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जहां आदिवासी छात्राएं ही नहीं, वहां बांट दिए मातृ प्रोत्साहन के 3.16 करोड़

दशरथ सिंह परिहार, गुना। आदिवासी छात्राओं को सरकारी स्कूल में दाखिले के लिए प्रेरित करने पर उनकी माताओं को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि में भी शिक्षा विभाग के घोटालेबाज अफसरों ने 3.16 करोड़ का घपला कर दिया। पूर्व जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी), पांच ब्लॉक स्रोत समन्वयक (बीआरसी) और हेडमास्टरों ने जिले के पांचों ब्लॉक में 150 स्कूलों की दस हजार 500 से अधिक छात्राओं को कागजों में आदिवासी बताकर पैसा...

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साइकिल वाले वैज्ञानिक पर्यावरण बचाने वाले लोगों के लिए बने प्रेरणा

जबलपुर। वेतन इतना है कि हर साल नई कार या बाइक खरीद सकते हैं लेकिन आराम और रुतबे से ज्यादा चिंता इन्‍हें बिगड़ते पर्यावरण की है। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के चीफ एग्रोनॉमिस्ट डा. वी.के. शुक्ला साइकिल से ही विश्वविद्यालय जाते हैं। दिन भर के काम भी साइकिल से ही निपटाते हैं। इन्हें साइकिल वाले साइंटिस्ट के नाम से भी पहचाना जाने लगा है। 61 साल के फिट डा. शुक्ला को...

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मानवाधिकारों पर चंद खरी बातें - मृणाल पांडे

वर्ष 1950 में संयुक्त राष्ट्र संगठन ने विश्व स्तर पर मानवाधिकारों की व्याख्या करते हुए विश्वयुद्धों से घायल दुनिया को 10 दिसंबर के दिन सालाना मानवाधिकार दिवस मनाने का संदेश दिया था। उस व्याख्या का मसौदा बाइबिल के बाद दुनिया का सबसे अधिक अनूदित दस्तावेज बताया जाता है। लेकिन मानवाधिकार दिवसों की छह दशक से लंबी श्रंखला और उस पर तमाम गहन चिंतन-मनन के बाद भी दुनिया में मानवाधिकारों की,...

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ग्लोबल से अहम हमारा लोकल वार्मिंग- अतुल चतुर्वेदी

जिन दिनों अघाए हुए देश ग्लोबल वार्मिंग पर पैंतरे बदल रहे हैं, उन्हीं दिनों हम लोेकल वार्मिंग से जूझ रहे हैं। यूं भी हमारा देश एक गरम देश है और तू-तू मैं-मैं हमारा बहुत पुराना शगल है। विश्व के नेताओं की चिंता भले कार्बन उत्सर्जन को लेकर हो, लेकिन हमारी चिंताएं एक-दूसरे के मुंह पर कालिख पोतने तक सीमित हैं। हम कालिख मलने और कपड़े फाड़ने से अभी ऊपर नहीं उठ...

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चेन्नई बाढ़ : एक मानव निर्मित त्रासदी

चेन्नई की बाढ़ जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का एक भयावह उदाहरण तो है ही, इससे हुई तबाही ने मानव समाज की खतरनाक गलतियों के नतीजों को भी रेखांकित किया है.  हाल के वर्षों में उत्तराखंड, कश्मीर समेत देश के विभिन्न इलाकों में बाढ़ की त्रासदी का कहर लगातार बढ़ा है. तेज शहरीकरण और विकास की आपाधापी में सरकार और समाज प्राकृतिक तंत्रों को बेतहाशा बरबाद कर रहे हैं. नदियां...

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