आठ मार्च पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर मुझे महिलाओं के विषय में कुछ लिखना उपयुक्त लगा, जो हमारी आबादी में सर्वाधिक कमजोर तथा भेदभाव की शिकार रही हैं. अपने भाषण में जेएनयू का बचाव करते हुए उसके छात्र नेता कन्हैया कुमार ने दो ऐसी बातें कहीं, जो मुझे मालूम न थीं. पहली, यह एक ऐसा विश्वविद्यालय है, जिसके छात्र...
More »SEARCH RESULT
संसद में स्त्री होने के मायने- सुजाता
एक मर्दाना संसद में एक स्त्री की एेतिहासिक, नाटकीय, भावुक हुंकार से देश कुछ वक्त सकते में आ गया. संसद में मौजूद नये-पुराने खिलाड़ियों को यह दांव स्तब्ध कर गया और जनता को अभिभूत. माननीय मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी की इस बाजी से खेल पलटा तो नहीं, तथ्यात्मक गलतियां भी बाद में सामने आयीं. लेकिन, संसद में स्त्री राजनेता के व्यवहार को लेकर जेहन में बहुत सारे सवाल जरूर उठे....
More »ममता के पश्िचम बंगाल में मुस्लिमों की स्थिति खराब : अमर्त्य सेन
कोलकाता। पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले 80 फीसद मुस्लिम परिवार सिर्फ पांच हजार रुपए प्रतिमाह की मासिक आय पर अपना जीवन गुजारने को मजबूर हैं। यह आबादी गरीबी रेखा के नीचे खड़ी है। इनमें से भी करीब 38.3 फीसद सिर्फ 2500 रुपए प्रतिमाह ही कमा पाते हैं, जो पांच लोगों के एक परिवार के आधार पर गरीबी रेखा का आधा भर है। यह अध्ययन 325 गांवों और...
More »मांग के बहाने जाटों की ये कैसी मनमानी! - संजय गुप्त
हरियाणा में आरक्षण की मांग को लेकर जाट प्रदर्शनकारियों ने जैसा खौफनाक कहर ढाया और आंदोलन के नाम पर जातीय दंगे सरीखे जो हालात उत्पन्न् किए, उसकी जितनी भर्त्सना की जाए, कम है। आरक्षण आंदोलन का ऐसा भयावह हश्र समाज और राजनीतिक दलों के साथ-साथ नीति-नियंताओं को आगाह करने वाला भी है। आरक्षण की जाटों की मांग नई नहीं है। वे 1995 से ही आरक्षण की मांग करते चले आ...
More »टैक्स इतना ले लिया, दोगे कितना!-- अनिल रघुराज
आजाद भारत का पहला बजट नवंबर 1947 में पेश किया था. तब से लेकर अब तक के 68 सालों में अगर देश के कोने-कोने तक सड़क, बिजली, पानी व सिंचाई का भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षा व स्वास्थ्य जैसा सामाजिक इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं पहुंचा है, तो इसके लिए हम और हमारे बाप-दादा ही दोषी हैं. हम सिर नीचा किये गाय की तरह घास चरते रहे. कभी सिर उठा कर पूछा नहीं कि...
More »