जनसत्ता 25 सितंबर, 2013 : किसी भी लोकतांत्रिक समाज में सरकार और शिक्षा केंद्रों के बीच का संबंध हमेशा एक सृजनशील तनाव से निर्मित होता है। सरकार की तरफ से शायद ही कभी ऐसा प्रयास हो, जिसमें शिक्षा केंद्रों को अधिकतम स्वायत्तता मिलती है, क्योंकि सरकार शिक्षा केंद्रों में चल रहे ज्ञान-मंथन, तथ्य-विश्लेषण और विद्वानों की स्वतंत्र शोध-क्षमता से सशंकित रहती है। सरकार का काम हमेशा कुछ आधा और कुछ पूरा-...
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सारा दोष सरकार का ही नहीं है - आकार पटेल
भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्या क्या है? क्या हुआ, जो विकास दर मुंह के बल गिरी? अगर आप इस विषय पर कुछ पढ़ें, तो आप इनमें से किसी एक नतीजे पर पहुंचेंगे- हमारी संसद आर्थिक सुधारों के लिए जरूरी कानून बनाने में नाकाम रही, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह प्रशासन संभालने में नाकाम रहे, उच्च स्तर की नौकरशाही फाइलों को आगे बढ़ाने में अड़ियल रवैया अपनाती रही, भ्रष्टाचार, चालू खाते का घाटा, जो...
More »गोवा में बूसा बासमती उगाने के प्रयास
गोवा में कृषि वैज्ञानिक बासमती की बूसा किस्म की दुबारा खेती शुरू करने का प्रयास कर रहे हैं। करीब एक दशक पहले इसकी खेती का प्रयास सफल नहीं हो पाया था। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने निकटवर्ती तालेगांव के किसानों के सात मिलकर प्रयास शुरू किए हैं। यहां सामान्य किस्म के धान की खेती पहले से होती है। बाजार में बेहतर मांग...
More »मोबाइल स्पेक्ट्रम नीलामी में 80 प्रतिशत की कटौती की सिफारिश
नई दिल्ली। दूरसंचार क्षेत्र के नियामक ट्राई ने मोबाइल स्पेक्ट्रम की अगली नीलामी के लिये पिछली बार के मुकाबले आरक्षित मूल्य में 60 से 80 प्रतिशत की भारी कटौती की सिफारिश की है। पिछली स्पेक्ट्रम नीलामी में आरक्षित मूल्य काफी ऊंचा होने की वजह से बहुत कम कंपनियों ने बोली लगाई थी। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अखिल भारतीय स्तर पर 1800 मेगाहर्ट्ज बैंड में प्रति मेगाहर्ट्ज के लिये 1,496...
More »गए गुरुजी काम से- राहुल कोटियाल
गया वह ज़माना जब शिक्षक पढ़ाया करते थे. अब उन्हें छत्तीस सरकारी कामों के लिए नौकरी पर रखा जाता है. राहुल कोटियाल की रिपोर्ट. 'वर्तमान शिक्षा-पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है, जिसे कोई भी लात मार सकता है.’ यह टिप्पणी प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल ने अपने सबसे चर्चित उपन्यास 'राग दरबारी' में की थी. यह उपन्यास आज से लगभग पचास साल पहले लिखा गया था. यह वह दौर था जब...
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