यह उन लोगों की कहानियां हैं, जो आजादी, इंसाफ और शांति के साथ जीना चाहते हैं. अपने गांव में खेतों में उगती हुई फसल, अपने जानवरों, अपनी छोटी-सी दुकान और अपने छोटे-से परिवार के साथ एक खुशहाल जिंदगी चाहते हैं. लेकिन यह चाहना एक अपराध है. अमेरिका, दिल्ली और रांची में बैठे हुक्मरानों ने इसे संविधान, जनतंत्र और विकास के खिलाफ एक अपराध घोषित कर रखा है. उनकी फौजें गांवों...
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आज नकद कल रियायत- शिरीष खरे की रिपोर्ट( तहलका हिन्दी)
राजस्थान में अलवर जिले के कोटकासिम ब्लॉक का यह ओजली गांव है. यहां ग्राम सेवा सहकारी समिति की उचित मूल्य की दुकान पर तीन महीने पहले तक केरोसिन के लिए उपभोक्ताओं की भीड़ जमा हो जाती थी. पर अब उसी केरोसिन के नाम पर चारों ओर सन्नाटा पसर जाता है. दुकान के कर्मचारी महावीर यादव के मुताबिक इस सन्नाटे की वजह यह है कि जिला कलेक्टर के निर्देश पर केरोसिन...
More »धीमी पड़ गई है आर्थिक सुधारों की रफ्तार
वाशिंगटन। वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने स्वीकार किया कि आर्थिक सुधारों की रफ्तार धीमी पड़ी है और 2014 के आम चुनाव से पहले प्रमुख सुधारों को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। बसु ने दावा किया कि अगले आम चुनाव के बाद वर्ष 2015 से भारत विश्व की सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। उन्होंने कहा कि यदि आम चुनाव के बाद पूर्ण...
More »बढ़ती बेरोजगारी के बीच-गिरीश मिश्र
नौजवानों के लिए इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकती है कि जब वह शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होकर उत्पादन के क्षेत्र में उतरने को तत्पर होता है, तब उससे कह दिया जाता है कि उसकी आवश्यकता नहीं है। ऐसे में उसका खुद पर गुस्सा लाजिमी है कि उसने अपने परिवार के संसाधनों का इस्तेमाल खुद को राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान करने लायक बनाने के लिए व्यर्थ किया। मां-बाप...
More »सड़कों पर पलते कल के सपने : हर्ष मंदर
बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में भारत पर राज कर रही औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार ने सबसे पहले यह स्वीकारा था कि अनाथ और निराश्रित बच्चों व किशोरों की देखभाल करना सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है। लेकिन भारत को लोकतांत्रिक स्वाधीनता मिलने के छह दशक बीतने के बावजूद इस तरह के बच्चों और किशोरों के हित में अधिक से अधिक यही किया जा सका है कि उन्हें कारागृह जैसी राज्यशासी संस्थाओं में भेज...
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