी पसंद से खरीदें अनाज- कार्तिक मुरलीधरन
सस्ते दामों पर राशन का सार्वजनिक वितरण (पीडीएस) भारत की प्रमुख खाद्य सुरक्षा योजना है, लेकिन यह कई जानी-पहचानी समस्याओं से घिरी है। सरकारी एजेंसियों का ही आकलन है कि पीडीएस पर सरकारी खर्च का एक बड़ा हिस्सा उचित लाभार्थियों तक नहीं पहुंचता। इसके चलते, एक विकल्प सामने आया कि क्यों न इस सब्सिडी युक्त अनाज की जगह लाभार्थियों को (खाद्य पदार्थों पर खर्च करने के लिए) सीधा पैसे भेजे...
More »बदल रही है परहिया समुदाय की जिंदगी
लातेहार जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर औरंगा नदी के किनारे स्थित है उचुवाबाल. यह मनिका प्रखंड की रॉकी कलां पंचायत के लंका गांव का टोला है. इस टोले में परहिया समुदाय के 80 परिवार हैं. उनकी जीविका का एकमात्र जरिया हैं जंगल की उपज. इन वनोत्पादों को एकत्र करना और उन्हें बाजार में बेचना यही उनके आर्थिक जीवन का आधार है. इसके अलावा उच्च जाति के लोगाों के...
More »भूख से मौत और उसके बाद-- ज्यां द्रेज
सिमडेगा जिले की संतोषी कुमारी की भूख से मौत के बाद आज बारह महीने बीत चुके हैं. इन बारह महीनों में झारखंड में भूख से मौतों की कम-से-कम पंद्रह और खबरें आयीं हैं. शायद किसी राजनीतिक दल या अतिसक्रिय पत्रकार की कृपा से इन पंद्रह घटनाओं में से एक या दो अतिरंजित हुई होंगी, लेकिन इनमें अधिकतर ऐसी घटनाएं हैं, जिनकी जांच ध्यान से की गयी है और उन्हें सही...
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