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सकारात्मक बदलाव का पहला साल - संजय गुप्‍त

नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और एक कुशल प्रशासक की उनकी छवि के बल पर भाजपा ने पिछले वर्ष आम चुनाव में अप्रत्याशित रूप से अकेले बहुमत हासिल किया था। अब जब मोदी सरकार अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा करने वाली है, तब उसके कामकाज को कसौटी पर परखा जाना स्वाभाविक है। मोदी सरकार के बारे में एक बात बिना किसी संदेह के कही जा सकती है कि उसने निराशा...

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किसानों को चाहिए सुरक्षा कवच- बी के चतुर्वेदी

विकट कृषि संकट के चलते किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में हमें इस समस्या पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। किसानों के लिए किसी भी तरह के सुरक्षा तंत्र की रूपरेखा उनकी जरूरतों और समस्याओं की समझ पर आधारित होनी चाहिए। ऐसे किसी तंत्र के लिए विभिन्न पहलुओं पर गौर करना जरूरी है। इसमें से पहला यह कि छोटी जोत की खेती के लिए बड़े पैमाने पर...

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बाधाओं के बावजूद महिलाओं का संघर्ष- ऋतु सारस्वत

देश की हाई कोर्ट की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ का यह वक्तव्य हालांकि वर्ष 1978 में घटे एक वाकये का है, परंतु क्या तब से लेकर इस तस्वीर में कोई बदलाव आया है? फोर्ब्स पत्रिका की शीर्ष प्रभावशाली महिलाओं की सूची में चंद भारतीय महिलाओं के चमकते चेहरे बेशक हां में इसका जवाब देने का संकेत करते हैं, लेकिन क्या उंगलियों पर गिनी जाने वाली इन महिलाओं की...

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'स्मार्ट' शहरों से हम क्या समझें? - अनुराग चतुर्वेदी

इन दिनों 'स्मार्ट" शब्द का खासा हल्ला मचा हुआ है। देखते-देखते 'स्मार्टफोन" पूरे भारत में छा गए। फोन की तकनीकों ने पूरा नजारा, पूरा बिजनेस ही बदल डाला। अब 'स्मार्ट सिटी" की बातें कही जा रही हैं। 100 स्मार्ट सिटी के मार्फत भारत के शहरों का नक्शा बदलने की तैयारी की जा रही है। मौजूदा वित्त वर्ष स्मार्ट सिटी क्रांति की शुरुआत का वर्ष होगा। देश में इस साल 20...

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सरकार नहीं, समाज गढ़ता है श्रेष्ठ संस्थान- हरिवंश

अमेरिका के जितने भी महान विश्वविद्यालय हैं, उन्हें बनाने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी. एक झटके में करोड़ों डॉलर का दान कर दिया. क्या भारत में पैसेवालों की कमी है? नहीं. फिर क्यों यहां ऐसे संस्थान नहीं खड़े होते? क्यों हम लोग हर चीज के लिए सरकार का मुंह देखते रहते हैं. सरकार अपना काम करे, यह जरूरी है. पर समाज और लोगों की...

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