कार्बनकॉपी, 18 दिसंबर मध्य युग में सामाजिक और सांस्कृतिक सीमाओं के उल्लंघन की घटनाएं अचानक तेज हो गईं। तत्कालीन सुधारवादियों ने समाज में फैली इस नैतिक अधमता के लिए कैथोलिक चर्च द्वारा बेचे जाने वाले ‘लेटर ऑफ़ इंडलजेंस’, या क्षमा-पत्रों को ज़िम्मेदार ठहराया। यह पत्र पैसे या दान देकर चर्च से खरीदे जा सकते थे और कहा जाता था कि इन पत्रों के धारकों के सभी पाप धुल जाएंगे। इस तरह...
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आबादी के पास हो रहे खनन से परेशान देहरादून के निवासी कर रहे है खनन नीति में बदलाव की मांग
इंडियास्पेंड, 17 दिसंबर देहरादून के फतेहपुर टांडा गांव की निवासी मंजीत कौर (55) को अपने सात महीने के पोते को सुलाने में आज कल काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, कारण है घर के पास लगे स्क्रीनिंग प्लांट और बड़े वाहनों से होने वाला शोर। इस शोर की वजह से मंजीत और उनके पोते की नींद पूरी नहीं हो पाती है और दोनों को ही चिड़चिड़ाहट होती है। उत्तराखंड में देहरादून...
More »ग्रामीण ओडिशा में अनाज भंडारण करने का देसी तरीका 'गोला', लेकिन अब लुप्त होने का डर
गाँव कनेक्शन, 13 दिसंबर भागीरथी मंडल ने यह मानने को तैयार नहीं हैं कि केंद्रपाड़ा जिले में उनके गाँव हरियांका के पारंपरिक गोला (भंडार घर) को कभी भी बदला जा सकता है। "गोला के बिना फसल की कटाई को संरक्षित करना हमारे लिए असंभव है। यहां तक कि सबसे बढ़िया भंडारगृह भी पर्याप्त नहीं होते। गोले अतीत में महत्वपूर्ण थे, अब भी महत्वपूर्ण हैं और भविष्य में भी प्रासंगिक रहेंगे, "...
More »पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 30% की गिरावट, लेकिन ये आंकड़े कितने विश्वसनीय?
इंडियास्पेंड, 13 दिसंबर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने 5 दिसंबर 2022 को बताया कि इस पिछले साल की तुलना में इस मौसम में (15 सितंबर से 30 नवंबर तक) पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 30% जबकि हरियाणा में 48% की गिरावट दर्ज की गई है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अकेले सैटेलाइट (उपग्रह) के आंकड़ों के आधार पर इस गिरावट को पूरी तरह से सही...
More »सीबीडी कॉप-15: सबसे कम संरक्षित मूंगे की गहरी चट्टानों की रक्षा करने की तत्काल जरूरत
डाउन टू अर्थ, 13 दिसंबर जैव विविधता पर कन्वेंशन के पक्षकारों के सम्मेलन की पंद्रहवीं (कॉप 15) बैठक जारी है, जिसमें दुनिया भर के नेता, सरकार के वार्ताकार, वैज्ञानिक और संरक्षणवादी हिस्सा ले रहे हैं। जो सात दिसंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर 2022 तक जारी रहेगी, इसमें शामिल लोगों का उद्देश्य प्रकृति को होने वाले नुकसान को रोकने और उसे पहले जैसा रखने में सहमति बनाना है। इसी क्रम में...
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