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किसानों को दिहाड़ी मजदूर न बनाएं - देविंदर शर्मा

22 मार्च को किसानों के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बात" रेडियो पर प्रसारित होगी और देश में खेती-किसानी और कृषकों के हालात सुधारने के बारे में उनके विचारों से मैं अवगत होना चाहूंगा। मैं नहीं जानता कि मेरे विचार उनके किसी निर्णय को बदल अथवा प्रभावित कर सकते हैं या नहीं, लेकिन यहां मैं किसानों की दुर्दशा और परेशानी अवश्य साझा कर सकता हूं। इसके साथ...

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पुरानी परेशानियों का खुलेगा पिटारा - जयराम रमेश

विगत सोमवार को मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून-2013 में संशोधन के लिए प्रस्तावित अध्यादेश को मंजूरी दे दी। इस संशोधन के संदर्भ में जो कुछ सामने आया है, उसके तहत कुछ परियोजनाओं की अलग श्रेणी बनाई गई है, जिन्हें कथित तौर पर त्वरित ढंग से पूरा किया जाना है। इस श्रेणी के तहत जो विषय शामिल किए गए हैं, उनमें औद्योगिक कॉरिडोर, रक्षा एवं रक्षा उत्पादन तथा ग्रामीण बुनियादी...

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पशुपालन है भूमिहीन परिवारों की जीविका का मुख्य आधार- एनएसएसओ की रिपोर्ट

गंवई इलाकों में सबसे गरीब लोगों के लिए पशुपालन अब भी जीविका का मुख्य स्रोत बना हुआ है। एनएसएसओ की 17 वीं दौर की गणना पर आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार जिन खेतिहर परिवारों के पास 0.01 हैक्टेयर या इससे कम रकबे की जमीन है उनमें तकरीबन 20 प्रतिशत परिवार जीविका के लिए मुख्य रुप से पशुपालन पर निर्भर हैं। गौरतलब है कि ऐसे परिवारों में भूमिहीन परिवार भी शामिल...

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बढ़ रही है कर्जदार किसानों की तादाद- एनएसएसओ

विकास के बहुमुखी हल्ले के बीच कृषि-संकट जारी है। तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र से रह-रह कर आ रही किसान-आत्महत्याओं की खबरों के बीच राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण(एनएसएसओ) द्वारा इस माह जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 52 फीसदी खेतिहर परिवार कर्ज में डूबे हैं। रिपोर्ट में का यह तथ्य जुलाई 2012 से जून 2013 के बीच की स्थिति के बारे में है।(देखें नीचे दी गई लिंक) तकरीबन साढ़े...

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रोजगारविहीन विकास की कहानी - देविन्दर शर्मा

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के लिए प्राइसवाटर हाउस नामक परामर्शी कंपनी द्वारा तैयार एक ताजा रिपोर्ट में रोजगार निर्माण के लिए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत की वार्षिक विकास दर नौ फीसदी रहती है, तो देश से बेरोजगारी खत्म करने में 20 वर्ष लगेंगे। यह वास्तव में वही है, जो हमें हाई स्कूल की अर्थशास्त्र की किताबों में पढ़ाया...

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