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गांधी के कंपास वाला न्यायमूर्ति-- कुमार प्रशांत

कल रात 1.30 बजे महाराष्ट्र की उप-राजधानी नागपुर में जिस 92 साल के चंद्रशेखर शंकर धर्माधिकारी (20 नवंबर, 1927- 3 जनवरी, 2019) का निधन हुअा, उससे हमारी बौद्धिक दुनिया कितनी दरिद्र हो गयी है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. सत्तर से अधिक वर्षों के हमारे लोकतंत्र ने सत्ता अौर संपत्ति की दुनिया में अपने पिता या परिवार की विरासतें संभालनेवाली कई हस्तियां देखी हैं, लेकिन ज्ञान और संस्कार की विरासत संभालनेवाले...

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लैंगिक असमानता के विरुद्ध- डा. अनुज लुगुन

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के आगरा में संजली नाम की एक लड़की को जलाकर मार देने की दहला देनेवाली घटना हुई. अपराधियों ने न केवल बेरहमी से लड़की को जलाकर मार डाला, बल्कि उनके परिवार वालों को फोन पर धमकी भी दी. अपराधियों को यह दुस्साहस कहां से आता है? आमतौर पर हम यह स्वीकार नहीं करते हैं कि इस तरह की घटनाओं के पीछे स्त्रियों के बारे में समाज...

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पुलिस के अच्छे काम की प्रशंसा भी हो-- क्षमा शर्मा

हाल ही में संत कबीर नगर में फलक नाम की एक साढ़े तीन साल की बच्ची पूछते-पूछते पुलिस थाने पहुंची। उसने रास्ते में एक महिला से पूछा कि पुलिस का घर कहां है। शाम को जब यह बच्ची थाने पहुंची तो पुलिस वाले भी हैरान रह गए। उसने पुलिस से शिकायत की कि वह चलकर उसकी अम्मी को डांटें क्योंकि वह भाई को ज्यादा प्यार करती है, उसे नहीं। उसे...

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नवोदय विद्यालय में आत्महत्याओं के मामले में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जांच समिति गठित की

नई दिल्ली: मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने 2013 से 2017 के बीच जवाहर नवोदय विद्यालयों (जेएनवी) में 49 छात्रों की कथित आत्महत्या के पीछे की परिस्थितियों का पता लगाने के लिए एक कार्यबल का गठन किया है. एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि मंत्रालय ने 630 नवोदय विद्यालयों में से प्रत्येक में दो पूर्णकालिक काउंसलर (एक महिला एवं एक पुरुष) रखने संबंधी एक प्रस्ताव को भी मंजूरी के...

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सावित्री बाई फुले: जिन्होंने औरतों को ही नहीं, मर्दों को भी उनकी जड़ता और मूर्खता से आज़ाद किया-- रवीश कुमार

दो साड़ी लेकर जाती थीं. रास्ते में कुछ लोग उन पर गोबर फेंक देते थे. गोबर फेंकने वाले ब्राह्मणों का मानना था कि शूद्र-अतिशूद्रों को पढ़ने का अधिकार नहीं है. घर से जो साड़ी पहनकर निकलती थीं वो दुर्गंध से भर जाती थी. स्कूल पहुंच कर दूसरी साड़ी पहन लेती थीं. फिर लड़कियों को पढ़ाने लगती थीं. यह घटना 1 जनवरी 1848 के आस-पास की है. इसी दिन सावित्री बाई फुले ने...

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