एक जमाना था, जब कक्षा से चुनावी भाषणों तक में ‘अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है?' जैसे जुमले सुनने को मिलते थे. भला हो राग दरबारी के लेखक श्रीलाल शुक्ल का, जिन्होंने इस उपन्यास के मार्फत आजादी के बाद हमारे बदहाल गांवों की असलियत दिखाकर इस पाखंड पर ऐसी चोट की कि पढ़ने-लिखनेवाले लोग इस भावुक और निरर्थक मुहावरे से बचने लगे. फिर ‘90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण...
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Jharkhand : किसानों का हाल बेहाल, अभी ही सूख गयी नदी....
खरौंधी : झारखंड के गढ़वा जिले में किसानों का हाल बेहाल है. खासकर खरौंधी प्रखंड में. खेतों की प्यास बुझाने वाली एकमात्र नदी अभी से सूख गयी है. किसानों के साथ-साथ लोगों को यह चिंता सताने लगी है कि जब सर्दी में ही नदी का पानी खत्म हो गया, तो गर्मी में क्या होगा? खेतों की प्यास कैसे बुझेगी? खेतीबारी कैसे होगी? ढढरा नदी के सूख जाने की वजह से प्रखंड...
More »बजट 2018: भारत में कृषि सुधार की आखिरी उम्मीद है, सरकार को उठाने होंगे ये कदम
नई दिल्ली. आम बजट 2018 मौजूदा सरकार का आखिरी फुल बजट होगा क्योंकि बहुत हद तक मुमकिन है कि 2019 में चुनाव की वजह से वोट ऑन एकाउंट पेश हो। ऐसे में कृषि सुधार से जुड़े कुछ ऐसे जरूरी मुद्दे हैं जिनपर बजट में ठोस एलान होना चाहिए। यह बहुत अजीब है कि एक तो ओर तो देश में 30 फीसदी कंज्यूमर भूखा है, 50 फीसदी बच्चे कुपोषण...
More »गंभीर होते खेती व रोजगार के सवाल - प्रदीप सिंह
लोकसभा चुनाव अभी सवा साल दूर हैं। इसे यों भी कह सकते हैं कि लोकसभा चुनाव में बस 16 महीने रह गए हैं। सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2019 के चुनाव में एक बड़ा फर्क होगा। तब कांग्रेस सत्ता में थी और उससे सवाल पूछे जा रहे थे। आज भाजपा सत्ता में है और उससे जवाब मांगा...
More »बहुत कठिन है खेती की राह..जानिए कैसे
भारत में किसानों की दशा दशकों तक नजरअंदाज किये जाने के कारण अब बुरी तरह बिगड़ चुकी है. सरकार ने खेतिहरों की आय दोगुना करने तथा उपज का उचित दाम दिलाने का वादा किया है, जिसे पूरा करने की दिशा में इस साल कुछ ठोस कोशिश की उम्मीद है. खेती को फायदेमंद पेशा बनाने, फसलों के सही मूल्य दिलाने, कर्ज से राहत आदि की प्राथमिकताएं इस साल हैं. इस संबंध...
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