भारत सरकार एक ओर जब देश के गांवों में सेना और वायुसेना तैनात कर लोगों के संघर्ष को दबाने पर विचार कर रही है तो दूसरी ओर शहरों में कुछ विचित्र घटनाएं देखने में आ रही हैं। बीते 2 जून को मैंने मुंबई में कमेटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (सीपीडीआर) द्वारा आयोजित एक जनसभा को संबोधित किया। अगले दिन तमाम अखबारों और टीवी चैनलों पर इसकी सही कवरेज हुई। इसी दिन...
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विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें
जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईपीडब्ल्यू के सलाहकार संपादक गौतम नवलखा तथा स्वीडिश पत्रकार जॉन मिर्डल कुछ समय पहले भारत में माओवाद के प्रभाव वाले इलाकों में गए थे, जिसके दौरान उन्होंने भाकपा माओवादी के महासचिव गणपति से भी मुलाकात की थी. इस यात्रा से लौटने के बाद गौतम ने यह लंबा आलेख लिखा है, जिसमें वे न सिर्फ ऑपरेशन ग्रीन हंट के निहितार्थों की गहराई से पड़ताल करते हैं, बल्कि माओवादी...
More »बटाईदारी कानून बर्दाश्त नहीं
पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास के दावों को खारिज करते हुए करीब आठ घंटे तक चली किसान की महापंचायत में उपस्थित विभिन्न दलों के दिग्गज नेताओं ने रविवार को प्रदेश में किसी भी कीमत पर बटाईदारी कानून बनने नहीं देने का संकल्प लिया। इन नेताओं ने कहा कि बटाईदारी कानून लागू हुआ तो सूबे में वर्षो से जमीन मालिक और बटाईदारों के बीच चला आ रहा सामाजिक सौहार्द का वातावरण समाप्त हो जायेगा और...
More »न्याय:कितना दूर-कितना पास
खास बात • साल २००९ के अप्रैल महीने तक सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मुकदमों की संख्या ५०१४८ थी। केसों के निपटारे की गति बढ़ी है मगर शिकायतों के आने की गति और जजों की संख्या केसों के आने की गति की तुलना में अपर्याप्त साबित हो रही है।* • दो साल पहले यानी साल २००७ के जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट में लंबित केसों की संख्या ३९७८० थी। सुप्रीम कोर्ट लंबित केसों के निपटारे में तेजी लाने असहाय महसूस...
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