नई दुनिया,कोरबा (निप्र)। संरक्षित बैगा आदिवासी जनजाति वर्ग आज भी शिक्षा से कोसों दूर है। इस वर्ग को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लाख दावे सरकार कर ले, पर हकीकत कुछ और है। बैगा आदिवासी के बच्चे स्कूल का मुंह तक नहीं देखे हैं। कापी पुस्तक की जगह हाथ में जाल थाम लिया है और पूरा दिन मछली पकड़ने में बीत रहा। गांव से 5 किलोमीटर दूर स्कूल होने...
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शर्मनाक: नोएडा के सरकारी स्कूलों में बर्तन मांजते हैं बच्चे
पंकज पराशर,बाल अधिकारों पर काम करने के लिए कैलाश सत्यार्थी को मिले नोबेल पुरस्कार से अगर देश का सर गर्व से ऊंचा होता है, तो नोएडा के सरकारी स्कूलों को देखकर वही सर शर्म से झुक जाता है। यहां के तमाम सरकारी स्कूलों में पढ़ने गए बच्चे बर्तन मांजते हैं, झाडू लगाते हैं और मिड डे मील का खाना ढोकर लाते हैं। यह दृश्य तब और डराता है जब हम...
More »41 लाख बच्चों को नहीं मिलेगी पोशाक राशि
प्रभात खबर,पटना: सूबे के प्रारंभिक स्कूलों में नामांकित 2.02 करोड़ बच्चों में 41 लाख छात्र-छात्राओं को मुख्यमंत्री पोशाक योजना की राशि नहीं मिल सकेगी. वजह कक्षा एक से आठ तक के इन बच्चों की उपस्थिति 75 फीसदी या उससे अधिक नहीं है. अप्रैल से 30 सितंबर के बीच इनकी उपस्थिति निर्धारित उपस्थिति से कम रही. इस कारण उन्हें पोशाक योजना की राशि नहीं मिल सकेगी. इस साल 75 फीसदी से ज्यादा...
More »यहां गांव के बच्चे करते हैं अंग्रेजी में गिटपिट
नई दुनिया,जबलपुर। दूसरी क्लास में पढ़ने वाले अजय कोल की जिंदगी बदली-बदली सी है। मिट्टी में खेलते अस्त-व्यस्त से गांव के दूसरे छोटे बच्चों से वह कुछ अलग है। साफ-सुथरा। बातें भी समझदारी वाली। मजदूर माता-पिता का यह बेटा 'वाट इज योर नेम' जैसे अंग्रेजी के अन्य दूसरे सवालों के जवाब देना भी जानता है। कक्षा आठ में पढ़ रही नेहा गोंटिया ने भी अपने रहन-सहन का तरीका बदल लिया...
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नई दुनिया,जबलपुर। दूसरी क्लास में पढ़ने वाले अजय कोल की जिंदगी बदली-बदली सी है। मिट्टी में खेलते अस्त-व्यस्त से गांव के दूसरे छोटे बच्चों से वह कुछ अलग है। साफ-सुथरा। बातें भी समझदारी वाली। मजदूर माता-पिता का यह बेटा 'वाट इज योर नेम' जैसे अंग्रेजी के अन्य दूसरे सवालों के जवाब देना भी जानता है। कक्षा आठ में पढ़ रही नेहा गोंटिया ने भी अपने रहन-सहन का तरीका बदल लिया...
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