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जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में नए वायरस आ रहे हैं सामने, संक्रामक रोगों का बढ़ा खतरा

डाउन टू अर्थ, 02 मई वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु में बदलाव, विशेष रूप से तापमान और नमी में बदलाव, कुछ इलाकों में अत्यधिक बारिश और दूसरी जगहों में सूखे जैसी घटनाओं के कारण संक्रामक रोगों के फैलने में वृद्धि होगी। भारत के कई हिस्सों में एच2एन3, एडिनोवायरस और स्वाइन फ्लू सहित सांस संबंधी संक्रमणों में हालिया वृद्धि से चिंता बढ़ गई है। हालांकि वैज्ञानिकों ने कहा कि इस सब के...

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नमी बढ़ा रही है शहरी जलवायु में गर्मी का भीषण प्रकोप : अध्ययन

डाउन टू अर्थ , 28 अप्रैल दुनिया भर में जैसे-जैसे तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच रहा है, शहरी इलाकों में गर्मी के तनाव में वृद्धि हो रही है। शहर आमतौर पर अपने निकटवर्ती ग्रामीण इलाकों की तुलना में अधिक गर्म और शुष्क होते हैं। लेकिन ग्लोबल साउथ में, एक अतिरिक्त जटिल कारण शहरी नमी की वजह से होने वाली गर्मी है। एक नए अध्ययन ने तापमान के आंकड़े और शहरी जलवायु मॉडल...

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अप्रैल में इतिहास की सबसे भयानक हीटवेव को देखते हुए दक्षिण एशिया को तुरंत क्लाइमेट एक्शन की मांग उठानी चाहिए

द थर्ड पोल, 25 अप्रैल जब हीटवेव यानी प्रचंड लू हमारे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के रास्ते में बाधा बन जाए तो इसका मतलब है कि वक्त आ गया है कि हम सभी क्लाइमेट एक्शन यानी जलवायु कार्रवाई की मांग करें। यह बात मैं एक जलवायु वैज्ञानिक और दो छोटे बच्चों की मां के रूप में लिख रही हूं। मैं उस टीम की एक मेंबर रही हूं जिसने मार्च 2023 में इंटरगवर्नमेंटल पैनल...

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रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा क्लोरोफ्लोरोकार्बन, ओजोन को कर सकता है कमजोर

डाउन टू अर्थ, 06 अप्रैल  धरती को सूर्य से बचाने वाली ओजोन परत को कमजोर करने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन पर दुनिया भर में प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन वैज्ञानिकों ने खुलासा किया कि कुछ मानव निर्मित क्लोरोफ्लोरोकार्बन रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई है। जलवायु में बदलाव करने वाला यह उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है। अध्ययन के अनुसार, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत प्रतिबंधित होने के बावजूद, पांच क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) 2010 से 2020 तक...

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सालाना 50 फीसदी की दर से नष्ट हो रहे हैं पहाड़ी जंगल, खतरे में जैव विविधता: अध्ययन

डाउन टू अर्थ, 28 मार्च  दुनिया के 85 फीसदी से अधिक पक्षी, स्तनपायी और उभयचर प्रजातियां पहाड़ी जंगलों में रहते हैं, लेकिन ये जंगल तेजी से गायब हो रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में, 2000 के बाद से 7.81 करोड़ हेक्टेयर यानी 7.1 फीसदी पहाड़ी जंगल गायब हो गए है। अधिकांश नुकसान उष्णकटिबंधीय जैव विविधता हॉटस्पॉट में हुआ है, जिससे संकटग्रस्त प्रजातियों पर दबाव बढ़ रहा है। 21वीं सदी की...

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